शारदा घोटाले से उपजे कुछ अहम् सवाल | देश के भविष्य पर घोटालों की गाज |


अंग्रेजी समाचार पत्र टाइम्स ऑफ़ इंडिया में आज एक समाचार है जिसके अनुसार सीबीआई के पास पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री मदन मित्रा एवं शारदा घोटाले के मुख्य आरोपी सुदीप्त सेन की नजदीकी प्रमाणित करने के पर्याप्त आधार हैं | अखबार ने लिखा है कि सीबीआई सूत्रों के अनुसार 2011-2012 में मदन मित्रा का लगातार शारदा के मिडलेंड पार्क ऑफिस आना जाना था | पूछताछ के दौरान जब मित्रा के सम्मुख सुदीप्त सेन व कम्पनी के कर्ताधर्ताओं के साथ नजदीकी संबंधी डोक्यूमेंट व वीडियो फुटेज रखे गए, तब वे यातो चुप रहे या उन्होंने सवालों से बचने की कोशिश की |
बताया जाता है कि अंततः मित्रा ने शारदा कम्पनी से लाभ उठाने वाले कुछ और लोगों के नाम भी सीबीआई को बताये हैं | रोचक तथ्य यह है कि उनमें से दो नाम ऐसे हैं जिनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है | सीबीआई यह जांचने का प्रयत्न कर रही है कि मित्रा की बेनामी संपत्तियों के अतिरिक्त 2011 के विधानसभा चुनाव में इस घोटाले का कितना पैसा तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों के पक्ष में उपयोग हुआ ? इस दृष्टि से आयकर विभाग तथा प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कमसेकम 12 बेंक खातों की जांच की जा रही है | 
शारदा ग्रुप के मुख्य कार्यकारी सुदीप्त घोष दस्तीदार, समूह के मुख्य वित्त अधिकारी अजितेश बेनर्जी, मित्रा के पूर्व निजी सचिव देवयानी मुखर्जी, बापी करीम तथा शारदा ग्रुप के दो ड्राईवर रतन और दीपू को लेकर सीबीआई ने मंत्री मित्रा की प्रतिक्रिया जाननी चाही | उनके सम्मुख मित्रा तथा सेन की टेलीफोन पर हुई बातचीत तथा दो कारों की लोग बुक भी रखी गई जिनमें आरोपों के अनुसार मंत्री को प्रदान की गई रकम ले जाई गई थी |


इन सब बातों से यह तो प्रमाणित होता ही है कि भारत की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में घोटालों की रकम का भरपूर उपयोग होता है | यह कोई ढकाछुपा तथ्य नहीं है कि भारत की दूषित चुनाव प्रणाली में धनबल व बाहुबल के आधार पर ही चुनाव लडे व जीते जाते हैं | तो क्या यह आवश्यक नहीं है कि निरर्थक बहस मुबाहिस में समय बर्बाद करने के स्थान पर हमारी संसद इन मूलभूत कमियों की तरफ ध्यान दे | घोटालों से उत्पन्न धन ही तो काले धन की समस्या का मूल आधार है | काले धन को रोकना है तो घोटाले रोकना होंगे | घोटाले तब तक नहीं रुकेंगे जब तक कि चुनाव प्रणाली में धन का प्रयोग नहीं रुकेगा | कितने ही ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ता धन के अभाव में जनसेवा के सपने मन में संजोये टुकर टुकर व्यवस्था को देखते रहने को विवश हैं | किन्तु जिनके मन में न तो देश भक्ति है और ना ही जनसेवा की कोई ललक, वे लोग धन बल के आधार पर देश के भाग्य बिधाता बन जाते हैं | देश का भविष्य कैसे उन्नति का सोपान चढ़ेगा ?

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