71 के भारत पाक युद्ध में कैप्टिन महेन्द्रनाथ मुल्ला का अविस्मरणीय बलिदान :


एमएन मुल्ला
भारतीय नौसेना को अंदाज़ा था कि युद्ध शुरू होने पर पाकिस्तानी पनडुब्बियाँ मुंबई बंदरगाह को अपना निशाना बनाएंगी. इसलिए उन्होंने तय किया कि लड़ाई शुरू होने से पहले सारे नौसेना फ़्लीट को मुंबई से बाहर ले जाया जाए.

जब दो और तीन दिसंबर की रात को नौसेना के पोत मुंबई छोड़ रहे थे तभी उन्हें ज्ञात हुआ कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस हंगोर बहां घूम रही है | नौसेना मुख्यालय ने आदेश दिया कि भारतीय जल सीमा में घूम रही इस पनडुब्बी को तुरंत नष्ट किया जाए और इसके लिए एंटी सबमरीन फ़्रिगेट आईएनएस खुखरी और कृपाण को लगाया गया.

दोनों पोत अपने मिशन पर आठ दिसंबर को मुंबई से चले और नौ दिसंबर की सुबह होने तक उस इलाक़े में पहुँच गए जहाँ पाकिस्तानी पनडुब्बी के होने का संदेह था.

टोह लेने की लंबी दूरी की अपनी क्षमता के कारण हंगोर को पहले ही खुखरी और कृपाण के होने का पता चल गया. यह दोनों पोत ज़िग ज़ैग तरीक़े से पाकिस्तानी पनडुब्बी की खोज कर रहे थे.
हंगोर ने उनके नज़दीक आने का इंतज़ार किया. पहला टॉरपीडो उसने कृपाण पर चलाया. लेकिन टॉरपीडो उसके नीचे से गुज़र गया और फटा ही नहीं.

यह टॉरपीडो 3000 मीटर की दूरी से फ़ायर किया गया था. भारतीय पोतों को अब हंगोर की स्थिति का अंदाज़ा हो गया था.

हंगोर के पास विकल्प थे कि वह वहाँ से भागने की कोशिश करे या दूसरा टॉरपीडो फ़ायर करे. उसने दूसरा विकल्प चुना और खुखरी पर पीछे से फ़ायर किया | टॉरपीडो खुखरी की मैगज़ीन के नीचे जा कर एक्सप्लोड हुआ और दो या तीन मिनट के भीतर जहाज़ डूबना शुरू हो गया.

खुखरी में परंपरा थी कि रात आठ बजकर 45 मिनट के समाचार सभी इकट्ठा होकर एक साथ सुना करते थे ताकि उन्हें पता रहे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है.

समाचार शुरू हुए, 'यह आकाशवाणी है, अब आप अशोक बाजपेई से समाचार...' समाचार शब्द पूरा नहीं हुआ था कि पहले टारपीडो ने खुखरी को हिट किया. कैप्टेन मुल्ला अपनी कुर्सी से गिर गए और उनका सिर लोहे से टकराया और उनके सिर से ख़ून बहने लगा.

दूसरा धमाका होते ही पूरे पोत की बत्ती चली गई. कैप्टेन मुल्ला ने मनु शर्मा को आदेश दिया कि वह पता लगाएं कि क्या हो रहा है.

मनु ने देखा कि खुखरी में दो छेद हो चुके थे और उसमें तेज़ी से पानी भर रहा था. उसके फ़नेल से लपटें निकल रही थीं.

उधर सब लेफ़्टिनेंट समीर काँति बसु भाग कर ब्रिज पर पहुँचे. उस समय कैप्टेन मुल्ला चीफ़ योमेन से कह रहे थे कि वह पश्चिमी नौसेना कमान के प्रमुख को सिग्नल भेजें कि खुखरी पर हमला हुआ है.

बसु इससे पहले कि कुछ समझ पाते कि क्या हो रहा है पानी उनके घुटनों तक पहुँच गया था. लोग जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रहे थे. खुखरी का ब्रिज समुद्री सतह से चौथी मंज़िल पर था. लेकिन मिनट भर से कम समय में ब्रिज और समुद्र का स्तर बराबर हो चुका था.

कैप्टेन मुल्ला ने बसु की तरफ़ देखा और कहा, 'बच्चू नीचे उतरो.' बसु पोत के फ़ौलाद की सुरक्षा छोड़ कर अरब सागर की भयानक लहरों के बीच कूद गए.

समुद्र का पानी बर्फ़ से भी ज़्यादा ठंडा था और समुद्र में पाँच-छह फ़ीट ऊँची लहरें उठ रही थीं.
मुल्ला ने जहाज़ छोड़ने से इनकार किया

उधर मनु शर्मा और लेफ़्टिनेंट कुंदनमल भी ब्रिज पर कैप्टेन मुल्ला के साथ थे. मुल्ला ने उनको ब्रिज से नीचे धक्का दिया. उन्होंने उनको भी साथ लाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया.

जब मनु शर्मा ने समुद्र में छलांग लगाई तो पूरे पानी में आग लगी हुई थी और उन्हे सुरक्षित बचने के लिए आग के नीचे से तैरना पड़ा.

थोड़ी दूर जाकर मनु ने देखा कि खुखरी का अगला हिस्सा 80 डिग्री को कोण बनाते हुए लगभग सीधा हो गया है. पूरे पोत मे आग लगी हुई है और कैप्टेन मुल्ला अपनी सीट पर बैठे रेलिंग पकड़े हुए हैं और उनके हाथ में अब भी जली हुई सिगरेट है.

जब अंतत: खुखरी डूबा तो बहुत ज़बरदस्त सक्शन प्रभाव हुआ और वह अपने साथ कैप्टेन मुल्ला समेत सैकड़ों नाविकों और मलबे को नीचे ले गया.

कुल मिला कर भारत के 174 नाविक और 18 अधिकारी शहीद हुए.

कैप्टेन महेंद्रनाथ मुल्ला ने नौसेना की सर्वोच्च परंपरा का निर्वाह करते हुए अपना जहाज़ नहीं छोड़ा और जल समाधि ली. उनकी इस वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया.



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