देशद्रोही कौन ? नेहरू या स्वामी ?


आजादी के पहले और बाद में आम भारतीय ने आमतौर पर माना कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु 1945 में ताईवान में हुई एक हवाई दुर्घटना में हुई | यही भारतीयों को बताया भी गया | किन्तु अभी अभी श्री सुब्रमण्यम स्वामी का जो बयान सामने आया है, उसने देशवासियों के मनोमस्तिष्क में भूचाल ला दिया है | 

श्री स्वामी के अनुसार 1945 में ताईवान में कोई हवाई दुर्घटना हुई ही नहीं | उनके अनुसार नेताजी सुभाषचंद्र बोस 16 अगस्त 1945 को वियतनाम के शहर साईगौन से निकलकर मंचूरिया पहुँच गए थे, जो कि उस समय सोवियत संघ के कब्जे में था |  तत्कालीन स्टालिन सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर साईबेरिया की याकुतस्क जेल में डाल दिया |

26 अगस्त 1945 को इसकी जानकारी श्री जवाहरलाल नेहरू को लगी | उन्होंने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखाकर सोवियत सरकार पर दबाब बनाया, जिसके चलते साइबेरिया की जेल में ही नेताजी को मरवा दिया गया |

यह आरोप कोई छोटी मोटी बात नहीं है | अगर यह सत्य है तो आम भारतीय की दृष्टि में बनी हुई नेहरू जी की छवि नष्ट होती है | वे एक झटके में नायक से खलनायक बन जायेंगे (जो कई भारतीय मानते भी हैं, किन्तु मैं बात आम भारतीय की कर रहा हूँ) | ऐसी स्थिति में कोई अच्च्म्भा नहीं कि देश में उन्हें दिया हुआ भारतरत्न वापस लेने की मांग भी उठने लगे | किन्तु अगर यह झूठ प्रमाणित होता है तो फिर श्री सुब्रमण्यम स्वामी पर राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा चलाने की मांग उठना लाजिमी है | यह एक ऐसा समाचार है जिसने नेहरू जी से लेकर अटल जी तक सबको सवालों के घेरे में ला दिया है | यह गढ़ा हुआ मुर्दा बदबू देगा या इतिहास की यह खाद राष्ट्र वृक्ष को पल्लवित पुष्पित कर भविष्य की नई इबारत लिखेगी ? बैसे तो कुछ बातें सार्वजनिक न होना ही समाजहित में होता है | इस प्रकार के खुलासे करना सुब्रमण्यम स्वामी की आदत बन चुका है | इसके पीछे भाजपा सरकार में कोई अहम् दायित्व न मिलने से उत्पन्न खुन्नस है, अथवा स्वयं को समाचारों की सुर्खियाँ बनाए रखने की महत्वाकांक्षा ? क्या वे अटल जी से अधिक राष्ट्रभक्त हैं ?

भाजपा सरकार पर तो यह दबाब बन ही चुका है कि वह नेताजी की मृत्यु से सम्बंधित सारी जानकारी सार्वजनिक करे | इसमें जितना बिलम्ब होगा, उतना ही देश में भ्रम फैलेगा, जो देशहित में तो कतई नहीं होगा | एक अहम् सवाल इस सारे झमेले में से सामने आता है वह यह कि पूर्ववर्ती अटल सरकार ने वे सारे दस्तावेज सार्वजनिक क्यों नहीं किये ? क्या रूस और ब्रिटेन का दबाब उसके पीछे था ? और अगर अटल जी ने विदेशी दबाब के सामने घुटने टेके थे, तो क्या आज मोदी उस दबाब को दरकिनार कर पायेंगे ?
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