काले अंग्रेजों के होते कैसे सुधरेगी रेल की दशा दिशा ?


रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु का रेलवे के सुधार हेतु आम जनता से सुझाव मांगना स्वागत योग्य है | लेकिन इन सुझावों को सुनने और गुनने की मानसिकता भी आवश्यक है | आज ही मुझे समाजवादी नेता श्री रघु ठाकुर का एक लेख पढ़ने को मिला | लेख के कुछ बिंदु अत्यंत सारगर्भित और विचारोत्तेजक थे | जैसे -

1) रेलवे नौकरशाही का व्यवहार अभी भी राजतंत्रीय है। आजादी के 67 साल बाद भी रेलवे के बड़े-बड़े अधिकारियों को लाने ले जाने के लिये विशेष ट्रेन और कूपे या डिब्बे चलाये जाते हैं। जिस प्रकार राजाओं की सवारियां निकलती थी उसी प्रकार इन उच्च अधिकारियों की यह विशेष गाडि़यां/सेलून होते हैं जिनमें वे सपरिवार सदलबल यात्रायें करते हैं। अंग्रेज शासक तो भारतीयों के साथ यात्रा करना अपना अपमान समझते थे, इसलिए पृथक सेलून में यात्रा करते थे, किन्तु आजादी के बाद सेलूनों का प्रचालन जारी रहना हास्यास्पद भी है और आम भारतीय का अपमान भी | 

रेलवे अधिकारियों के सफ़र हेतु विशेष कोच / सेलून

एक महाप्रबंधक महोदय ने रेलवे परिसर में स्वीमिंग पुल बनाने की योजना मंजूर कर दी और तर्क यह दिया कि यह कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है। आमतौर पर जो कर्मचारी तृतीय या चतुर्थ वर्ग के है उनके सरकारी घरों की हालत यह है कि बरसात में उनके घर पोखर बन जाते हैं, ठंड में पहाड़ी क्षेत्र बन जाते है यानि ठंडी हवाओं के केन्द्र बन जाते है और गर्मी में भट्टी बन जाते हैं। उनके घरों के पास कीचड़ भरा रहता है, जानवर और इंसान सद्भाव के साथ-साथ समय गुजारते हैं। आजादी के बाद बने इन नए राजा-महाराजाओं के खिलाफ कोई शिकायत भी कोई कैसे सुन सकता है ? हमारे सांसदों को भी इन सवालों पर संसद में चर्चा करने की न तो फुर्सत है, न दिलचस्पी और न ही जरूरत। क्योंकि अमूमन यह सांसद अपने पद का इस्तेमाल अधिकारियों से निजी लाभ जैसे अपने रिश्तेदारों, परिचितों और जातीय बंधुओं के तबादलों, पदोन्तियों और ठेकों आदि के लिये करते हैं। उन्हें मतदाताओं से ज्यादा महत्वपूर्ण मनीदाता अफसरशाही होती है। 

2) वर्तमान में भारतीय रेल्वे में 13.5 लाख कर्मचारी है। जबकि 40 साल पूर्व भारतीय रेलवे में 22 लाख कर्मचारी थे | यह घटकर 13.5 लाख कैसे रह गये ? यह कैसा रेलवे का विकास है कि रेल का विकास हो रहा है और कर्मचारी घट रहे हैं। अफसरों की फौज बढ़ रहीं है और नीचे के कर्मचारियों की संख्या में कटौती हो रही है। कुछ श्रेणियों के कर्मचारियों पर काम का इतना बोझ है कि वे शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ्य हो रहे हैं और कुछ एक ने तो आत्महत्या भी कर ली है। 

3) मनरेगा की राशि को नई रेल लाईन के निर्माण पर खर्च करने का प्रावधान किया जाए । इससे जहां एक तरफ हाथ को काम मिलेगा और नई रेल लाईन बिछेगी वहीं दूसरी तरफ भ्रष्टाचार भी सिकुड़ेगा। इस राशि को उसी अंचल में रेल लाईन के निर्माण पर खर्च किया जाना चाहिये जहां के लिये वह निर्धारित है ताकि क्षेत्रीय न्याय हो और सभी हिस्सों में रेल का विकास हो। 

4) सरकार की प्राथमिकता बुलेट ट्रेन चलाने की है | किन्तु विचार किया जाना चाहिए कि जितनी राशि में अहमदाबाद से मुंबई बुलेट ट्रेन की सुरंग तैयार होगी उतनी राशि में देश में 20 हजार किलोमीटर रेल लाईन बिछ सकती है जो 20 करोड़ जनता के लिये उपयोगी होगी। अब तय सरकार को करना है कि वे 20 करोड़ जनता की कीमत पर 2-4 लाख लोगों को सुविधा देना चाहते हैं या फिर वे इस नीति को बदलना चाहते हैं।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें