अमरीका - इसराईल बनाम भारत - पाकिस्तान |



अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता | अब अमरीका और इसराईल के संबंधों को ही लें | अतीत में भले ही दुनिया इधर से उधर हुई हो लेकिन अमरीका व इसरायल के बीच संबंधों में कभी भी कड़वाहट नहीं आई। दोनों देशों के बीच की कूटनीतिक दोस्ती जग जाहिर है। लेकिन आज जो कुछ हो रहा है, वह चोंकाने वाला है | इसरायल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू अभी कुछ घण्टों बाद अमरीका यात्रा पर होंगे | किन्तु मजे की बात यह कि वे इस दौरान ओबामा से नहीं मिलेंगे | इससे भी अधिक हैरतअंगेज यह है कि व्हाइट हाउस भी नेतन्याहू के अमरीका दौरे को लेकर अपनी नाराजगी सार्वजनिक कर चुका है।
नेतन्याहू अमरीका में कांग्रेस स्पीकर जॉन बोनर के निमंत्रण पर वहां की संसद में ईरान की परमाणु नीति के खिलाफ भाषण देंगे। शायद वह दिन गए जब अमरीका फिलिस्तीन के मसले पर या खाड़ी देशों से टकराव पर बिना देर लगाए इसरायल का पक्ष लेता था, भले ही इसरायल की सैन्य कार्रवाई को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग उठती रही हो।

बदली हुई परिस्थितियों में अमरीका और ईरान करीब आए हैं। दोनो परमाणु कार्यक्रम पर करार करने का प्रयास कर रहे हैं। और इसरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ईरान व अमरीका के बीच किसी भी किस्म के परमाणु करार के खिलाफ हैं। नेतन्याहू का कहना है कि यदि यह परमाणु समझौता हुआ तो इसका प्रतिकूल असर इसरायल की सुरक्षा पर पड़ेेगा। मार्च के दूसरे हफ्ते में इसरायल में प्रधानमंत्री चुनाव हैं। इसलिए नेतन्याहू अपने राजनैतिक कॅरियर को बचाने के लिए इस मसले का चुनावी लाभ लेने के लिए अमरीका-इरान के खिलाफ अमरीका का दौरा कर रहे हैं। इधर अमरीका की रिपब्लिकन की बहुमत वाली संसद राष्ट्रपति ओबामा की ईरान नीति के खिलाफ है, यानी बराक ओबामा प्रशासन का राजनैतिक कद कम करने के लिए रिपब्लिकन पार्टी इसरायल की मदद कर रही है। 

सत्ता की राजनीति का ही एक और कमाल देखिए कि भारत में एक-दूसरे के घोर विरोधी और राजनैतिक विचारधारा में एक-दूसरे से बिल्कुल अलग भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पीपुल्स डेमोक्रोटिक फ्रण्ट (पीडीपी) रविवार को जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक सरकार के गठन में साथ-साथ आ गए । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले महीने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन किया और आज विदेश सचिव जयशंकर भी द्विपक्षीय वार्ता की पृष्ठभूमि तैयार करने पाकिस्तान पहुँच गए | यही मोदी थे जिनकी सरकार ने पाक से वार्ता की प्रक्रिया पाक दूतावास के कश्मीरी अलगाववादियों से चर्चा करने के कारण तोड़ी थी। 

अर्थात कल के दोस्त अमरीका और इसराईल के बीच दूरी बढ़ रही है तो भारत और पाकिस्तान नजदीक आना चाह रहे हैं | कुछ लोगों का अनुमान है कि शरीफ को फोन करने के पीछे पीडीपी का दबाव रहा होगा, तो कुछ लोग इसके पीछे अमरीकी दबाब मान रहे हैं । इससे उल्टा मानने वालों की भी कमी नहीं है | ऐसे लोग पीडीपी के साथ भाजपा की दोस्ती में भी अमरीकी एंगिल देख रहे हैं | यह तो स्पष्ट है कि पीडीपी भारत-पाक के बीच वार्ता चाहती है और अमरीका की पाकिस्तान परस्त नीति भी किसी से छुपी नहीं है | 

अमरीकी, भारतीय या पाकिस्तानी जनता टुकुर टुकुर अपने अपने नेताओं की इस उलटबांसी को देखकर हैरत में है | भारतीय तत्वज्ञान कहता है कि - प्रभु इच्छा बलीयसी या ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है | शायद इस घटनाचक्र के पीछे भी कुछ अच्छा ही छुपा होगा | संभवतः विश्वशांति का युग आने वाला हो ? लेकिन पाकिस्तानी मानसिकता क्या भरोसे के काबिल हो सकती है ?

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