पंचवर्षीय योजना और गरीबी - स्व. राजीव दीक्षित


हमारे देश में बहुत अच्छाईयां है, लेकिन एक खराबी है | आजादी के बाद वह समस्या आई है, आजादी के पहले वो समस्या नहीं थी | आजादी के बाद हम पर विदेशी कर्ज बहुत चढ़ गया है | यह कर्ज इतना हो गया है कि इसका ब्याज भरने के लिए कर्ज लेना पड़ता है | कोई देश कर्ज लेकर अपने देश में कारखाने लगाए, उन कारखानों में हुए उत्पादन को बेचकर कर्ज चुकाए, समझ में आता है, किन्तु कोई देश अगर अपने पुराने कर्ज का ब्याज भरने के लिए कर्ज ले, तो वह कैसे चुकाएगा ? इससे हो यह रहा है कि कर्ज का जो मूलधन है वह लगातार बढ़ता जा रहा है | आज हमारे देश पर कर्ज की रकम इतनी हो गई है कि उसे केलकुलेटर पर नहीं देखा जा सकता | यह रकम है 110 लाख करोड़ रुपये | कैलकूलेटर पर 12 अंक होते है जबकि 110 लाख करोड में अंक होते हैं 16 । 

हमने 24 देशों से यह कर्ज लिया | हमने जर्मनी से लिया, रसिया से लिया, जापान से लिया, फ्रांस से लिया, डेनमार्क, स्वीडन, स्वीटजरलेंड से लिया | अब सवाल उठता है कि ये कर्ज लिया क्यों गया | जब हम स्वतंत्र हुए 15 अगस्त 1947 को, तब हमारे देश का खजाना खाली था | हमारा सारा पैसा अंग्रेजों ने लूट लिया था | लूट का अंदाज इस बात से लगाईये कि 200 जहाज भरकर हीरे मोती जवाहरात लेकर रोवार्ट क्लाईव इंग्लेंड पहुंचे तो वहां की संसद में उनका मूल्य बताया गया एक हजार मिलियन स्टर्लिंग पाउंड | इनको अगर रुपये में बदलें तो होंगे अस्सी लाख करोड़ रुपये | भारत की सरकार का बीस साल का बजट | भारत की आठ पञ्चवर्षीय योजनायें बनें उतना पैसा | सरल शब्दों में कहें तो भारत के हर गाँव की सड़क को सोने की बना दें इतना पैसा | इतना पैसा एक अकेला अंग्रेज रोवर्ट क्लाइव लूट कर ले गया | तो कल्पना कीजिए कि अंग्रेज शासन काल में कितना लूटा गया होगा ? रोवार्ट क्लाईव जैसे 184 अंगेज अधिकारीयों ने इस देश को लगातार लूटा | टॉमस रो के ज़माने से माउंटवेटन तक | लूट इतनी कि दुनिया में सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश आज मिट्टी की चिड़िया बन गया | मैं कई बार सपना देखता हूँ कि दुनिया की सबसे बड़ी अदालत में मुक़दमा कायम किया जाए कि 200 साल में जो लूटा है वह ब्याज के साथ वापस करो, तो क्या होगा ? एक सवाल यह भी कि आजादी के बाद किया क्यों नहीं गया ऐसा मुकदमा, तो मुश्किल यह हैकि भगतसिंह, उद्धवसिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसा कोई प्रधान मंत्री बना ही नहीं | 

अब खाली खजाना भरने के लिए आसान उपाय अपनाया गया, कर्ज लेना शुरू किया | अब कर्ज लेने वाले देशों की दादागिरी शुरू हो गई है, वे कहते हैं ऐसा करो तो बैसा करना पड़ता है | अमरीका भारत को बोलता है कि तुम्हारे रुपये की कीमत कम करो, डॉलर की कीमत बढाओ तो भारत सरकार को आदेश मानना पड़ता है | यदि डॉलर और रुपये की कीमत समान हो तो हमारे यहाँ डीजल मिलेगा 60 पैसे लीटर | 

कांग्रेस ने 6 - 7 साल पहले एक सर्वे कराया कि देश में ग़रीबो की वास्तविक संख्या कितनी हैं ? क्यों कि पहले कोई कहता था कि 25 करोड- हैं ,कोई कहता था कि 35 करोड- हैं ,कोई कहता था कि 37 करोड- हैं | तो सर्वे के लिये अर्जुन सेनगुप्ता को कहा गया । अर्जुन सेनगुप्ता भारत के बहुत बड़े अर्थशास्त्री हैं । और इंदिरा गांधी के समय भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार रहे हैं । उन्होने 3-4 साल की मेहनत के बाद संसद मे एक रिपोर्ट प्रस्तुत की । रिपोर्ट कहती है देश कि कुल आबादी है 115 करोड़ । और इस 115 करोड़ मे से 84 करोड़ 30 लाख लोग ऐसे है, जो एक दिन में 20 रुपये भी खर्च करने की हैसियत नहीं रखते । और इन 84 करोड़ 30 लाख में से 50 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनकी हैसियत एक दिन में 10 रुपये भी खर्च करने की भी नहीं है । जबकि 15 करोड़ ऐसे है जो 5 रुपये रोज भी नहीं खर्च कर सकते । हद तो यह है कि 5 करोड़ ऐसे है जिनके पास प्रतिदिन खर्च करने को 50 पैसे भी नहीं होते ।

ये हमारे देश भारत की नंगी वास्तविकता है कटुसत्य है ! जब वो रिपोर्ट आई तो सब के रंग उड़ गये, कि आखिर 64 साल मे हमने किया क्या ? ? ? इतनी ग़रीबी इतनी बदहाली । सबसे अजीब बात ये हैं कि 1947 के बाद जब पंडित नेहरु ने ग़रीबो की संख्या पता करने के लिये सर्वे करवाया, तो उस समय ग़रीबो की कुल संख्या 16 करोड़ थी । उस समय नेहरू जी ने 1952 में संसद मे खडे होकर कहा था कि एक पंच वार्षिक योजना लागू हो गई तो सारी ग़रीबी मिट जायेगी ।

तो 1952 में पहली पंच वार्षिक योजना बनाई गई । लेकिन 5 साल बाद देखा गया कि ग़रीबी उलटा और बढ़ गई । 1957 मे फ़िर बोला एक और पंच वार्षिक योजना बन गई तो ग़रीबी खत्म । 1963 आ गया ग़रीबी नहीं मिटी । फ़िर पंच वार्षिक योजना बनाई फ़िर ग़रीबी नहीं मिटी । फ़िर 1968 मे बनाई फ़िर 1972 में ऐसे करते करते 2007 तक कुल 11 पंच वर्षिक योजनाये बनीं । गरीबी मिटना तो दूर उल्टा गरीबों की सख्या 84 करोड़ 30 लाख हो गयी !

लेकिन क्या आप जानते हैं ??? कि अगर ये खानदानी लूटेरे एक भी पंच वर्षिक योजना ना बनाते और उधार लिए गए 110 लाख करोड ग़रीबो को नकद ही बांट दिया होता तो एक एक गरीब को 1 लाख 50 हजार मिल जाते और सारी ग़रीबी खत्म हो जाती ।

और एक बात साल 2012 में फिर गरीबी दूर करने के लिए 12 वी पंच वार्षिक योजना बनाई गई और इसके लिए वर्ल्ड बैंक से फिर कर्ज लिया गया 7 लाख करोड़, जिसे गरीबी दूर करने के लिए खर्च किया जाएगा !!
अब आप बताए गरीबी दूर होगी या खानदानी लूटेरे और अमीर होंगे ??????
_________गरीबी में बढ़ोतरी का कारण _________
जब भारत 1947 मे आज़ाद हुआ था तो भारत की कुल जनसँख्या 40 करोड़ थी तथा गरीबों की कुल जनसँख्या केवल 4 करोड़ थी.. 40 करोड़ मे से 4 करोड़ गरीब मतलब 10 %
2012 मे जनसख्या हो गई 40 करोड़ की 120 करोड़ ! मतलब 3 गुना बढ़ गई !
तो गरीबी भी 3 गुना बढ़नी चाहिए !
4 करोड़ की गरीबी 12 करोड़ होनी चाहिए !
लेकिन गरीबी 4 करोड़ से 84 करोड़ हो गई !
ऐसा क्या हुआ जो गरीबों की संख्या बढ़कर 84 करोड़ हो गयी ????
इसका एक ही कारण है 65 साल मे इस देश की लूट इतनी हुई की गरीबी 84 करोड़ हो गयी !
तब गरीबी हटाने के लिए पंच वर्षीय योजनायें बनायीं गयीं पर ऐसा क्या हुआ जो 11 पंच वर्षीय योजनाओं के बाद भी गरीबी कम नहीं हुई बल्कि इतनी तेज़ी से बढ़ी……
कारण है देश पर शासन करने वालों की लूट, भ्रष्टाचार और नीचता में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई और ये तो आप भी जानते हैं इस देश पर शासन करने वाले कौन हैं ? ये वहीँ जिनका इस देश पर 55 वर्षों तक शासन रहा है …..ये वहीँ हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस देश को लूटते रहे ….


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