पिता के साथ जो हुआ उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है 'रंगभेद' :- चिराग पटेल



अमरीका में भारतीय नागरिक सुरेशभाई पटेल के साथ कथित तौर पर पुलिस ज़्यादती से उनके इकलौते बेटे चिराग पटेल पर ज़िम्मेदारियां और बढ़ गई हैं ! सुरेशभाई अभी अस्पताल में अपनी रीढ़ की हड्डी का इलाज करवा रहे हैं ! भारतीय नागरिक सुरेश भाई पटेल पर हुए हमले के बाद अमेरिका के अलबामा में भारतीय मूल के लोगों में गुस्सा भी देखा जा रहा है !

अलबामा के मेडिसन शहर में अमरीकी रक्षा विभाग में कार्यरत चिराग कहते हैं, "मैं सुबह अस्पताल जाता हूं, फिर ऑफ़िस, फिर वापस अस्पताल और उसके बाद फिर घर आता हूं ! डॉक्टर कहते हैं यह तो लंबा चलेगा !"

चिराग का डेढ़ वर्ष का एक बेटा है जिसके मस्तिष्क ठीक तरह से विकसित नहीं है और इसीलिए भारत से उनके पिता सुरेशभाई अपने पोते की देखभाल के लिए आए हुए थे, जब वह हादसे का शिकार हो गए ! अब पटेल परिवार ने सुरेशभाई के कमरे में ही उनके बिस्तर पर उनके वह कपड़े रखे हुए हैं जो उन्होंने पुलिस के कथित हमले के समय पहने थे !

अंग्रेजी न आने के कारण उस समय सुरेश भाई के साथ अमेरिकी पुलिस ने मेडिसन शहर में छह फ़रवरी को पुलिस ने पूछताछ के नाम पर सुरेशभाई के साथ मारपीट की थी और उन्हें गंभीर रूप से ज़ख़्मी किया था ! इस हमले के बाद उनका परिवार और भारतीय समुदाय इस हमले से स्तब्ध है !

सुरेश भाई के पुत्र चिराग पटेल के अनुसार, "सड़क किनारे तो सभी चलते हैं, कभी किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया गया ! हां बस मेरे पिता के मामले में यह था कि उनका रंग गोरा नहीं था !"

अमरीका के कई राज्यों की तरह अलबामा राज्य का भी रंगभेद के मामले में पुराना इतिहास रहा है !

1960 के दशक में जो रंगभेद के हालात थे उनसे तो अब बहुत बेहतर हालात हैं, लेकिन रंग और नस्ल के आधार पर भेदभाव अब भी है ! श्वेत अमरीकी परिवार में जन्में और पले-बढ़े माइकल मैकडोनल्ड का भी मानना है कि अलबामा में रंगभेद की समस्या है !

माइकल कहते हैं, “अलबामा में बहुत रेसिज़्म है, बल्कि पूरे अमरीका में ही नस्ली और रंग के आधार पर भेदभाव है ! अधिकतर मामलों में गोरे लोग अपने घरों में ही यह भावना रखते हैं, लेकिन सुबह से शाम तक रंगभेद के नज़ारे खुले में भी देखे जा सकते हैं !”

चिराग पटेल जिस इलाके में रहते हैं वहां अधिकतर श्वेत लोग रहते हैं, औऱ उनके किसी पड़ोसी ने ही सुरेशभाई को फुटपाथ पर चहलकदमी करते देखा औऱ फोन कर पुलिस बुलाई थी !

चिराग के ही पड़ोस में रहने वाली जेनेट कहती हैं, “हमें बहुत सदमा लगा था जब हमने इस हादसे के बारे में सुना था ! हम तो इनको यह बताने आए हैं कि उनके पिता के साथ जो हुआ उसका हमें भी दुख है ! हम यह भी बताना चाहते हैं कि यह हमला हमारे शहर और मोहल्ले के लोगों को नहीं दर्शाता !”

करीब 45 हज़ार लोगों की आबादी वाले मेडिसन शहर में भारतीय मूल के लगभग 2,000 लोग रहते हैं ! इनमें अधिकतर पेशेवर डॉक्टर, इंजीनियर या होटल व्यवसायी हैं !

भारतीय समुदाय इस घटना से स्तब्ध है !

मेडिसन शहर में हिंदू सांस्कृतिक केंद्र की अध्यक्ष पुष्पा साहू कहती हैं, “पुलिस लोगों की मदद के लिए होती है न कि लोगों को मारने के लिए ! पुलिस को समझना चाहिए कि दुनिया में और भी संस्कृतियां हैं और सब अंग्रेज़ी नहीं बोलते !”

भला हो भारतीय मूल के उन लोगों का जो विषम परिस्थिति से गुजर रहे पटेल परिवार की इस मुश्किल घड़ी में मदद भी कर रहे हैं ! सब ने मिलकर सुरेशभाई के इलाज के लिए करीब 2 लाख डॉलर इकठ्ठा भी किए हैं ! शहर में करीब 40 साल से रह रहे भारतीय मूल के एक चिकित्सक डॉक्टर बीसी साहू इस मामले में भारतीय समुदाय की चिंता जताने के लिए मेयर से भी मिले हैं !

हमले पर अफ़सोस जताते हुए साहू कहते हैं, “हमको अचरज हुआ कि एक बूढ़े आदमी को इस तरह मारा गया, उसे जमीन पर पटक दिया गया ! हमने मेयर से मांग की है कि पुलिस को प्रशिक्षित किया जाए जिससे ऐसे मामले आगे न हों !”

अब अमरीकी जांच एजेंसी एफ़बीआई भी इस मामले की जांच कर रही है ! मेडिसन पुलिस ने इस मामले में एक पुलिसकर्मी को निलंबित कर उसे गिरफ़्तार भी किया है ! अलबामा राज्य के गवर्नर रॉबर्ट बेंटली ने भारत सरकार से इस मामले में खेद व्यक्त किया है ! मामला अब अदालत भी पहुंच गया है, और पटेल परिवार हर्जाने की भी मांग कर रहा है !

एक बड़ा सवाल इस घटना से उपजता है कि क्या अमेरिका में केवल वही सुरक्षित है जो अंग्रेजी बोलते है या जो गोर है ? क्या अमेरिका में अन्य संस्कृतियों को कोई स्थान नहीं दिया जाता है ? आज अमेरिका की बेहतरी में अपना योगदान देने वालों में भारतियों का क्या योगदान है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है ! फिर भी अमेरिकी पुलिस द्वारा एक निहत्ते,बुजुर्ग भारतीय पर केवल अंग्रेजी न बोल पाने के कारण हुआ यह हमला निसंदेह अमेरिकियों की छोटी मानसिकता को भी उजागर करता है ! यदि अमेरिका में जाने से पूर्व अंग्रेजी सीखना आवश्यक है तो क्या अमेरिका से भारत आने से पूर्व वहां के नागरिक हिंदी का ज्ञान लेकर आते है ?

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