"निर्भया काण्ड" के दो वर्ष



दो साल पूर्व 16 दिसंबर 2012 की रात दिल्ली में हुए सामूहिक दुष्कर्म कांड की एक ऐसी घटना घटी जिसने सम्पूर्ण देश के साथ साथ समस्त विश्व को भी हिला कर रख दिया ! दो वर्ष पूर्व आज ही के दिन देश की राजधानी दिल्ली में भारत की एक बेटी के साथ कुछ दरिंदों ने हैवानियत दिखाई थी, चलती बस में उसके एक दोस्त के सामने दरिंदगी से उसकी असमत को लूट कर सड़क पर फेंक दिया था ! रात भर खून से सनी वो देश की बेटी सड़क के किनारे पड़ी तड़पती रही, सुबह कुछ राहगीरों ने उसे अस्पतालमें भर्ती कराया, 13 दिनों तक जिंदगी और मौत से लड़ने के बाद सिंगापुर के एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई ! यह घटना संचार माध्यम के त्वरित हस्तक्षेप के कारण प्रकाश में आयी !

हालांकि नौ माह की सुनवाई के बाद चार बलात्कारियों को अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी ! बलात्कारियों में एक नाबालिग भी था उसके खिलाफ सुनवाई जुवेनाइल बोर्ड में की गई ! बोर्ड ने उसे तीन साल के लिए सुधार गृह में भेज दिया था लेकिन परिवार इस फैसले से निराश है ! उनकी मांग है कि नाबालिग के उम्र को देखकर नहीं उसके गुनाह को देखकर सजा दी जाए !

दिल्ली में निर्भया के बलात्कारियों को इसी साल के सितम्बर महीने में फांसी की सजा जरूर हुई लेकिन हवस के भूखों ने इससे सबक नहीं लिया ! आज पहले की तुलना में बलात्कार, यौन शोषण और यौन उत्पीड़न की घटनाएं कहीं ज्यादा है ! यह भी कड़वा सच है कि महिला चाहे अकेली हो या किसी पुरुष के साथ में, वह आज सुरक्षित नहीं है ! महिलाएं आज न सड़क पर सुरक्षित हैं, न घर पर ! कभी बलात्कारी उसका रिश्तेदार होता है, कभी दोस्त होता है और कभी अजनबी !

16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुई दुष्कर्म की वारदात ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था ! जाहिर है जब तक समाज की दकियानूसी सोच और सुस्तचाल सिस्टम में बदलाव नहीं होता तब तक ऐसी घटनाओं को पूरी तरह रोक पाना मुमकिन नहीं होगा ! बावजूद इसके, इतना तो तय है कि दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म मामले के बाद उमड़े जनसैलाब और गुस्से ने समाज, सियासत और सिस्टम को इस मुद्दे पर नए सिरे से सोचने को मजबूर कर दिया !

हर साल 'निर्भया' की बरसी आएगी और हर बार उसकी कहानी को फिर से याद किया जाता रहेगा ! कोशिश यह होनी चाहिए कि भारत जैसे सभ्य समाज में इस तरह की घटनाओं में कमी आए, समाज जागरूक बने | किन्तु जब तक नौनिहालों को नैतिक शिक्षा नहीं दी जायेगी, यह होना कठिन होगा | लेकिन ऐसी शिक्षा देने का सोचना भी धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ होगा | क्या होगा देश का ?

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