लाला लाजपत राय - जन्म दिवस पर विशेष


पंजाब के फिरोजपुर जिले में एक गांव था-जगरांव। जगरांव में मुंशी राधा किशन का परिवार रहता था। राधा किशन जाति के वैश्य थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी के सिवाय और कोई नहीं था। विवाह के कुछ समय पश्चात उनकी पत्नी गर्भवती हुईं। मुंशी जी इसे ईश्वर की असीम कृपा मान रहे थे। पति-पत्नी दोनों इस बच्चे को लेकर बड़े खुश थे, क्योंकि यह उनका पहला बच्चा था।

सन् 1865 में पंजाब पूरी तरह से अंग्रेजों के कब्जे में था। चारों ओर अंग्रेजों का बोलबाला था, कोई उनके खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत नहीं कर पाता था। जो उनके खिलाफ आवाज उठाता, अंग्रेज सख्ती से उसका दमन कर देते थे। अंग्रेजों का दमन चक्र दिनों-दिन बढ़ता जा रहा था। ऐसे में 28 जनवरी सन् 1865 को मुंशी जी की पत्नी गुलाब देवी ने एक बालक को जन्म दिया। बालक ने अपनी किलकारियों से चारों ओर खुशियां ही खुशियां बिखेर दीं। 

बालक के जन्म की खबर पूरे गांव में फैल गई। बालक के मुखमंडल को देखकर गांव के लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। माता-पिता बड़े लाड़-प्यार से अपने बालक का लालन-पालन करते रहे। वे प्यार से अपने बच्चे को लाजपत राय कहकर बुलाते थे। लाजपत राय के पिता जी वैश्य थे, किंतु उनकी माती जी सिक्ख परिवार से थीं। दोनों के धार्मिक विचार भिन्न-भिन्न थे। वे एक साधारण, महिला थीं। वे एक हिन्दू नारी की तरह अपने पति की सेवा करती थीं।

उनके पिता लाला राधाकृष्ण अग्रवाल पेशे से अध्यापक और उर्दू के प्रसिद्ध लेखक थे। प्रारंभ से ही लाजपत राय लेखन और भाषण में बहुत रुचि लेते थे। उन्होंने हिसार और लाहौर में वकालत शुरू की। किशोरावस्था से ही लाजपतराय की आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद एवं उनके कार्यों के प्रति अनन्य निष्ठा थी। इटली के क्रांतिकारी मैजिनी को लाजपतराय अपना आदर्श मानते थे। किसी पुस्तक में उन्होंने जब मैजिनी का भाषण पढ़ा तो उससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मैजिनी की जीवनी पढ़नी चाही। वह भारत में उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने उसे इंग्लैण्ड से मंगवाया। मैजिनी द्वारा लिखी गई अभूतपूर्व पुस्तक ‘ड्यूटीज ऑफ मैन’ का लाला लाजपतराय ने उर्दू में अनुवाद किया। 

लाल - बाल - पाल 

1897 और 1899 में उन्होंने देश में आए अकाल में पीड़ितों की तन, मन और धन से सेवा की| देश में आए भूकंप, अकाल के समय ब्रिटिश शासन ने कुछ नहीं किया तब लाला जी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा की। इसके बाद जब 1905 में बंगाल का विभाजन किया गया था तो लाला लाजपत राय ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले का पुरजोर विरोध किया । देशभर में उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को चलाने और आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद आया वह समय जब लाला जी की लोकप्रियता से अंग्रेज भी डरने लगे| 

सन् 1914-20 तक अंग्रेजों ने अपने को सुरक्षित रखने के लिए जब लाला लाजपत राय को भारत नहीं आने दिया तो वे अमेरिका चले गए| वहां ‘यंग इंडिया’ पत्रिका का उन्होंने संपादन-प्रकाशन किया| न्यूयार्क में इंडियन इनफार्मेशन ब्यूरो की स्थापना की। इसके अतिरिक्त दूसरी संस्था इंडिया होमरूल भी स्थापित की।

1920 में जब वे भारत आए तब उस समय उनकी लोकप्रियता आसमान पर पहुँच चुकी थी| इसी साल कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में वह गांधी जी के संपर्क में आए और असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए| लाला लाजपतराय के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन पंजाब में जंगल में आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे पंजाब का शेर और पंजाब केसरी जैसे नामों से पुकारे जाने लगे | 

 30 अक्टूबर, 1928 को इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय आयोग लाहौर आया| उसके सभी सदस्य अंग्रेज थे| पूरे भारत में भी इस कमीशन का विरोध हो रहा था। लाहौर में भी ऐसा ही करने का निर्णय हुआ| लाहौर महानगर बंद था, हर तरफ काले झंडे दिख रहे थे और गगनभेदी गर्जन ‘साइमन कमीशन गो बैक, इंकलाब जिंदाबाद’ सुनाई दे रहा था। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में बाल-वृद्ध, नर-नारी हर कोई स्टेशन की तरफ बढ़ते जा रहे थे। फिरंगियों की निगाह में यह देशभक्तों का गुनाह था। साइमन कमीशन का विरोध करते हुए उन्होंने ‘अंग्रेजों वापस जाओ’ का नारा दिया तथा कमीशन का डटकर विरोध जताया। इसके जवाब में अंग्रेजों ने अंधाधुंध लाठी चार्ज किया| 

अपने ऊपर हुए प्रहार के बाद अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा, ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगी’ और सच में इस चोट के बाद कितने ही ऊधमसिंह और भगतसिंह तैयार हुए जिनके प्रयत्नों से हमें आजादी मिली।

लाठियों की मार इतनी गहरी थी कि इस घटना के 18 वें दिन 17 नवम्बर, 1928 को उनका देहान्त हो गया और देश ने लाला लाजपत राय के रूप में एक ऐसा नेता को खो दिया, जो ना सिर्फ युवाओं को संगठित कर सकने में माहिर थे बल्कि उनसे काम निकालने के सभी गुण उनमें थे | जैसे कि वे गरम दल में होने के बाद भी गांधीजी के प्रिय थे। लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया| 

लाला लाजपतराय के व्यक्तित्व के बारे में तत्कालीन मशहूर अंग्रेज लेखक विन्सन ने लिखा था-"लाजपतराय के सादगी और उदारता भरे जीवन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उन्होंने अशिक्षित गरीबों और असहायों की बड़ी सेवा की थी-इस क्षेत्र में अंग्रेजी सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी।"

लालाजी जी को श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था-"भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी। वे अमर रहेंगे।"

लालाजी आज भी भारतीय इतिहास के पन्नों पर अमर हैं।

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