सीहोर स्थित प्रसिद्ध चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर


सम्पूर्ण भारत में चिंतामन सिद्ध गणेश की चार स्वयंभू प्रतिमाये स्थापित है जिनमे से एक मध्यप्रदेश में भोपाल के समीप सीहोर जिले में विराजमान है ! चिंतामन सिद्ध गणेश के दर्शन करने हेतु प्रति वर्ष यहाँ लाखों श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव एवं आस्था से आते है ! यहाँ मान्यता के लिए उल्टा सातिया बनाया जाता है ! चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो की वर्तमान में पूरे भारत वर्ष में अपनी ख्याति और भक्तों की असीम आस्था के लिए पहचाना जाता है ! प्राचीन चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर का पौराणिक इतिहास है ! 


माना जाता है कि चिंतामन सिद्ध भगवान् गणेश की सम्पूर्ण भारतवर्ष में चार स्वयम्भू प्रतिमाये है, जो की सवाई माधोपुर (राजस्थान), उज्जैन स्थित अवंतिका, गुजरात में सिद्धपुर एवं मध्य प्रदेश के सीहोर में विराजमान है ! इन सभी स्थानों पर गणेश चतुर्थी पर मेला लगता है !

सीहोर स्थित इस प्राचीन मंदिर का इतिहास करीब दो हजार वर्ष पुराना है ! कहा जाता है की सम्राट विक्रमादित्य सीवन नदी से कमल पुष्प के रूप में प्रगट हुए भगवान् गणेश को रथ में लेकर जा रहे थे ! सुबह होने पर रथ जमीन में धंस गया तथा रथ में रखा कमल गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा ! प्रतिमा जमीन में धंसने लगी ! बाद में इसी स्थान पर गणेश मंदिर का निर्माण कराया गया ! आज भी यह प्रतिमा जमीन में आधी धंसी हुई है ! 

मंदिर में स्थापित इस गणेश प्रतिमा के प्रकट होने की एक और किवदंती यह भी है कि सीहोर से करीब सोलह किलोमीटर दूर पार्वती नदी का उद्गम स्थल है ! सैकड़ों वर्षो पूर्व पार्वती नदी की गोद में श्री गणेश श्यामवर्ण काले पत्थर की सोने के रूप में दिखनेवाली मूर्ती के रूप में एक ऊँचे स्थान पर विराजित थे ! उस समय आसपास के रहवासी और योगी व संतों ने भी यहाँ कई सिद्धियां अर्जित की है ! 

इतिहासकारों के अनुसार करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व पेशवा युद्धकाल के समय पूर्व मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम ने अपने साम्राज्य को बढाने के उदेश्य से पार्वती नदी के दूसरी तरफ पड़ाव डालने का सोचा, लेकिन नदी के तेज बहाव के चलते उनकी यह योजना खटाई में पड गयी !पेशवा बाजीराव जिस समय नदी के तेज बहाव के थमने का इन्तजार कर रहे थे उसी समय रात्री में वहाँ के स्थानीय रहवासियों ने यहाँ पर विराजित भगवान् गणेश की महिमा के बारे में उन्हें अवगत कराया ! जिसे सुन पेशवा बाजीराव ने रात्री के समय ही यहाँ विराजित श्री गणेश की प्रतिमा के दर्शन की ठानी एवं वे अपने मंत्री और सैनिकों के साथ प्रतिमा के दर्शन हेतु नियत स्थान की और रवाना हुए, तत्पश्चात पेशवा बाजीराव ने प्रतिमा की खोज कर अपनी सेना सहित यहाँ विराजित श्री गणेश की प्रतिमा की विधिवत पूजा अर्चना की और अपने साम्राज्य के विस्तार हेतु निकले !पेशवा बाजीराव ने श्री गणेश की प्रतिमा से मनोकामना की कि साम्राज्य विस्तार कर वापस लोटने के बाद में नदी के तट पर देवालय बनवाऊंगा !कुछ ही समय पश्चात पेशवा बाजीराव को अभूतपूर्व सफलता मिलने के बाद अपने वचन के अनुसार पार्वती नदी पर विराजित सिधपुर सीहोर में सीवन नदी के किनारे सुन्दर देवालय बनवाया !विद्वानों के द्वारा वेद उच्चारण और ढोल ढमाकों के साथ गणेश जी के प्रिय रक्त चन्दन के रथ में भगवान् को विराजित कर सेना से सुसज्जित शोभायात्रा निकाली जाने की तैयारी की जाने लगी, पेशवा बाजीराव द्वारा गणेश प्रतिमा को अन्यत्र ले जाने पर स्थानीय नागरिकों द्वारा उन्हें प्रतिमा को कहीं और न ले जाने का विनम्र अनुरोध किया परन्तु बाजीराव पेशवा अपनी जिद पर अड़े रहे ! पेशवा द्वारा निकाली गयी यह शोभा यात्रा नियत स्थान पर पहुचने से पूर्व ही रूक गयी एवं भरपूर प्रयास के बावजूद आगे नहीं बढ सकी तथा रथ के पहिये भी धसकने लगे ! थके हारे बाजीराव पेशवा ने अपनी सेना सहित उस रात्रि उसी स्थान विश्राम किया ! रात्री के समय बाजीराव पेशवा को निंद्रा अवस्था में श्री गणेश द्वारा क्षणिक स्वप्न के माध्यम से यह सन्देश दिया कि राजन तुम अब और प्रयास न करो में मां पार्वती के भक्तों की इच्छा अनुसार यही बिराजूंगा और यह स्थान भी सिद्ध हो गया है ! तब बाजीराव पेशवा ने गणेश जी की आज्ञा का पालन करते हुए इसी जगह मंदिर का निर्माण कराया, जो वर्तमान में चिंतामन श्री गणेश मंदिर के रूप में जाना जाता है !

उलटा सातिया बना कर मांगने से पूरी होती है मान्यता

चिंतामन सिद्ध गणेश में श्रद्धालु उल्टा सातिया बना कर मान्यता मांगते है एवं पूर्ण होने के पश्चात वापस मंदिर में आकर सीधा सातिया बनाकर अपने घर प्रस्थान करते है !




  











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