रहस्य ही रहेगा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु का रहस्य |

सुभाष चंद्र बोस पर मोदी ने खड़े किए हाथ



विगत माह सुभाषचन्द्र बोस जयन्ती पर मेरठ में आयोजित एक कार्यक्रम में श्री सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा, 'द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नेताजी को वॉर क्रिमिनल घोषित कर दिया गया तो उन्होंने एक फर्जी सूचना फ्लैश कराई गई कि प्लेन क्रैश में नेताजी की मौत हो गई। बाद में वह शरण लेने के लिए रूस पहुंचे, लेकिन वहां तानाशाह स्टालिन ने उन्हें कैद कर लिया। स्टालिन ने नेहरू को बताया कि नेताजी उनकी कैद में हैं क्या करें? इस पर उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को इसकी सूचना भेज दी और कहा कि आपका वॉर क्रिमिनल रूस में है। साथ ही उन्होंने स्टालिन को इस पर सहमति दे दी कि नेताजी की हत्या कर दी जाए।' 

बीजेपी नेता ने कहा, 'उस वर्ष 1945 में ताइवान में कहीं भी कोई हवाई दुर्घटना न तो दर्ज है और न ही बोस का नाम मृतकों की सूची में शामिल है। जवाहरलाल नेहरू के तत्कालीन स्टनॉग्रफर श्यामलाल जैन मेरठ के ही थे। उन्होंने खोसला कमिशन के सामने अपने बयान में बताया था कि रूस के प्रधानमंत्री स्टालिन ने संदेश भेजा था कि 'सुभाष चंद्र बोस हमारे पास हैं, उनके साथ क्या करना है?' उन्होंने बताया था कि इस पत्र का जवाब प्रधानमंत्री नेहरू ने 26 अगस्त 1945 को आसिफ अली के घर बुलाकर उनसे ही लिखवाया था। स्वामी ने कहा कि इसी अहसान में नेहरू हमेशा रूस से दबे रहे और कभी कोई विरोध नहीं किया। उन्होंने कहा कि नेताजी की मौत के रहस्य से पर्दा उठेगा और सच सामने आएगा कि देश के गद्दार कौन थे। बीजेपी नेता ने कहा कि इस बारे में उनकी केंद्र सरकार से बात हो रही है। वादा किया कि अगले साल जब वह नेताजी के जयंती समारोह में शामिल होने मेरठ आएंगे तो सारे दस्तावेज और संबंधित फाइलें उनके पास होंगी। 

लेकिन आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रहस्यमयी गुमशुदगी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की लिए डाली गई आरटीआई के जवाब में प्रधानमंत्री ऑफिस ने कहा है कि पीएम के पास इन गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने का अधिकार नहीं है। पीएमओ ने कहा है कि पब्लिक रिकॉर्ड रूल 1997 और ऑफिस कार्यपद्धति के नियम में कहीं भी ऐसा जिक्र नहीं है कि प्रधानमंत्री अपने विवेक से किसी गोपनीय फाइल को सार्वजनिक कर सकता है।

तिरुअनंतपुरम के आईटी प्रफेशनल श्रीजीत पानिकर ने पीएमओ में आरटीआई आवेदन डालकर पूछा था कि क्या प्रधानमंत्री के पास कोई विशेषाधिकार है कि वह किसी गोपनीय फाइल को सार्वजनिक कर नैशनल अर्काइव को भेज दें।

पिछले साल दिल्ली के आरटीआई ऐक्टिविस्ट सुभाष अग्रवाल ने पीएमओ से नेताजी से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की अपील की थी। तब भी मोदी सरकार ने इन फाइलों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था। सरकार ने तर्क दिया था कि इन फाइलों के सार्वजनिक होने से भारत के रिश्ते दुनिया के देशों से बिगड़ सकते हैं।

सुभाष चंद्र बोस को ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नजरबंद किया था। नेताजी 1941 में देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिए गायब हो गए थे। तब नेताजी ने जापान की मदद से इंडियन नैशनल आर्मी का गठन किया था।

1945 से नेताजी का कुछ पता नहीं चला। तब उनके ठिकानों के बारे में किसी को ज्यादा पता नहीं था। मुखर्जी कमिशन ने उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया था, जिसमें बताया गया था कि नेताजी का निधन ताइवान में 18 अगस्त 1945 को ताइहोकु एयरपोर्ट प्लेन क्रैश में हो गया था।

पिछले साल जनवरी में लोकसभा चुनावी कैंपेन के दौरान राजनाथ सिंह ने नेताजी के जन्मस्थान कटक में उनके 117वीं जयंती के मौके पर यूपीए सरकार से इनकी मौत से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि देश के नागरिकों को अपने स्वतंत्रता सेनानी की मौत के बारे में जानने का हक है। अब राजनाथ सिंह केंद्रीय गृह मंत्री हैं। सिंह ने दावा किया था कि दस्तावेजों के सार्वजनिक करने में व्यापक जनहित जुड़ा है।


अब सवाल उठता है कि क्या इसी प्रकार आरोप प्रत्यारोप चलते रहेंगे और सच पर हमेशा पर्दा पड़ा रहेगा ? एक बात तो दिन के उजाले की तरह साफ़ है कि भारत में सरकार कोई भी बने, विदेशी दबाब उसे प्रभावित करते ही हैं | नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय आदि की संदिग्ध मौतों का सच जानने का भारत की जनता को शायद कोई अधिकार ही नहीं है | शायद हम आजादी के मुगालते में हैं |

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