मदर टेरेसा - नर्क की परी या स्वर्ग की देवी ?


यह सही है कि रात्रि के समय नील गगन में फैले चाँद सितारे आकर्षक और सुन्दर दिखते हैं, किन्तु यदि कोई उस सुन्दरता को निहारते निहारते, जमीन पर रेंगते विषधर सर्प के दंश का शिकार हो जाये, तो क्या उसे समझदार कहेंगे ? कुछ कुछ ऐसा ही हो रहा है आज हमारे देश में | संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने सहज भाव से मदर टेरेसा के सेवा कार्यों की प्रशंसा करते करते यह भी कह दिया कि उनके सेवा कार्य निःस्वार्थ नहीं थे, उनके पीछे का मूलभाव गरीब भारतीयों को ईसाई बनाना था | तो इसमें क्या गलत कह दिया ?

आज ही श्री वेदप्रताप बैदिक जी ने अपने लेख में वर्णन किया है कि – वे अपनी सेवाएँ देने के लिए भारत ही क्यों आईं ? अमेरिका क्यों नहीं गईं ? वे यूरोप में पैदा हुई थीं, स्वयं उनका अपना देश अल्वानिया यूरोप के पिछड़े देशों में से एक था | वे वहीं रहकर गरीबों की सेवा क्यों नहीं कर सकती थीं ? उनका लक्ष्य गरीबों की सेवा नहीं, गरीबों को ईसाई बनाना था |

वैदिक जी ही क्यों अनेक विदेशी विद्वानों ने भी समय समय पर उनकी इससे कहीं अधिक कटु आलोचना की है | 1968 में प्रख्यात लेखक क्रिस्टोफर हिचेन्स ने उन पर सबसे अधिक कठोर टिप्पणी की थी | उन्होंने मदर टेरेसा को "नर्क की परी" कहकर संबोधित किया था और उनके गर्भपात संबंधी क़ानून की धज्जियां उड़ाने वाले कृत्य की आलोचना की थी | उनके अनुसार मदर टेरेसा केवल वेटिकन के भ्रष्ट, दक्षिणपंथी राजनीतिक नेताओं का उपकरण भर थीं | उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि कितना आश्चर्य जनक है कि जिसे गरीबों का शोषक कहा जाना चाहिए था, उसे कैथोलिक चर्च ने अपने प्रचार तंत्र की मदद से मसीहा बनाकर सामने ला दिया |

प्रोफ़ेसर लारिवी कहते हैं कि मदर टेरेसा ने विभिन्न बेंक खातों में करोड़ों डॉलर जमा किये, यहाँ तक कि उन्हें हैती की तानाशाह सरकार से अनुदान लेने में भी कोई आपत्ति नहीं हुई | गरीबों के नाम पर एकत्रित इस धनराशी को सदा गुप्त रखा गया | लगभग 300 दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे | मदर टेरेसा के संदिग्ध राजनैतिक संपर्क, प्राप्त अकूत धनराशि का संदिग्ध प्रबंधन, विशेष रूप से गर्भपात, गर्भ निरोधक और तलाक के बारे में कट्टर विचार को उन्होंने सवालों के घेरे में लिया |

मार्च 2013 में प्रकाशित यूनाइटेड किंगडम के 'डेली मेल' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, मदर टेरेसा के आलोचकों की एक बड़ी संख्या उनकी दैवीय छवि पर सवाल खड़े करती रही है | विदेशी भले ही मदर टेरेसा को नर्क की परी कहें, भारत के वामपंथी और सिक्यूलर मित्र तो उन्हें देवी ही मानेंगे | आखिर “हिन्दुओं और भारत” की जड़ों में मट्ठा डालने वालों को सर आँखों पर जो बैठाना है |

जागो भारत जागो !!

मदर टेरेसा अल्बानिया में पैदा हुईं, 1910 में 18 साल की उम्र में वे नन बन गई । उन्होंने कलकत्ता में 'मिशनरीज ऑफ़ चेरिटी' की स्थापना की, 2003 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें संत की उपाधि दी और 87.वर्ष की उम्र में 1997 में कलकत्ता में उनका निधन हो गया।
आधार - http://www.msn.com/en-in/news/national/rss-chief-bhagwat-not-the-first-many-questioned-mother-teresa-in-the-past-too/ar-BBhUx39?ocid=UP97DHP

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें