शिवपुरी में भारतीय जनता पार्टी के स्वर्गारोहण की औपचारिक घोषणा भी संपन्न |



यूं तो पार्टी का शीर्ष नेतृत्व लम्बे समय से शिवपुरी में संगठन को शून्य मानता आया है | स्व. कुशाभाऊ ठाकरे तो इसे पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ चर्चा में सहज स्वीकार करते भी थे | और इसीलिए वे सदा शिवपुरी जिले में राजपरिवार की राय को ही तवज्जो देते थे | राजमाता या उनके निजी सहायक सरदार आंग्रे ही सदा किसी चुनाव में कौन प्रत्यासी हो, यह तय करते थे | इसी की बानगी थी कि लोकसभा जैसे महत्वपूर्ण चुनाव में भी ऐसे व्यक्ति को लड़वा दिया गया, जो कभी भाजपा का सदस्य ही नहीं बना | न चुनाव लड़ने के पूर्व और न चुनाव लड़ने के बाद | मिलीजुली कुश्ती शिवपुरी का प्रारब्ध बन गई | इसी कारण पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी सहज ही पार्टी निष्ठां के स्थान "राजपरिवार शरणं गच्छामि" में ही अपनी भलाई समझी |

किन्तु कल पोहरी जनपद अध्यक्ष चुनाव में जो कुछ हुआ, उसने तो पार्टी के ताबूत में आखिरी कील भी ठोक दी | पोहरी में कल इतनी अधिक भीषण हिंसा हुई कि पुलिस को स्थिति संभालने के लिए हवाई फायर भी करने पड़े | अनेक लोग हताहत हुए हैं | यद्यपि यह चुनाव दलीय आधार पर नहीं थे, किन्तु पार्टी के विधायक पार्टी के पूर्व मंडल अध्यक्ष के खिलाफ खुलकर नजर आये | इतना ही नहीं तो खूनी संघर्ष में भी विरोध पक्ष के सहयोगी की भूमिका निवाहते रहे | विगत लोकसभा चुनाव में भी उक्त विधायक महोदय ने खुलकर भीतरघात किया था | किन्तु पार्टी में कहाँ हिम्मत थी कि राजपरिवार के खासमखास पर कोई नकेल कस पाती ? 

घटना का जो विवरण प्राप्त हुआ है, वह अत्यंत चोंकाने वाला है | बताया जाता है कि यादव समुदाय के दो सदस्य कांग्रेस खेमे से खिसककर भाजपा खेमे में जा पहुंचे। इससे अध्यक्ष पद के चुनाव में बाजी पलटती हुई नजर आई तो कांग्रेसियों ने निर्णय लिया कि जो सदस्य उन्हें छोड़कर गये हैं उन्हें हर हालत में सबक सिखाया जायेगा। और जैसे ही वे लोग वोट डालने आए उन दोनों को खींचने की कोशिश की गई । स्वाभाविक ही भाजपा के लोगों ने इसका विरोध किया | इसके बाद हिंसक झड़प प्रारम्भ हो गई | 

कांग्रेस समर्थक अपने ट्रेक्टर ट्रालियों में पहले ही पत्थर भरकर लाये थे | जिनका खुलकर प्रयोग हुआ, गाड़ियां चकनाचूर कर दी गईं और जमकर मारपीट की गई | पुलिस ने पहले लाठी चार्ज और अश्रू गैस के गोले छोड़कर हिंसा को शांत करने की कोशिश की, लेकिन जब इसका कोई परिणाम नहीं निकला तो पुलिस ने हवाई फायरिंग की जिससे पूरे इलाके में भगदड़ का वातावरण उत्पन्न हो गया। गोली चालन से कम से कम छह लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं । 

गोली कांड के बाद यह समाचार प्रसारित किया गया कि चुनाव स्थगित हो गया है | किन्तु विधायक महोदय ने प्रशासन पर दबाब डालकर हिंसाग्रस्त माहौल में भी चुनाव संपन्न करवाया | और आपाधापी का लाभ उठाकर कांग्रेस समर्थित प्रत्यासी को दो वोटों से विजई घोषित करवा दिया | मजा यह कि विरोध में जो प्रत्यासी था, वह बेचारा भी अपना वोट नहीं डाल पाया | 

प्रशासन ने अपनी नाक बचाने के लिए दूसरे दिन बेईमानी से जिताए गए जनपद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सहित 300 अज्ञात लोगों के विरुद्ध शासकीय कार्य में वाधा तथा हत्या के प्रयत्न जैसी गंभीर धाराओं में मामले दर्ज किये गए हैं | वहीँ एक कांग्रेसी कार्यकर्ता की शिकायत पर भाजपा के पराजित जनपद अध्यक्ष प्रत्यासी व उनके सहयोगियों के खिलाफ भी इन्हीं धाराओं में क्रोस केस दर्ज किया है | अब पुलिस की तो पौबारह है | अज्ञात के नाम पर व्यापक भयादोहन का अवसर तो मिल ही गया है, खुलकर खेलेंगे |

अतः अगर यह कहा जाए कि शिवपुरी में भाजपा नामशेष हो चुकी है तो कुछ भी गलत नहीं होगा | अभी तक जो थोड़ी बहुत साँसें चल रही थीं, वह भी बंद हो चुकी हैं | यहाँ पार्टी नहीं केवल दो गुट हैं, महल समर्थक और महल विरोधी | इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि महल समर्थक को चुनाव में हरवाने को महल विरोधी जुट जाते हैं और महल विरोधी को धुल चटाने के लिए महल समर्थक जमीन आसमां एक कर देते हैं | स्वाभाविक ही लड़ना तो दोनों में से किसी एक को ही है | मजा यह है कि प्रदेश में बैठे इन दोनों गुटों के आका पर्याप्त दमखम रखते हैं, अतः अनुशासन का डंडा चल ही नहीं पाता | 

इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इन दोनों गुटों के संघर्ष में सामाजिक बैमनस्यता की खाई शिवपुरी में दिन पर दिन चौड़ी होती जा रही है | पोहरी में धाकड़ किरार समाज के साथ ब्राह्मण समाज का संघर्ष तो पिछोर में लोदियों और ठाकुरों की टकराहट | कोलारस में यादवों के रसूख और ठसक से गैर यादवों में असंतोष, करैरा में रावतों और यादवों की प्रतिद्वंदिता | और विचित्र बात यह कि नेतृत्व विहीन भाजपा से एक एक कर विभिन्न जाति समूह विमुख होते जा रहे हैं | इसीलिए अब अगर यह कहें कि भाजपा का संगठनात्मक ढांचा शिवपुरी में नष्ट हो गया है, तो इसमें गलत क्या है ?

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