भावी बजट के संकेत, तेल की खोज रेत ही रेत ?

वित्‍त मंत्री जेटली ने व्‍यय में और कटौती का दिया संकेत

इस वर्ष भारत का राजकोषीय घाटा नवंबर में ही लक्ष्य के पार चला गया | इससे चिंतित वित्त मंत्री अरुण जेटली ने व्यय में कटौती करने की जरूरत तो बताई, पर आगामी बजट में वे यह कारनामा कैसे करेंगे इसका कोई खुलासा उन्होंने नहीं किया | उनका यह विचार सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है कि उन्हें उधार के धन से काम चलाने में कोई भरोसा नहीं है।
श्री जेटली ने शुक्रवार को मुम्बई में एकत्रित हुए देश के जानेमाने उद्योगपतियों और योजना निर्माताओं को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए उक्त विचार व्यक्त किये | उन्होंने कहा कि जहां तक सरकार का संबंध है, हम व्यय को तर्कसंगत बनाने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि हम नहीं चाहते कि सरकार अनिश्चितकाल तक उधार के धन से काम चलाए। उन्होंने कहा कि अपनी आय से ज्यादा खर्च करने और ऋएर चुकाने का जिम्मा अगली पीढ़ी पर छोड़ देने की पूरी अवधारणा को कभी भी विवेकपूर्ण राजकोषीय नीति नहीं मान सकते ।
जेटली ने व्यय में 10 प्रतिशत की कटौती के अलावा भी कटौती का संकेत दिया जिसकी घोषणा सरकार ने राजोषीय घाटे को बजट में प्रस्तावित 4.1 प्रतिशत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए की थी। हालांकि यह लक्ष्य 31 मार्च को समाप्त हो रहे चालू वित्त वर्ष से चार महीने महीने नवंबर में ही पार हो चुका है।
इस माह पेश होने वाले 2015-16 के आम बजट से पहले जेटली ने स्थिर कर प्रणाली का संकेत दिया और कहा कि राजस्व जुटाने के लिए राज्य और केंद्र की तरफ से कोई अनुचित पहल नहीं होगी। उन्होंने कहा कि बीते 10 साल मौके गंवाने का दशक रहा है। लेकिन अब सरकार सुधारों के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए दृढ़ है।
उन्होंने कहा कि यदि हमने 1991 से 2004 की गति को बरकरार रखा होता तो हम तेज गति से आगे बढ़ रहे होते। लेकिन अनिर्णय और गलत निर्णय की श्रृंखला के कारण हमारे सामने ऐसी परिस्थितियां पैदा हुई जहां हम मौके गंवाते रहे। जेटली ने कहा कि लेकिन इतिहास ने एक बार फिर से मौका दिया। मौजूदा सरकार सुधार के रास्ते पर अग्रसर होने और भारत को उच्च वृद्धि के दायरे में ले जाने के लिए दृढ़ है। उन्होंने इसके लिये उद्योग और नीति निर्माताओं से सक्रिय सहयोग देने का आह्वान किया। सुधार के संबंध में उन्होंने कहा बिजली, ऊर्जा, रेल और बंदरगाह सरकार की उच्च प्राथमिकता में है और संकेत दिया कि इन क्षेत्रों में ज्यादा सार्वजनिक निवेश होगा |
काश सुधारों के नाम पर अमीरों को और अमीर बनाने की नीति के स्थान पर प्रथमतः मंत्रियों और नौकरशाहों की फिजूल खर्ची पर रोक लगाने की दिशा में सरकार आगे बढती दिखाई दे | देश के गाढे खून पसीने की कमाई सबसे ज्यादा इन्हीं सफ़ेद हाथियों के रखरखाव पर खर्च होती है |

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