देखन में छोटी लगे पर घाव करे गंभीर - श्री मार्कंडेय पांडे


फोटो में दिखाई गई वालिका दिल्ली में एक मेट्रो के नीचे फोन कवर बेचती है। इसकी दुकान से मेरे एक पुलिस के मित्र ने कवर लिया। चूँकि कवर पसंद मैं ही कर रहा था और मित्र अपनी वर्दी में थोड़ी दूर खड़ा था। शायद लड़की ने सोचा कि मैं भी पुलिस में हूँ तो 200 का कवर 150 में देने को तैयार हो गई | फिर कहने लगी साहब जो मन करे वह दे दो | 

मेरे व्यवहार से उसे कुछ साहस हुआ तो झिझकते हुए बोली - साहब मेरे भाई बहन का किसी भी स्कुल में नाम नहीं लिखा जा रहा। क्या आप कुछ मदद कर सकते हैं ?

मेरे यह पूछने पर कि नाम क्यों नहीं लिखा जा रहा, उसने बताया कि वह 8 माह पहले सिंध पकिस्तान से अपने 3 छोटे भाई बहन को लेकर भारत आई है ।  

यह सुनकर मैंने कुछ और सवाल भी पूछे | उस लड़की के भाई हनुमान का फ़ोन नंबर भी लिया।  जो दुर्दशा उसने पाकिस्तान में हिन्दुओं की बताई, उसने दिल दहला दिया | उस हिन्दू लड़की ने अपनी और अपने माँ बाप की दुर्दशा की कहानी सुनाई । मैंने उस लड़की की सहमति लेकर उस सारी चर्चा का वीडियो बना लिया, जो मेरे पास है । 

पाकिस्तान के सिंध में हिन्दू लड़की मदरसे में भी नहीं पढ़ सकती। बलात्कार का डर सताता है |इसलिए चौबीस घंटे बारह महीने घर के भीतर छुप कर रहने को विवश है। उसके चाचा अभी भी वहां उनके ही चंगुल में हैं |

मैंने उससे पूछा कि क्या दिल्ली पुलिस उसे परेशान करती है, उसने एक नजर मेंरे वर्दीधारी मित्र पर डाली और कहा, नहीं बस MCD वाले दूकान का सामान फेंक देते हैं।  

क्या क़ानूनी अड़चन है इन बच्चों का स्कुल में नाम लिखवाने में ? अगर है भी तो क्या वे दूर नहीं की जा सकती ? संघ प्रेरणा से चलने वाले सरस्वती शिशु मंदिर जैसे विद्यालय क्या इन गरीब बच्चों के लिखने पढ़ने की कोई व्यवस्था नहीं कर सकते ? 

इन्होंने अपना घर द्वार जमीन संपत्ति और देश छोड़ दिया लेकिन धर्म नहीं छोड़ा न ही अस्मत को गिरवी होने दिया। क्या इन बच्चों के लिए हमारा हिन्दू समाज कोई विचार नहीं करेगा ? 

देश में तमाम आतंकियों को पनाह देने वाले लोग तो बड़ी संख्या में मौजूद हैं, बांग्लादेशी तो मौज कर ही रहे हैं। कौन विचार करेगा इन विस्थापित गरीब हिन्दुओं के विषय में ?

साभार - श्री मार्कंडेय पांडे 
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