ढूंढा जा सकता है मणिपुर से कम्बोडिया के विष्णू मंदिर अंगकोर का मार्ग

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पौराणिक काल का कंबोजदेश कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया। सदियों के काल खंड में 27 राजाओं ने राज किया। कोई हिंदू रहा, कोई बौद्ध। यही वजह है कि पूरे देश में दोनों धर्मों के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। भगवान् बुद्ध तो हर जगह हैं ही, लेकिन शायद ही कोई ऐसी खास जगह हो, जहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई न हो और फिर अंगकोर वाट की बात ही निराली है। ये दुनिया का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है।

विश्व विरासत में शामिल अंगकोर वाट मंदिर-समूह को अंगकोर के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बारहवीं सदी में बनवाया था। चौदहवीं सदी में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने पर शासकों ने इसे बौद्ध स्वरूप दे दिया। बाद की सदियों में यह गुमनामी के अंधेरे में खो गया। एक फ्रांसिसी पुरातत्वविद ने इसे खोज निकाला। आज यह मंदिर जिस रूप में है, उसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का बहुत योगदान है। सन् 1986 से 93 तक एएसआई ने यहाँ संरक्षण का काम किया था। अंगकोर वाट की दीवारें रामायण और महाभारत की कहानियाँ कहती हैं। 

सीताहरण, हनुमान का अशोक वाटिका में प्रवेश, अंगद प्रसंग, राम-रावण युद्ध, महाभारत जैसे अनेक दृश्य बेहद बारीकी से उकेरे गए हैं। अंगकोर वाट के आसपास कई प्राचीन मंदिर और उनके भग्नावशेष मौजूद हैं। इस क्षेत्र को अंगकोर पार्क कहा जाता है। अतीत की इस अनूठी विरासत को देखने हर साल दुनिया भर से दस लाख से ज्यादा लोग आते हैं। 
सियाम रीप क्षेत्र अपने आगोश में सवा तीन सौ से ज्यादा मंदिर समेटे हुए है। शिव और विष्णु के अलावा ता प्रोम का ब्रह्मा मंदिर तो है ही | अंगकोर दुनिया में अपनी तरह का अनूठा पुरा महत्व का स्मारक है। इसका कोई सानी नहीं है। 
अंगकोर वाट के मंदिर अद्भुत, अप्रतिम, अद्वितीय हैं। इसकी मूर्तियाँ जैसे हमें इतिहास बताती हैं, जैसे कहानियाँ सुनाती हैं। पत्थर पर उस युग में ऐसी शिल्पकारी सचमुच अति सुंदर है। सदियों पहले इतने भीमकाय पत्थरों को किस तरह तराशा गया होगा और किस तरह इतनी ऊँचाई तक स्थापित किया गया होगा, आज इसकी कल्पना भी कठिन है। भारत के लिए इनका ऐतिहासिक ही नहीं पौराणिक महत्व भी है। क्योंकि यहाँ रामायण और महाभारत की कथाएँ उकेरी गई हैं।
मणिपुर की सीमा म्यांमार से लगती है । चन्देल ज़िले का मोरेह नगर भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित है | मोरेह से लेकर म्यांमार के कालेमऊ तक सड़क का निर्माण भारत सरकार ने किया है । एक सौ साठ किलोमीटर लम्बी यह सड़क भारत और म्यांमार को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । दोनों देशों के निवासी परमिट लेकर एक -दूसरी ओर कुछ दूर तक आ जा सकते हैं । 

मोरेह से लगभग चार पाँच किलोमीटर दूर म्यांमार का तामु नाम का शहर है । यह इसी नाम के ज़िला का हैडक्वार्टर है । सैकड़ों साल पहले इसी मार्ग से होकर भारत के तीर्थ यात्री कम्बोडिया में स्थित विष्णु के ऐतिहासिक अंगकोर मंदिर की तीर्थयात्रा के लिये जाते थे । अंगकोर मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है । लेकिन कई सौ साल पहले हालात बदल जाने के कारण अंगकोर मंदिर की यह तीर्थयात्रा बंद हो गयी । 

जो भारतीय कभी दुनिया के हर देश में गये थे , इस्लामी आक्रमणों से उत्पन्न हुई स्थिति के कारण , उन्होंने सागर पार का ही निषेध कर दिया । ऐसे वातावरण में भला अंगकोर मंदिर की तीर्थ यात्रा कैसे बच पाती । यात्रा इतिहास के पन्नों में खो गई और मंदिर घने जंगलों में गुम हो गया । अब उसी तीर्थ यात्रा को पुनः शुरु करने के प्रयत्न हो रहे हैं । यदि यह यात्रा शुरु होती है तो मणिपुर की अर्थ व्यवस्था में बहुत लाभ हो सकता है । मणिपुर का मैतयी समाज तो वैष्णव मताबलम्बी ही है । इसलिये इस तीर्थ यात्रा को लेकर सबसे ज़्यादा उत्साह तो उसी में है ।

मोरेह से कालेमऊ तक की यह सड़क स्थलमार्ग से थाईलैंड से जुड़ी हुई है और वहाँ से कम्बोडिया के अंगकोर मंदिर तक सड़क जाती है । भारत-थाईलैंड-कम्बोडिया में अंगकोर मंदिर की इस यात्रा को लेकर यदि कोई व्यवस्था बन जाती है तो इन तीनों देशों में पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकता है । वैसे मणिपुर की राजधानी इम्फ़ाल को असम से रेलमार्ग से जोड़ने के प्रकल्प पर भी कार्य चल रहा है और इम्फ़ाल से आगे रेल की पटडी को मोरेह तक लाने की भी योजना है । इस प्रकल्प के पूरा हो जाने से भारत म्यांमार रेल मार्ग से भी जुड़ जायेगा ।

फिलहाल तो मणिपुर के चन्देल ज़िले की सीमा से बाहर जाना शाम छः बजे बाद कठिन हो जाता है । अर्ध सैनिक बल इसकी अनुमति नहीं देते । दरअसल इसी मार्ग से होकर अवैध नशीले पदार्थों का व्यापार होता है । यह नशा तस्करी का अन्तर्राष्ट्रीय मार्ग है । पुलिस पकड़ने की कोशिश करती रहती है । लेकिन यहाँ आम धारणा यह भी है पुलिस पकड़ने की कोशिश भी करती है और नशा तस्करों को सुरक्षित रास्ता मुहैया करवाने की कोशिश भी करती है । सवाल केवल इतना ही है कि आपसी तालमेल की 'डील' सफलता से हो गई है या नहीं ? लेकिन यह कहानी शायद देश की सभी सीमाओं पर है । 

पंजाब में भारत की पाकिस्तान से लगती सीमा पर भी यही कहानी खेली जाती है और इधर मणिपुर में भारत म्यांमार सीमा पर भी यही खेल चल रहा है । मणिपुर भी बुरी तरह नशों की चपेट में आ चुका है । मणिपुर सरकार के कुछ मंत्रियों पर आरोप लगते रहते हैं कि वे नशा तस्करों को या तो संरक्षण प्रदान करते हैं या फिर उन के साथ आर्थिक हिस्सेदारी निभा रहे हैं । लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यदि मोरेह में भारत म्यांमार सीमा पर अतिरिक्त ईमानदार चौकसी बढ़ाई जाये तो नशा तस्करी को रोका जा सकता है ।

- साभार श्री कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री 
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