क्या भारत की 'मेक इन इंडिया' की दहाड़ से चीन के पसीने छूटने लगे ?


हाल ही में चीन के एक अखबार में एक रिपोर्ट छपी है जिसका शीर्षक है, “स्टे अलर्ट तो इंडिया'ज़ न्यू आर्म्स पोटैन्श्यल' जिसमें चीन के रक्षा विशेषज्ञों ने खास तौर पर चिंता जताई है कि जबसे मोदी सरकार दिल्ली में आई है, भारत ने कई मोर्चों पर तेज़ी से तरक्की की है। मेक इन इंडिया का नारा सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है कि दुनियाभर के उत्पादों को भारत में बनाकर निर्यात किया जाए | किन्तु इन निर्यातों में रक्षा एवं सैन्य हथियारों का होना चीन को परेशान कर रहा है ।

वह दिन अब बीतते दिख रहे हैं जब अमूमन देखा जाता था कि चीन कभी ब्रह्मपुत्र नदी के उद्गम स्थान में डैम बनाने की धमकी देता तो कभी अनसुलझे सीमा विवाद का बहाना देकर घुसपैठ करता | कभी भारत के पड़ोसी राज्यों को मदद के बहाने भारत की घेराबंदी करता तो कभी पाकिस्तान को आर्थिक एवं सामरिक सहायता देकर भारत की मुश्किलें बढ़ाता | कभी विस्तारवादी नीतियों से दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों को सताता तथा सैन्य शक्ति से गीदड़भभकी झाड़ता। हालांकि दिल्ली में आई नयी सरकार के 7-8 महीने बाद भी चीन यह सब कर तो रहा है पर सबसे बड़ा फर्क अब यह दिख रहा है कि चीन पहले भारत को डराता था, पर अब चीन खुद डरने लगा है। इसका एक प्रमुख कारण है की प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिया गया एक नारा 'मेक इन इंडिया'' ।

चीन को अब इस बात से भी चिंता होने लगी है कि नयी सरकार ने तेज़ गति से भारत के अरुणाचल सहित पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी सुविधाओं, रास्तों, रेलवे ट्रैकों का निर्माण करना शुरू कर दिया है। और तो और भारत की 'लुक ईस्ट' पॉलिसी अब 'एक्ट ईस्ट' पॉलिसी में तब्दील हो गई है, जिसके तहत भारत उन सभी पूर्वी एशियाई देशों से अपने आर्थिक एवं सामरिक संबंध मजबूत कर रहा है, जिनका किसी न किसी कारण से चीन से विवाद है। जैसे की म्यांमार, जापान, फिलीपींस, इत्यादि। यहाँ तक कि भारत अपने सबसे तेज़ सुपरसॉनिक मिसाइल 'ब्रह्मोस' को इन देशों को बेचने की भी तैयारी कर रहा है। नेपाल को भी आर्थिक सहायता देकर उससे अपने पुराने रिश्ते और मजबूत किये हैं । अभी हाल ही में जून माह में रूस से खरीदी अत्याधुनिक विमानवाहक पोत को मोदी ने नौसेना को सौंपते हुए कहा कि हमें तेज़ी से ऐसे युद्धपोत विकसित करने होंगे जिससे भारत अपने सामुद्रिक तटों की रक्षा कर सकेगा।

भारत के कोलकाता बंदरगाह पर ऐसे गश्ती जहाजों का निर्माण हो रहा है जो वियतनाम को बेचे जाने हैं | फिलीपींस के लिए भी 400 मिलियन डॉलर के दो फ्रीगेट युद्धपोत बनाने की पेशकश भारत ने की है। भारत से पुराने सांस्कृतिक संबंध रखने वाले मॉरीशस को भी भारत ने स्वदेशी तौर पर विकसित किये गए जंगी जहाज़ बेचे है। इस प्रकार भारत ने बडी और महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है | भारत आर्थिक के साथ सुरक्षा हितों को भी साध रहा है।

यह बात उल्लेखनीय है कि भारत रक्षा उत्पादों का सबसे बड़ा खरीददार है (दुनिया की कुल ख़रीदारी में 14%) पर मोदी सरकार ने इस स्थिति को तेज़ी से बदलने की ठानी है और अपने लिए आवश्यक रक्षा सामग्री न केवल देश में तैयार करने पर फोकस किया है, वरन अनेक देशों को बेचने की दिशा में भी कदम बढ़ा दिए हैं | और यह स्थिति चीन को परेशान और बेचैन कर रही है | ऐसी कई योजनाओं को अमल में ला दिया है जिनसे कई रक्षा हथियारों, हेलिकॉप्टरों, जहाजों का निर्माण भारत में ही करना संभव हो जाएगा ।

एक चीनी सैन्य अधिकारी का कथन है कि "भले ही हथियारों की बिक्री में अभी भारत अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों से बहुत पीछे हो पर ज़ाहिर है हमें भारत के उभरते ताक़त से सतर्क रहने की ज़रूरत है क्योंकि ना जाने भारत की 'व्यापारिक' तौर पर हथियार बेचने की नीति कब बदलकर हमारे (चीन) खिलाफ 'सामरिक नीति' में परिवर्तित हो जाए।"

साभार - न्यूज़भारती डॉट कॉम 


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