संघ तो जैसा पहले था, बैसा ही है और रहेगा |


इस समय देश में दो प्रकार की विचारधाराएँ हैं | एक तो वे जो गांधी और नेहरू से बेइंतहा नफ़रत करते हैं, यहाँ तक कि गांधीहत्या को हत्या न मानकर वध मानते और कहते हैं | ऐसे लोग गांधी जी को मारने वाले नाथूराम गौडसे को देवतुल्य शहीद मानते हैं | यहाँ तक कि उसका मंदिर बनाना चाहते हैं |

दूसरे प्रकार की विचारधारा वाले लोग राजनैतिक स्वार्थ के चलते हर घटना पर राजनीति की रोटियाँ सेकने को तत्पर दिखाई देते है | वे हर चीज को अपने स्वार्थ के चश्मे से ही देखते और प्रतिक्रिया देते हैं | “संघ एक परिचय” पुस्तक के आधार पर इसी प्रकार चर्चा होती दिखाई दे रही है | गांधी जी के दुखद निधन के तत्काल बाद तत्कालीन सरसंघचालक श्री मा.स.गोलवलकर जी ने नेहरू जी और सरदार पटेल को जो पत्र लिखे उनको लेकर टीवी चेनलों पर बहस में भी यही मनोदशा दिखी | कुछ लोग उन पत्रों को नकार कर झूठ बता रहे थे, तथा इसे आरएसएस की छवि सुधारने की कोशिश मान रहे थे | तो सोशल मीडिया पर कुछ लोग इन पत्रों को लिखने के लिए संघ को कोस रहे थे |

दोनों प्रकार की मानसिकता अतिवाद से ग्रस्त हैं | संघ तो जैसा है, सदा से बैसा ही है | संघ का गांधी ह्त्या से कोई लेना देना नहीं था, फिर भी राजनैतिक कारणों से उस पर दोषारोपण किया गया, प्रतिबन्ध लगाया गया | वस्तुतः विभाजन के समय विस्थापितों की मदद में सबसे अग्रणी संघ उस समय लोकप्रियता के चरम पर था | जिससे चिढ कर विभाजन के लिए उत्तरदाई राजनेताओं ने उस पर गांधी ह्त्या का दोष मढ़ा था | गांधी ह्त्या के बाद स्वयंसेवकों के घर जलाए गए, हत्याएं हुईं | बाद में तीन तीन जाँच आयोग बैठाए गए, लेकिन कोई दोष सिद्ध नहीं हुआ | किसी संघ स्वयंसेवक की संलिप्तता नहीं पाई गई | उसके बाद भी संघ पर प्रतिबन्ध जारी रखा गया | फिर हुआ वह ऐतिहासिक सत्याग्रह, जिसमें आजादी के संघर्ष से भी अधिक संख्या में लोगों ने भाग लिया, जेल गए | विवश सरकार को प्रतिबन्ध वापस लेने को विवश होना पड़ा | 

समाज को संगठित करने वाला यह संगठन मानता है कि समाज में दो ही प्रकार के लोग हैं | एक तो वे जो आज संघ के साथ हैं, दूसरे वे जो कल संघ के साथ आयेंगे | अतः किसी के प्रति दुर्भाव न रखा जाए, आत्मीयता और पारस्परिक सद्भाव ही देश विकास की कुंजी है | यही कारण था कि जब गांधी जी के दुखद निधन के बाद संघ स्वयंसेवकों पर प्रहार हो रहे थे, तब गुरूजी ने जेल से पत्र लिखकर स्वयंसेवकों से आग्रह किया कि इन आक्रमणों का प्रतिकार भी न किया जाए | आज ये लोग गलतफहमी का शिकार हैं, कल इन्हें अपनी भूल समझ में आयेगी |

संघ की सदा से हिंदुत्व के विषय में भी स्पष्ट धारणा है | संघ का मानना है कि जो इस देश को प्यार करे, इस देश की परंपरा और संस्कृति में आस्था रखे, इस देश के महापुरुषों पर गौरव करे, वह हिन्दू है | हिंदुत्व का पूजा पद्धति से कोई लेना देना नहीं है | पूजा पद्धति कोई भी हो, राष्ट्रप्रेम ही हिंदुत्व की पहचान है |

कौन होगा जो इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं होगा ? अपने अपने हिसाब से संघ को देखकर धारणा बना लेना, क्या उचित है ? आज के प्रचार प्रधान युग में अगर संघ साहित्य, संघ के वास्तविक स्वरुप से जनता को अवगत करा रहा है, तो उसका कारण संघ कार्य का प्रचार करना नहीं, बल्कि जहां तक मैं समझता हूँ, मुद्दों के प्रति आम राय बनाना अधिक है | समाज संगठन ही संघ की प्राथमिकता है, सत्ता और सरकार के कारण उसमें कोई परिवर्तन आने वाला नहीं है | वह तो कल जैसा था, वैसा ही आज है, और शायद हमेशा वैसा ही रहने वाला है | हाँ उसे देखने वालों के नजरिये बदलते रहे हैं और बदलते रहेंगे |

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