शिवपुरी जनसंघ - एक संघर्ष यात्रा


1952 के पहले आमचुनाव में तो भारतीय जनसंघ का कोई भी प्रत्यासी शिवपुरी जिले से चुनाव मैदान में नहीं उतरा | किन्तु 1957 आते आते जनसंघ कि जड़ें शिवपुरी में जमना प्रारम्भ हो गईं | अपनी दबंगता व जुझारू छवि के चलते लोकप्रियता अर्जित कर चुके श्री सुशील बहादुर अष्ठाना ने शिवपुरी महाविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष पद का चुनाव जीता | श्री सुशील बहादुर अष्ठाना एक छोटी सी साईकिल की पंचर जोड़ने की दूकान चलाते थे | 

यह वह काल था जब न गाँव गाँव तक जनसंघ का कोई संगठनात्मक ढांचा था और न ही कोई आर्थिक संसाधन | अगर कुछ था तो कार्यकर्ताओं का अटूट आत्म विश्वास और दृढ निश्चय | और इसी की दम पर 1957 का आम चुनाव लड़ा गया | शिवपुरी विधान सभा क्षेत्र से सुशील बहादुर अष्ठाना तो पिछोर से श्री राजाराम लोदी | हरिनगर ग्राम के निवासी राजाराम जी अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद के सहयोगी रह चुके थे | कार्यकर्ताओं ने पुरानी धोतियों को केसरिया रंग से रंगकर अपने हाथों से झंडे सिले | दीवार लेखन आदि का कार्य भी सबने अपने हाथों से किया | साथ ही शुरू हुआ साईकिल से गाँव गाँव जाकर लोगों से मिलना और पार्टी के लिए वोट माँगने का सिलसिला | 

कार्यकर्ता एक थैले में चने मुरमुरे (लाई) लेकर साईकिल से गाँवों के लिए निकलते | एक गाँव से दूसरे गाँव, धूल भरे कच्चे रास्तों पर दो-दो, चार-चार की टोली में चुनाव प्रचार चलता | जहां भूख लगी, चने मुरमुरे खाए, किसी घर से पानी मांगकर पीया और आगे बढ़ लिए | ऐसा था ५७ का वह चुनाव | आजादी की लड़ाई के दौरान कांग्रेस का संगठन विस्तार हो चुका था, सुद्रढ़ हो चुका था | इसी प्रकार सिंधिया राजवंश का सहयोग हिन्दू महासभा को प्राप्त था | स्वाभाविक ही इन दो दिग्गज पार्टियों के सामने पहली बार चुनाव मैदान में उतरे भारतीय जनसंघ के प्रत्यासी कमजोर सिद्ध होने ही थे | शिवपुरी में कांग्रेस तो पिछोर में हिन्दू महासभा के प्रत्यासी चुनाव जीते | जनसंघ प्रत्यासी अपनी जमानत भी नहीं बचा सके | 

1962 के आम चुनाव में स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ | श्री कौशल चन्द्र जैन ग्वालियर से एक लाल रंग की ओपेल कार कबाड़े में से खरीद लाये | सुशील जी के मित्र व सहयोगी शमशाद मिस्त्री ने उस गाडी पर अपने जौहर आजमाए व उस गाडी को पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए एक अजूबा जैसा बना दिया | 1972 के चुनाव तक यह ऐतिहासिक लाल डिब्बा सुशील जी के हर चुनाव की शोभा बढाता रहा | चुनाव आता और यह लाल रंग की तथाकथित कार शमशाद मिस्त्री और सन्ना ड्राईवर की मदद से चालू हो जाती तथा चुनाव समाप्त होने के साथ ही सुशील जी के घर के सामने स्थित मित्तल जी के बाड़े में पांच साल तक एक कोने की शोभा बढाने पहुँच जाती | 

शिवपुरी जिले में भारतीय जनसंघ के प्रथम अध्यक्ष दीवान दौलत राम ने भी संगठन को नाम मात्र की कीमत पर एक विराटकाय हडसन कार व एक खुली जीप प्रदान कर दी | इस जीप में कीलों से फट्टे ठोककर शमशाद ने उसकी बॉडी बनाई तथा दो तख्ते लगाकर कार्यकर्ताओं के बैठने को सीट ईजाद की | इस जीप जैसे दिखने वाले खटारा की खासियत यह थी कि इसमें ईंधन की टंकी सिरे से नदारद थी | कार्यकर्ता एक कट्टी में पेट्रोल लेकर बैठते जिसे एक लेजम की मदद से इंजिन तक पहुंचाया जाता | एक बार तो हद ही हो गई | धाय महादेव जाते समय गाडी का पहिया निकल गया | शमशाद साथ में ही थे | उन्होंने रास्ते में पडी एक कील उठाकर पहिये को उसके सहारे ही गंतव्य तक पहुंचाने योग्य जुगाड़ कर दिया |

इन्हीं गाड़ियों के सहारे 1962 का चुनाव लड़ा गया | इस बार शिवपुरी से सुशील बहादुर अष्ठाना, पिछोर से राजाराम लोदी के अतिरिक्त कोलारस से वरिष्ठ कार्यकर्ता बाबूलाल जी गुप्ता भी चुनाव लडे | इतना ही नहीं तो वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री प्रसन्न कुमार रावत को लोकसभा चुनाव भी लडवाया गया | यह अलग बात है कि यह चुनाव लड़ने के लिए प्रसन्न जी को अपना अशोकनगर स्थित अपना भवन भी बेचना पडा | हश्र सबका वही हुआ | इस बार भी सबकी जमानत जब्त हुई | 

लगातार की पराजय के बाद भी कार्यकर्ताओं का मनोबल नहीं टूटा | वे दूने जोश से काम में जुटे रहे | संगठनात्मक गतिविधियाँ जारी रहीं | भारत चीन युद्ध के समय रक्षाकोष के लिए व्यापक पैमाने पर धन संग्रह हुआ | संकट की घड़ी में जनसंघ कार्यकर्ताओं ने दलीय भावना से ऊपर उठकर सरकार को हर संभव मदद दी | 1965 में कच्छ के विशाल भूभाग पर पाकिस्तानी घुसपैठ के विरोध में भारतीय जनसंघ का अखिल भारतीय प्रदर्शन दिल्ली में हुआ | शिवपुरी से भी अनेकों कार्यकर्ता प्रदर्शन में सम्मिलित हुए | आंदोलनात्मक कार्य भी जारी रहे | 

उन दिनों अनाज एक जिले से दूसरे जिले में ले जाने पर प्रतिबन्ध था | इस प्रतिबन्ध के कारण किसान तथा व्यापारी अत्याधिक परेशान थे | किसान औने पौने दामों में अपनी फसल बेचने को विवश थे तो व्यापारी भी लगातार घाटा सहन कर रहे थे | इस व्यवस्था के विरोध में पूरे प्रदेश के साथ शिवपुरी में भी प्रभावी आन्दोलन हुआ | सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अपनी गिरफ्तारी दी | 1966 में गौरक्षा आन्दोलन हुआ | लाखों साधू संतों के नेतृत्व में दिल्ली संसद भवन के सामने विराट प्रदर्शन हुआ | शिवपुरी के सभी प्रमुख कार्यकर्ता इस आन्दोलन में भी शामिल हुए | इस आन्दोलन के दौरान पुलिस गोली बारी में अनेक साधू संत व निर्दोष आन्दोलन कारी मारे भी गए | 1967 में महंगाई विरोधी प्रचंड आन्दोलन हुआ | कार्यकर्ताओं ने भोपाल जाकर गिरफ्तारी दी | प्रांत की सभी जेलें भर गईं | उनमें जगह कम पड़ गई | इस प्रकार विषम परिस्थितियों में भी हंसते गाते कार्यकर्ताओं ने संगठन कार्य गतिशील रखा | 

कार्यकर्ता कल कभी जो धार के विपरीत तैरा, 

बल उसी का विजय ध्वज जो आज फहरा !
उन कार्यकर्ताओं को सादर वंदन |

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