ऐसा केवल भारत में




निजी कंपनियों की चकाचौंध के बावजूद भारत में सरकारी नौकरियों का आकर्षण कायम है, उसका कारण है सुरक्षित भविष्य | सुरक्षा भी कैसी ? आप 22 वर्ष तक नौकरी पर न जाओ तो भी चलेगा | एक महाशय ए.के. वर्मा ने कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया | लेकिन वे कुछ ज्यादा ही आगे चले गए, जिसका नतीजा उन्हें भुगतना पडा |

श्री वर्मा, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में कार्यकारी इंजीनियर (EE) के पद पर पदस्थ थे और दिसंबर 1990 से लगातार अपने काम से अनुपस्थित । वे छुट्टी पर गए तो लगातार उसे बढ़ाते गए | एक जांच में 1992 में उन्हें "अपने कर्तव्य पालन से इरादतन अनुपस्थित" करार दिया गया | फिर भी उनकी नौकरी लगातार 22 वर्ष बरकरार रही | हाल ही में उन्हें नौकरी से तब बाहर का रास्ता दिखाया गया, जब एक केबिनेट मंत्री ने हस्तक्षेप किया | 

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में श्रम क़ानून (लेबर लॉ) दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा कठोर हैं | जिसका लाभ कर्मचारी उठाते हैं | आपराधिक कदाचार के अतिरिक्त किसी भी अन्य कारण से कर्मचारियों को नौकरी से निकालना कठिन है | राजस्थान और मध्य प्रदेश की सरकारों ने हाल ही में कर्मचारियों की नियुक्ति और निष्कासन ( hire and fire) संबंधी कुछ बदलाव किये हैं | उद्योग जगत ने तो उनका स्वागत किया है लेकिन श्रमिक यूनियनों ने विरोध किया है ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नई दिल्ली में नौकरशाहों ( bureaucrats) के लिए उपस्थिति रजिस्टर पर हस्ताक्षर के स्थान पर फिंगरप्रिंट स्कैनर का उपयोग करने का निर्देश दिया है, जिससे बाद में या पहले हस्ताक्षर कर अनुपस्थिति हो जाने का क्रम टूटा है | क्योंकि इन्हें सार्वजनिक रूप से www.attendance.gov.in वेब साईट पर देखा जा सकता है |

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