भगतसिंह का सन्देश



इतिहास में राणा प्रताप ने मरने की साधना की थी | एक तरफ थी दिल्ली के महाप्रतापी सम्राट अकबर की महाशक्ति, जिसके साथ वे भी थे, जिन्हें उनके साथ होना ही था, और वे भी थे जिन्हें प्रताप के साथ होना था | बुद्धि कहती थी – टक्कर असंभव है | गणित कहता था – विजय असंभव है | समझदार कहते थे – रुक जाओ | रिश्तेदार कहते थे – झुक जाओ | राणा प्रताप न बुद्धि की बात को गलत मानते थे, न गणित के विरोधी थे, न समझदारों का प्रतिवाद करते थे, न रिश्तेदारों को इनकार | पर क्या कहते थे राणा प्रताप ? कहते थे – जब मनुष्य की तरह सम्मान के साथ जीना असंभव हो, तब हम मनुष्य की तरह सम्मान से मर तो सकते हैं ! बिना कहे ही शायद उनके मन में था कि सम्मान से मरकर – हम आने बाली पीढ़ियों के लिए जीवन द्वार खुला छोड़ें, कुत्तों की तरह दुम हिलाकर जीते हुए उसे बंद ना कर जाएँ | 

- युग द्रष्टा भगतसिंह

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. ATMA..SHAREER KO ZINJOD KAR RAKH DIYA ....EK,EK SHABD ATMA SAMMAN...DESH PREM ME DOOBA HUA HAI.INKO NAMAN KAISE KARU ..KITNE MAHAN UDGAR HAIN..INKE CHARNO ME KOTI KOTI NAMAN....



    जवाब देंहटाएं