कैसा था वह ज्वार - रामजन्म भूमि आन्दोलन

कल, आज, और कल 

१९९० में पिपरिया से पहला जत्था जिला प्रमुख श्री अनंतराम जी के नेतृत्व में तथा दूसरा श्री द्वारका प्रसाद खंडेलवाल के नेतृत्व में रवाना हुआ ! इलाहावाद के आगे प्रताप गढ़ चेकपोस्ट पर इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया ! बहां इन्हें नव निर्मित पोलीटेक्निक कालेज में बंदी बनाकर रखा गया ! बहां प्रशासन द्वारा भोजन आदि की कोई व्यवस्था नही की गई थी ! इतना ही नही तो बाहर से स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा की गई भोजन व्यवस्था को भी नहीं लेने दिया जा रहा था ! उस परिसर में लगभग ३००० लोग भेड बकरियों की तरह भर दिए गए थे ! अव्यवस्था से नाराज इन लोगों ने गेट पर लगा ताला तोड़ दिया ! बहां उपस्थित मुट्ठीभर अधिकारी इस जन सैलाब को नहीं रोक पाए ! पैदल ही ये कार सेवक आगे अयोध्या के मार्ग पर बढ़ चले ! 

मार्ग में स्थानीय जनता का अभूतपूर्व सहयोग इन लोगों को देखने को मिला ! अंधेरी रात में भी लोग लालटेन लेकर गाँवों में हर जगह इनका स्वागत करते ! पुआल पर बोरी या दरी बिछाकर इनके विश्राम की व्यवस्था, भोजन, नाश्ता, मेवा आदि से इनका आतिथ्य होता ! सूखे भोजन के पैकेट तो रास्ते भर मिले ! इन कार सेवकों को खिलाने के लिए गन्नों के कई खेत साफ़ कर दिए स्थानीय जन सामान्य ने ! आगे यदि पुलिस होने की संभावना होती तो वे ही लोग इन्हें सावधान करते और सुरक्षित मार्ग भी सुझाते ! राम भक्ति का अद्भुत ज्वार था उन दिनों में ! 

फैजावाद से कुछ किलोमीटर पूर्व रामगंज नामक गाँव में रात को एक बजे लगभग ७००-८०० कारसेवक पहुंचे ! इनके पहुँचने की सूचना मिलते ही गाँव की माता बहिनें एकत्रित हो गईं और देखते ही देखते सबने मिलकर एक घंटे के अंदर गरम ताजा भोजन तैयार कर खिलाया ! ग्राम वासियों ने अपने सोने के स्थान खाली कर कारसेवकों को सुलाया और स्वयं बाहर सोये ! सर्दियों के दिन थे तो सुबह खेतों में कडाव चढ़ाकर इन लोगों के स्नान आदि के लिए पानी की व्यवस्था की गई ! गाँव की महिला सरपंच ने अपनी जीप और गांव के ट्रेक्टरों से कारसेवकों को अयोध्या के नजदीक गोमती किनारे तक पहुंचाया ! और तो और गोमती पार कराने बाले नाविकों ने भी इनसे पैसे लेने से इनकार कर दिया !

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१९९० में कार सेवा का आव्हान हुआ जिसमें शिवपुरी से भी सेंकडों स्वयंसेवक रवाना हुए ! शिवपुरी झांसी मार्ग पर उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह सरकार ने पुल पुलिया तोड़ दिए थे ताकि कोई अयोध्या तो दूर उत्तर प्रदेश में भी ना पहुँच सके ! कारसेवक जब झांसी की ओर पैदल रवाना हुए, उनमें से अनेकों गिरफ्तार कर लिये गए ! झांसी की लक्ष्मी व्यायामशाला को अस्थाई जेल बनाया गया ! जहाँ इन लोगो ने अपनी आँखों के सामने पुलिस गोली चालन में हताहत होते कारसेवको को देखा जो एक दुखद अनुभव था ! 

पुलिस को चकमा दे अनेकों कारसेवक अयोध्या के मार्ग पर आगे निकलने में सफल हुए, किन्तु अंततः वे भी गिरफ्तार कर उन्नाव जेल भेज दिए गए ! इस जेल में प्रशासन की शह पर मुस्लिम कैदियों ने लोहे की छड़ों वा पलटो इत्यादि से इनपर हमला कर दिया ! श्री विमलेश गोयल को तो इतना पीटा गया कि वे बेहोश हो गए वा आक्रमण कारी उन्हें मृत समझकर छोड़ गए ! सात दिन बाद अस्पताल में श्री गोयल को होश आया ! 

कोलारस गुप्त वाहिनी के ग्यारह कारसेवक लखनऊ से २०० कि.मी. पैदल चलकर सर्व श्री गणेश मिश्रा, आलोक बिंदल, प्रेम शंकर वर्मा, फूलसिंह जाट, शिब्बूसिंह जाट (हम्माल), रामेश्वर बिंदल, संतोष गौड़, विनोद मिश्रा, लाडली प्रसाद गोयल आदि अयोध्या पहुँचने में सफल हुए ! इन सभी ने २ नवम्बर को हुए नरसंहार को अपनी आँखों से देखा व भोगा !

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२८ अक्टूबर १९९० को मध्य भारत की ४० वाहनियाँ अयोध्या के लिये रवाना हुईं| उत्तर प्रदेश में मुलायमसिंह की सरकार ने भिंड इटावा मार्ग से कोई आगे ना बढ़ सके इसके पुख्ता इंतजाम किये | इटावा मुलायम सिंह का गृह जिला होने से उनके छोटे भाई शिशुपाल यादव खुद इस व्यवस्था को देख रहे थे | 

चम्बल के पुल पर तीन दीवालें बनाकर यातायात को बाधित किया था, बही इस बात की भी पूरी व्यवस्था थी कि कोई पैदल भी उत्तर प्रदेश में प्रवेश ना कर सके | ईंटो की पक्की दीवारो के बीच में लोहे की चादरें रखी गई थीं | इसके बाद ड्रम रखकर उसके पीछे सशस्त्र पुलिस बल तैनात था | चम्बल में चलने बाली सारी नावों पर पुलिस ने कब्जा कर लिया था | नदी के उस पार शिशुपाल सिंह सारी व्यवस्थाओं का निरीक्षण कर रहे थे | उनके साथ हथियार बंद गुंडे भी थे | 

कार सेवकों में सबसे आगे संतो की टोली थी | साधुओं ने त्रिशूल आदि की सहायता से दीवार को तोड़ दिया | दीवार टूटते ही लगभग ४००० कार सेवक आगे बढ़ने लगे | पुलिस ने कार सेवकों की गिरफ्तारी शुरू कर दी | लेकिन संख्या इतनी अधिक थी कि सबको गिरफ्तार करना प्रशासन के लिए संभव ही नही था | 

गिरफ्तारी से काम ना बनता देखकर नदी पार से शिशुपाल सिंह यादव तथा उसके साथ खड़े एक पत्रकार और डिप्टी कलेक्टर ने स्वयं गोली चलाना प्रारम्भ कर दिया | पहली गोली भिंड के एक कार्यकर्ता सत्य पाल को लगी | गंभीर रूप से घायल सत्यपाल की बाद में मृत्यु हो गई | कोकसिंह नरवरिया की इतनी पिटाई हुई कि उनकी रीढ़ की हड्डी ही टूट गई | उन्हें ६ माह अस्पताल में बिताना पड़े | रामसिया के पैर में गोली लगी और वे जीवन भर के लिए अपाहिज हो गए | कारसेवकों ने हर प्रकार के कष्ट सहकर भी कारसेवा में उत्साह पूर्वक भाग लिया |

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