ओ मेरे जीवन साथी |



हर एक काटता है बही जो बोता है,
अपने कर्मों का सलीब खुद ढोता है !

लेकिन तप्त सूर्य के प्रखर ताप से,

कजरारे अंधियारे मेघ दिखें आकाश !

हवा के झोंकों से इतराते, इठलाते,

फुहारों से हरें धरती का संत्रास !


साथी का साथ होता है ऐसा ही !

मिलता है सुकून दुःख हो कैसा भी !!

मेघ ओ वायु का मिलन करे जैसे,

जगती को आनन्दित, कुछ बैसा ही !!

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