जय त्रिपुरारी (शिव महिम्न स्तोत्र का हिन्दी सारांश व भावार्थ)



प्रथ्वी को रथ बना, रवि शशि पहिये रूप,

ब्रम्हा बने सारथी, शंकर योद्धारूप अनूप !

शिव ने धनु नगराज सुमेरु बनाया,

चक्रपाणि विष्णू रूपी तब वाण चढ़ाया !

खेल खेल में त्रिपुरासुर संहार किया था,

बना बहाना मात्र सभी को मान दिया था !

जिस सुरगंगा बौछार, व्योम के तारा गण है,

शीश जटा पर सोहे, ज्यूं जलविन्दु कण है !

वही विन्दु बन सिन्धु, जगत को तारे,

हैं विराट जगदीश्वर, भोले शम्भू हमारे !!

जिसके वाण प्रभाव, देव नर असुर बचे ना,

भस्म हुआ बह काम, कि शिव को अहम रुचे ना !

दे अर्ध अंग निज, हिम तनया को ओढरदानी,

आधीन भक्ती के, एक रूप हुए शम्भू भवानी !

काल जयी ओ काम जयी, मन वाणी पहुँच परे हो,

शारद, ब्रह्म अगम्य भले, कर निज जन शीश धरे हो !

भक्त हेतु धरत शूल, करत कठिन शूल फूल !

हिय की सब हरत हूल, जय जय त्रिपुरारी !!

जयति जयति जग निवास, शंकर सुखकारी !!!



त्रिपुरासुर के आतंक से समूची सृष्टि त्रस्त थी | ऐसे तीन नगर जो हवा में इच्छानुसार उड़ सकते थे, उनका अधिपति था, यह त्रिपुरासुर | उसे नष्ट करने के लिए देवताओं की प्रार्थना पर महादेव उद्यत हुए | प्रथ्वी को रथ बनाया गया, सूर्य और चन्द्र उस रथ के पहिये बने | ब्रह्मा जी सारथी बने | पर्वतों के राजा सुमेरु पर्वत का धनुष बनाकर भगवान विष्णु को बाण के रूप में छोड़कर भगवान शिव ने खेल खेल में त्रिपुरासुर का संहार कर दिया | चाहते तो भगवान शिव स्वयं ही यह कार्य कर सकते थे, किन्तु उन्होंने सबका सहयोग लेकर सबका सम्मान किया, मान बढ़ाया | 

(यहाँ विचारणीय विषय यह है कि कहीं यह पौराणिक आख्यान नगरीय सभ्यता के स्थान पर भारत की आत्मा ग्राम्य जीवन के महत्व को तो नहीं दर्शा रहा ?) 

आकाश के गृह और तारे जिस की बौछार भर हैं, वह सुरगंगा भोलेनाथ की जटा पर एक जलबिंदु के समान सुशोभित हो जाती है | वही बिंदु सिन्धु बनकर समस्त जगत के उद्धार हेतु प्रथ्वी पर गंगा के रूप में प्रवाहित है | हमारे भोलेनाथ जगत के स्वामी हैं, उनका दिव्य विराट स्वरुप है | 

जिस कामदेव के पुष्पबाण के प्रभाव से देवता और असुर कोई नहीं बच पाया, उसे भगवान शंकर ने पल भर में भस्म कर दिया, क्योंकि भगवान अहंकार पसंद नहीं करते | माँ भगवती पार्वती की भक्ति के आधीन होकर अपना आधा शरीर देकर शम्भूभवानी एकाकार अर्धनारीश्वर हो गए | हे कालजई, हे कामजई, आप मन और वाणी की पहुँच से परे हो, आपका वर्णन करने में तो स्वयं ब्रह्मा और सरस्वती भी सक्षम नहीं हैं, इसके बाद भी आपका वरद हस्त अपने इस सेवक के मस्तक पर है | 

आप भक्तों के लिए ही त्रिशूल धारण करते हो, उनके जीवन पथ पर आने वाले कष्ट कंटकों को फूलों जैसा कोमल बनाकर, उनके ह्रदय के दुःख को दूर करते हो, हे त्रिपुरारी, हे जगनिवास, हे सुखदायक भोलेनाथ शंकर आपकी जय हो, जय हो | आपको बारम्बार प्रणाम |

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें