पश्चिम बंगाल की भयावह तस्वीर भाग 1 - जेनेट लेवी


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http://www.americanthinker.com/articles/2015/02/the_muslim_takeover_of_west_bengal.html अमेरिकन थिंकर में प्रकाशित एक विचारपूर्ण आलेख के अनुवादित अंश - डॉ पीटर हैमंड साउथ अफ्रीका के एक जानेमाने ईसाई मिशनरी हैं, उनकी लिखी चालीस पुस्तकों में से एक है “Slavery, Terrorism and Islam” (गुलामी, आतंकवाद और इस्लाम)| पुस्तक में डॉ. हेमंड दुनिया भर के देशों का उदाहरण देकर कहते हैं कि किस प्रकार जनसंख्या में मुस्लिम अनुपात बढ़ने पर वहां दंगे बढ़ते हैं, अन्य मतावलंबियों की अभिव्यक्ति और धार्मिक आस्थाओं पर प्रतिबन्ध लग जाता है और राजनीति पर वे काबिज हो जाते हैं | जिन देशों में यह कदम-दर-कदम परिवर्तन हो रहा है, वहां भी यही सब होगा, यह समझकर उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए, यह खतरे की घंटी है।

ये सामाजिक परिवर्तन होने का मुख्य कारण वह पुरानी परम्परा है, जिससे अंधभक्त मुसलमान बंधे हुए हैं | इस्लामी शास्त्रों के अनुसार 1400 साल पहले हजरत मोहम्मद का भी मक्का से मदीना प्रत्यावर्तन हुआ था | तभी से धार्मिक फतवे या हिजरा के अनुसार इस्लामी विस्तारवाद, दूसरे शब्दों में कहें तो सभी गैर-मुसलमानों को शरीयत या इस्लामी सिद्धांत मान्य करने को विवश करना जायज है | 

इस्लामी विस्तारवाद का ही एक रूप है जिहाद | अतः मुस्लिम सबसे पहले जिस देश में जाते हैं, वहां मेजबान देश के भीतर विशेष दर्जा और विशेषाधिकारों के लिए मांग करते हैं। मेजबान देश में मुसलमानों के आबादी बढ़ते ही वे जल्द ही राजनीतिक प्रक्रियाओं, कानून प्रवर्तन, मीडिया, और अर्थव्यवस्था पर हाबी हो जाते हैं | और प्रभावी होते ही आंदोलन, भाषण और धार्मिक प्रथाओं की स्वतंत्रता पर स्वतः प्रतिबंध लग जाते हैं |

मुस्लिम बहुल बांग्लादेश की सीमा से लगे होने के कारण हिंदू बहुल भारत में पश्चिम बंगाल, तेजी से बढ़ती मुस्लिम आबादी व उसके कारण गैर-मुस्लिम समाज के समक्ष उत्पन्न चुनौतियां व समस्याओं को दिखाता है।

एक जातीय-सांस्कृतिक क्षेत्र बंगाल को राजनीतिक रूप से 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन के समय स्वतंत्र भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया गया था । इस व्यवस्था के तहत, बंगाल प्रांत दो हिस्सों में बंटा - हिंदू बहुल पश्चिम बंगाल भारत में रहा और मुस्लिम बहुल ईस्ट बंगाल पाकिस्तान का राज्य बना जो 1971 में मुस्लिम बहुल देश बांग्लादेश बन गया ।विभाजन के समय पश्चिम बंगाल की मुस्लिम आबादी 12% और ईस्ट बंगाल में 30% हिंदू आबादी थी । किन्तु बड़े पैमाने पर मुस्लिम आप्रवास, हिंदू उत्पीड़न और जबरन धर्मांतरण के चलते 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल की मुस्लिम आबादी, (कुछ जिलों में 63% तक) में 27% की वृद्धि हुई है और बांग्लादेश की हिंदू आबादी में 8% की कमी आई है। 

बांग्लादेश में तो हिंदुओं के लिए स्थिति निश्चित रूप से गंभीर है ही, वहीं सरकार द्वारा अपनाई गई मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के कारण पश्चिम बंगाल भी आतंकवादियों की प्रजनन भूमि और सुरक्षित पनाहगाह में बदल गया है, जिसके कारण हिंदुओं के लिए जीना मुहाल हो गया है। कई वर्षों से पश्चिम बंगाल योजनाबद्ध दंगे झेल रहा है, जिनका स्पष्ट उद्देश्य होता है प्रदेश में शरिया लागू करना, सरकार से अधिक से अधिक रियायतें प्राप्त करना और अधिक क्षेत्र को हड़पना ।

कोलकाता दंगे

2007 में बांग्लादेशी नारीवादी लेखक, चिकित्सक और मानवाधिकार कार्यकर्ता, तस्लीमा नसरीन के खिलाफ एक हिंसक विरोध प्रारम्भ हुआ | नसरीन के खिलाफ प्रदर्शनकारियों का उद्देश्य इस्लामी ईश निन्दा कानून को मान्यता दिलाना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना था ।एक बांग्लादेशी मुसलमान परिवार में पैदा हुई नसरीन को नास्तिक घोषित कर दिया गया, क्योंकि उसने अपने चिकित्सकीय जीवन में इस्लामी महिलाओं की भीषण दुर्दशा देखी थी | तथा वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, महिलाओं के अधिकार, गैर-मुस्लिमों के अधिकार और शरिया कानून के उन्मूलन वकालत कर रही थी । 

1993 में उसने एक उपन्यास लज्जा (शर्म की बात है) प्रकाशित किया, जिसमें मुसलमानों द्वारा सताए एक हिंदू परिवार का वर्णन था | उपन्यास ने मुस्लिम समुदाय में गुस्से की आग प्रज्वलित कर दी | उन्होंने किताब पर प्रतिबंध लगाने की मांग के साथ साथ तसलीमा नसरीन की मौत के लिए एक इनाम भी घोषित कर दिया । बाद में भारतीय अधिकारियों ने वह उपन्यास प्रतिबंधित भी कर दिया गया । इसके बाद भी नसरीन पर शारीरिक रूप से हमला किया गया, किसी प्रकार जान बचाकर छुपते छुपाते वह बांग्लादेश के रास्ते से यूरोप पहुंची । 

10 साल के निर्वासन के बाद, वह वापस आई और कोलकाता में बस गई । उसके भारत यात्रा का बांग्लादेशी पासपोर्ट रद्द कर दिया गया था और अधिकृत वीजा के लिए उसे कई वर्ष इंतजार करना पडा । सिर काट दिए जाने की धमकी के बाबजूद उसने कोलकाता में रहकर इस्लाम की आलोचना में लेख लिखना जारी रखा।नवंबर 2007 में, नसरीन के खिलाफ आतंकवादी मुसलमानों द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन ने दंगे का रूप ले लिया | यातायात अवरुद्ध किया गया, पुलिस और पत्रकारों के साथ मारपीट की गई, कारों और बसों में तोड़फोड़ कर आग लगा दी गई । पेरिस में हुए चार्ली हेब्दो हत्याकांड के समान ही पश्चिम बंगाली मुसलमानों ने शरीयत निन्दा कानून के उल्लंघन के खिलाफ उस कृत्य को उचित बताते हुए उसका समर्थन किया | उनका कहना था कि जो इस्लाम की आलोचना करने की हिम्मत करेगा, वह अपनी मौत को निमंत्रण देगा | 

हालत इतने बिगड़े कि सेना को हस्तक्षेप करने के लिए विवश होना पड़ा तथा नसरीन को घर में नजरबंद कर दिया गया तथा बाद में उसे इलाका छोड़ने के लिए ही मजबूर किया गया । माना जाता है कि भारत के प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट (सिमी) और पाकिस्तानी इंटर सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने हिंसा को बढ़ावा दिया | 

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