खतरे की घंटी - कश्मीर चुनाव में फिर दिखा हिन्दू मुलिम ध्रुवीकरण |


क्या आप जानते हैं कि जम्मू कश्मीर में दलबदल विरोधी कानून लागू नहीं है | धारा 377 के चलते केंद्र सरकार के बनाए क़ानून वहां लागू नहीं हैं | इस परिस्थिति में अगर वहां किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत न भी मिले तो भी सबसे बड़े दल द्वारा अन्य दलों में तोड़फोड़ का सरकार बनाय जजने की पूर्ण संभावना है | इस चुनाव में मुख्यतः यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या घाटी की मुस्लिम आबादी अपना दबदबा कायम रखेगी, अथवा लद्दाख व जम्मू क्षेत्र में इकतरफा भाजपा का विजय रथ सरपट दौड़ेगा |

यदि जम्मू व लद्दाख के क्षेत्रों में इकतरफा जीत हासिल कर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफल हो गई तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक उसका जबरदस्त माहौल बनेगा | बैसे इसके संकेत इस बात से भी मिलते हैं कि चुनाव समाप्ति के ठीक पहले पीडीपी के संरक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रधानमंत्री मोदी की जबरदस्त तारीफ़ की | मुफ्ती का यह कहना महत्वपूर्ण है कि कश्मीर में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव केवल दो बार हुए हैं | एक बार तो तब, जब 2002 में जन अटल जी प्रधानमंत्री थे और दूसरे इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में | उन्होंने तो यहाँ तक कहा है कि इस बार जैसा स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव घाटी में इसके पूर्व कभी हुआ ही नहीं | 

कश्मीर विधानसभा की 87 सीटों में हुआ मतदान हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण की कहानी ही बयान कर रहा है | भयंकर शीत लहर के बाद भी हुआ बम्पर वोटिंग में जहां हिन्दू वोट केवल और केवल भाजपा के पक्ष में जाते दिखाई दे रहे हैं, वहीं मुस्लिम वोटों ने भी भाजपा की सरकार न बन जाए इस भय से रणनीति तय करके एक ही पार्टी अर्थात पीडीपी के पक्ष में अपना मत दिया है | अतः इतना तो तय हैकि जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में नंबर एक व दो की दौड़ में ये ही दोनों पार्टियां रहने वाली हैं | सरकार किसकी बनेगी यह भविष्य के गर्भ में है | लेकिन हिन्दू मुस्लिम की खाई आज भी उतनी ही स्पष्ट है, जितनी पहले थी | क्या यह विभाजन देश की दशा और दिशा के लिए खतरे की घंटी नहीं है ?

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