वह भी क्या दिन थे ! गुना भारतीय जनसंघ और मंत्रीजी की भूमिका |

एक प्रेरक व्यक्तित्व स्व. नाथूलाल गोयल "मंत्रीजी" 
(7 अगस्त 1907 - 15 फरवरी 1986)

अटल जी के साथ स्व.नाथूलाल मंत्रीजी 


गुना में भारतीय जनसंघ के आधार रहे स्व. नाथूलाल जी गोयल उपाख्य “मंत्रीजी” का नाम सर्वविदित है | यहाँ तक कि आज भी उनका आवास मंत्रीजी की कोठी के नाम से विख्यात है, बच्चा बच्चा जानता है | नाथूलालजी ने जनसंघ के टिकट पर तीन बार लोकसभा चुनाव और कई बार विधानसभा चुनाव लड़ा | यह वह दौर था जब जनसंघ का चुनाव लड़ना अर्थात अपना मजाक बनबाना था | जीत की तो दूर दूर तक कोई संभावना नहीं | फिर भी चुनाव लड़ा जाता था तो केवल संगठन का विचार और उसका चुनाव चिन्ह सब तक पहुँच जाए, केवल इसलिए | जमानत भी बचना मुश्किल हुआ करता था | केवल मत बढे हैं, मत प्रतिशत बढ़ा है, यह कह सुनकर कार्यकर्ता अपना मनोबल बनाए रखते थे | मंत्री जी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव ग्वालियर की तत्कालीन महारानी श्रीमती विजयाराजे सिंधिया के खिलाफ लड़ा था, जो उस वक़्त कांग्रेस की उम्मीदवार थीं | विचित्र बात तो यह है कि आगे चलकर नाथूलाल मंत्रीजी ने ही श्रीमती विजयाराजे सिंधिया को जनसंघ में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी | यहाँ तक कि श्रीमती सिंधिया ने जनसंघ की सदस्यता का फॉर्म नाथूलालजी के निवास पर भरा था |

दीनदयाल जी की सभा में मंचासीन मंत्रीजी 

१९६० के राज्यसभा चुनाव के समय पूरे देश में केवल मध्यप्रदेश ही ऐसा राज्य था, जहां से जनसंघ का कोई सांसद चुना जा सकता था | इस एक मात्र राज्यसभा सीट के लिए संगठन ने नाथूलालजी का नाम सर्वसम्मति से घोषित भी कर किया | नाथूलालजी हर दृष्टि से इस सम्मान के हकदार भी थे | एक निष्ठावान कार्यकर्ता के रूप में वे पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए मीलों साइकिल से यात्रा करते, अपनी आय का बड़ा भाग पार्टी कार्यों हेतु खर्च करते | ध्येय केवल एक था, पार्टी और उसके राष्ट्रवादी विचार का प्रचार, जिसके लिए उन्होंने कठिन परिश्रम किया | उसी दौरान हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता श्री निरंजन वर्मा ने जनसंघ में प्रवेश किया था | वर्माजी के प्रवेश के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने यह तय किया कि नाथूलालजी की जगह वर्माजी को राज्यसभा की सीट पर भेज दिया जाए जिससे हिन्दूमहासभा का प्रभाव क्षेत्र में पूरी तरह से खत्म हो जाए,यह फैसला पूरी तरह से राजनैतिक था | मंत्रीजी का संगठन के प्रति समर्पण इतना अधिक था कि उन्होंने खुशी खुशी संगठन के इस निर्णय को स्वीकार किया | अभिभूत ठाकरे जी की आँखों में प्रेमाश्रु छलछला आये |

वस्तुतः पार्टी हित को सर्वोपरि मानने वाले ऐसे ही कर्मठ और जुझारू नेताओं के बलिदानों के चलते आज भाजपा का सर्वव्यापी और विराट स्वरुप उभर कर सामने आया है |

स्व.मंत्रीजी ने जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अगुवाई में कश्मीर आंदोलन में भी भाग लिया | आपातकाल के दौरान नाथूलालजी १९ महीने तक अपने भाई रामजीलाल गोयल और पुत्र केशवचन्द्र गोयल के साथ ग्वालियर सेंट्रल जेल में मीसाबंदी रहे | एक ही परिवार के तीन सदस्यों की गिरफ्तारी, अपने तरह की एक अनूठी घटना थी | स्व. नाथूलाल जी मध्य प्रदेश जनसंघ के प्रांतीय अध्यक्ष भी रहे | वे मध्यप्रदेश से प्रारम्भ किये गए समाचार पत्र "दैनिक स्वेदश" के तीन संचालकों में से एक थे.(अन्य दो संचालक थे स्व. रामनारायण शास्त्री और स्व. भ.ल देशमुख)

उनके आवास अर्थात मंत्रीकोठी पर जनसंघ व संघ के सभी वरिष्ठ नेताओं का आना जाना लगा रहता था | श्री दीनदयालजी उपाध्याय,श्री नानाजी देशमुख, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, श्री कुशाभाऊ ठाकरे, श्री सुन्दरलाल पटवा, श्री वीरेन्द्र कुमार सकलेचा, श्री कैलाश जोशी,श्री माणिकचन्द्रजी वाजपेयी,श्री किशोरीलालजी गोयल,श्री नारायण कृष्ण शेजवलकर,श्री गिरिराज कपूर,श्री प्यारेलाल खण्डेलवाल ,श्री नरेश जोहरी ,सुश्री उमा भारती के अतिरिक्त सरसंघचालकों का भी रुकना ठहरना वहां होता रहा | भाजपा के दिवंगत वरिष्ठ नेता श्री खुमान सिंह शिवाजी तो मंत्री कोठी को पुराने जनसंघियों का तीर्थस्थल कहा करते थे |

श्री दत्तोपंत जी ठेंगडी ने अपनी पुस्तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय विचार दर्शन में नाथूलालजी का उल्लेख किया है | आज के वातावरण में जब कि सामान्य से पद के लिए लोग संगठन से विद्रोह का मन बना लेते हैं, या भितरघात कर पार्टी की पीठ में छुरा मारने को तत्पर हो जाते हैं, गुना के स्व. नाथूलाल जी मंत्री जैसे कार्यकर्ताओं का चित्र हठात आँखों के सम्मुख आ खड़ा होता है |


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