जनादेश के अपमान का परिणाम भुगत रहे हैं नीतीश


बिहार की उठापटक पर सारे देश की निगाहें टिकी हुई हैं | जहां एक ओर नीतीश खेमे ने जनता दल यू का नेता नीतीश कुमार को चुनकर 130 विधायकों के समर्थन का पत्र राज्यपाल को भेजकर सरकार बनाने का दावा पेश किया है, तो दूसरी ओर जीतन राम मांझी ने जनता दल यू के खिलाफ जंग का एलान कर दिया है | 
स्वाभाविक ही जनता दल यू और कांग्रेस इसे भाजपा का षडयंत्र बता रहे हैं तो भाजपा सदन के फ्लोर पर बहुमत सिद्ध करने की चुनौती दे रही है | बैसे वस्तुस्थिति यह है कि 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जनतादल यू के 115 विधायक हैं, जिनमें से बमुश्किल एक दर्जन ही मांझी से साथ हैं | अतः राष्ट्रीय जनता दल के 24 व कांग्रेस के 5 विधायकों के सहयोग से बहुमत  का जादुई आंकड़ा 122 जुटाना नीतीश के लिए कठिन तो दिखाई नहीं देता |

किन्तु सबसे महत्वपूर्ण विचारणीय बिंदु यह है कि इस समस्त घटनाचक्र में भविष्य की क्या संभावनाएं बन सकती हैं | क्या जीतनराम को भाजपा का पिट्ठू, गद्दार जयचंद कहकर नीतीश कुमार बिहार की जनता की सहानुभूति प्राप्त कर पायेंगे ? या भाजपा मोदी लहर के कहर में जनता दल यू तथा राष्ट्रीय जनता दल की संयुक्त रणनीति को ध्वस्त करने में सफल होगी ?एक सवाल यह भी महत्वपूर्ण है कि आखिर नीतीश कुमार ने अच्छी भली चलती सरकार के नेता पद से त्यागपत्र क्यूं दिया ? उन्होंने स्वयं मुख्यमंत्री पद छोड़कर मांझी को मुख्य मंत्री क्यों बनाया ? उन पर तो लालू की तरह कोई चारा घोटाले जैसी कालिख भी नहीं लगी थी | 
इस सवाल का एक ही जबाब है और वह है नीतीश कुमार का अति अहंकार | भले ही देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को देश का प्रधान चुन लिया हो, किन्तु नीतीश कुमार का ईगो यह मानने को तैयार ही नहीं था | केंद्र में होने वाली बैठकों में उन्हें जाना ही पड़ता और वहां बिहार के मुख्य मंत्री के रूप में उन्हें देश के प्रधान मंत्री के सम्मुख निचली पायदान पर बैठना ही पड़ता | कभी प्रधान मंत्री बिहार आते तो उन्हें अगवानी करने भी जाना ही पड़ता | और अहंकारी नीतीश कुमार को यह गवारा नहीं था | मांझी को मुख्यमंत्री बनाना भी उनका अहंकार ही था | वे यह बताना चाहते थे कि वे कितने शक्तिमान है, कि अपने अदने से प्यादे को भी प्रदेश का मुखिया बना सकते हैं | 


ईश्वर के विषय में कहा जाता है कि वे अहंकार के शत्रु है | अपने यहाँ कहा भी गया है कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि | अहंकारी का सर हमेशा नीचा होता है | सो अब नीतीश कुमार को भुगतना ही था और वे भुगत भी रहे हैं | आगे शायद और ज्यादा भुगतेंगे | भाजपा जीते चाहे हारे, नीतीश की हार तय है | लालू नीतीश गठबंधन की जीत में भी, लालू उन्हें कदम कदम पर अपमानित करेंगे ही, यह तय है | मोदी को प्रधान मंत्री बनाने के जनादेश का अपमान करने का जो पाप नीतीश ने किया है, उसका दुष्परिणाम उन्हें भुगतना ही होगा |

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