आखिर क्या है 'डिब्बा ट्रेडिंग'?




यदि आप शेयर बाजार या कमोडिटी बाजार के खिलाड़ी हैं, तो आपने ‘डब्बा ट्रेडिंग’ के बारे में अवश्य ही सुना होगा। आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर यह ‘डब्बा ट्रेडिंग’ क्या है और यह होती कैसे है। चूंकि लोग इसके चक्कर में बर्बाद भी हो जाते हैं, इसलिए इसके बारे में जानना और भी जरूरी है।


दरअसल, डब्बा ट्रेडिंग में भी शेयरों और कमोडिटीज का कारोबार होता है, बस फर्क यह है कि जहां रजिस्टर्ड ब्रोकर अपने निवेशक और कमोडिटी या स्टॉक एक्सचेंजों के बीच एजेंट का काम करता है, वहीं डब्बा चलाने वाला अपने आप में एक पूरी संस्था होता है। वह अपने ग्राहकों द्वारा किए जाने वाले सौदों को केवल अपने रजिस्टर में दर्ज करता है, उसके आगे ये सौदे एक्सचेंज या बाजार तक नहीं पहुंचते। उसी के स्तर से इन सौदों का निबटारा हो जाता है। इसमें मुनाफे का आकर्षण इतना अधिक होता है कि लालच के वशीभूत लोग इस गैरकानूनी कारोबार के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। सवाल यह है कि आखिर क्यों लोग इस गैरकानूनी कारोबार के प्रति आकर्षित होते हैं। इसकी एक वजह यह है कि न तो इसमें टैक्स लगता है और न ही इसके लिए केवाईसी की जरूरत होती है।


ऐसे होती है यह ट्रेडिंग:पंजीकृत ब्रोकर अपने निवेशक के सभी सौदे शेयर बाजार नियामक ‘सेबी’ (या वायदा आयोग नियामक ‘एफएमसी’) और एक्सचेंजों के नियमों के हिसाब से निबटाता है, जबकि ‘डब्बा ट्रेडर’ अपने स्तर से ही सब कुछ निबटा देता है। इस ट्रेडिंग की खास बात है कि किसी भी तरह की नकदी के जरिए इस खेल में हिस्सा लिया जा सकता है और कई गुना फायदे के लालच में लोग इसके प्रति आकर्षित हो जाते हैं। जानकारों का मानना है कि इस खेल में काले धन का भी काफी इस्तेमाल होता है। यही नहीं, ‘डब्बा’ चलाने वाले लोग अपने खास ग्राहकों को कम से कम मार्जिन पर अधिक से अधिक ट्रेडिंग करने की छूट देते हैं।


क्यों होता है भारी नुकसान, इस सुविधा की वजह से लोग लालच में पड़ जाते हैं और अपनी सीमा से बाहर जाकर ट्रेडिंग कर लेते हैं। ऐसे में अगर दांव उल्टा पड़ा, तो उन्हें भारी नुकसान भी सहना पड़ता है। हालांकि सेबी और अन्य रेगुलेटर्स ने इसे रोकने के प्रयास जरूर किए हैं, लेकिन अभी तक उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली है।

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