विश्व का एकमात्र मंदिर जहां होती है केवल माता सीता की पूजा ! सीता अष्टमी पर विशेष !





फाल्गुनस्यचमासस्य कृष्णाष्टम्यांमहीपते || 
जाता दाशरथेपत्नी तस्मिन्नहनिजानकी | 
अर्थात् फाल्गुन-कृष्ण-अष्टमी के दिन श्रीरामचंद्र की धर्मपत्‍‌नी जनक नंदिनी जानकी प्रकट हुई थीं | इसीलिए इस तिथि को सीताष्टमी के नाम से जाना गया ||


मध्य प्रदेश के अशोक नगर के छोटे से गांव करीला में दो दिन तक सीता की जय जयकार होती है, क्योंकि यहां राम का नहीं सीता का मंदिर है ! करीला की जानकी मैया की कृपा से जुड़ी किंवदंतियाँ दूर - दूर तक मशहूर हैं ! करीला में माता सीता का मंदिर है, जहां सिर्फ सीता की पूजा होती है ! संभवत: यह देश का इकलौता मंदिर है जहां राम के बगैर सीता है ! माता सीता के त्याग की याद में यहां हर साल बेडिया समुदाय का मेला लगता है, जहां बेड़नियां माता सीता की याद में खूब नृत्य करती हैं !


क्या है माता सीता के मंदिर की कहानी 

ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने जब सीता का परित्याग कर दिया था, तब वे ऋषी वाल्मीकि के आश्रम, करीला में आकर रही थीं ! सीता तब गर्भवती थीं और इस आश्रम में उन्होंने लव -कुश को जन्म दिया और अग्नि परीक्षा दी ! लव-कुश के जन्म पर करीला में खुशियां मनाई गई और अप्सराओं का नाच हुआ ! तभी से इस आयोजन की परंपरा चली आ रही है !

सीता के कथानक में जुड़े ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं हैं, परन्तुं जनश्रुतियां यही कहती हैं कि वाल्मीकि के आश्रम में सीता रही थीं ! जानकी मंदिर के पुजारी भगवान दास महंत बताते हैं कि रंग पंचमी के दिन हजारों भक्तजन यहां पहुंचते हैं और बेडनियों का राई नृत्य चलता है !

यहां मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा की हजारों बेड़िया जाति की नृत्यांगनायें पहुंच कर खूब नाचती हैं ! हिन्दू जनश्रुतियों के मुताबिक जानकी मंदिर में आने वालों की मन्नतें पूरी होती हैं ! सूनी गोदें भर जाती हैं, जीवन में समृद्घि आ जाती हैं और शादी का सपना भी पूरा हो जाता हैं !

इस मंदिर में आने के बाद जिन लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं वे पंचमी के मेले में राई नाच भी करते हैं ! इस मेला में भारी तादाद में नेता, मंत्री और अफसर भी शिरकत करते है ! इस मेले के लिए प्रशासन की तरफ से भी आवश्यक इंतजाम किए जाते हैं !