मोदी जी के भाषण पर काव्य प्रतिक्रिया |
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पापी पाकी से गिला नहीं,
है गिला हमें गद्दारों से |
जो खुलकर बोल नहीं पायें,
वो नेता क्या खुद्दारों के ?
व्याकुल प्रथ्वी करवट बदले
सब पापी नहले पे दहले !
जन की आँखों में सिन्धु मौन
दाहक पीड़ा को समझे कौन ?
भा का अर्थ ज्ञान होता है
उसमें रत था भारत
संविधान में पहले इंडी,
देख शर्म से गारत !!
खुद को मदिरा गारत करते
धूम मचाता वो नव वर्ष
प्रातः प्रभु का वंदन करना
कैसे किसको देगा हर्ष ?
आज नशे पर बोले मोदी,
किन्तु असर किस पर होगा ?
कितने मंत्री मान सकेंगे,
अमृत क्या वो जहर होगा ?
उन्हें बाबरी याद मगर हम
सोमनाथ को भूल गए,
अकबर महान कहते कहते राणा
प्रताप को भूल गए,
जौहर की ज्वाला ठंडी है,
अंगारे राख हुए जाते,
अंग्रेजी नशा चढ़ा सर पर,
केवल उनके ही गुण गाते |
मोदी जी क्या कुछ कर पायेंगे,
या महज भाषण की औपचारिकता निभायेंगे ?
Tags :
काव्य सुधा
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