जनसंघ की नींव में विसर्जित एक महामानव



१९५१ में जनसंघ के गठन के बाद पहला चुनाव सीहोर का लडा गया ! असेम्बली उपचुनाव में श्री दीवान चंद महाजन प्रत्यासी थे ! स्वाभाविक ही उसे लेकर कार्यकर्ताओं में अत्यंत उत्साह था ! श्री गोपीकृष्ण जी भी उस चुनाव में समय देने का मन बना चुके थे, तथा परिवार को बता चुके थे ! घर में बेटी की शादी तय हो चुकी थी तथा उसकी तैयारी भी चल रही थीं ! उसी समय मोहल्ले में आग लग गई तथा आग की चपेट में इनका घर भी आ गया ! बहुत प्रयत्न के बाद भी बहुत कम सामान ही बचाया जा सका ! सब कुछ स्वाहा हो गया ! पहनने के कपडे जो शरीर पर थे वे ही बच पाए ! इतने पर ही बस नही हुआ ! बेटी की शादी के लिए जो रकम इत्यादी बनबाई थी, उसका संदूक भी इस अफरा तफरी में चोरी हो गया ! 

चोरी की रिपोर्ट लिखबाने जब गोपीकृष्ण जी थाने पहुंचे तभी उनका पूर्व परिचित व्यक्ति बहां पहुंचा ! उसे इस दुर्घटना का कुछ भी पता न था ! उसे एक रुपये का स्टाम्प खरीदना था, किन्तु उसकी जेब में केवल आठ आने थे ! उसने बड़ी आशा से गोपीकृष्ण जी से आठ आने माँगे ! संयोग से सब कुछ गंवा चुके गोपीकृष्ण जी की जेब में आठ आने बचे भी थे, जो उन्होंने सहज भाव से उस जरूरत मंद को दे दिए ! उपस्थित लोग इस नज़ारे को बड़ी ही हैरत से देख रहे थे !

रिपोर्ट लिखवाकर जब गुप्ता जी वापस अपने परिवार के पास पहुंचे तब श्रीमती जी ने परिहास किया ! बहुत चुनाव में जाने की जिद्द कर रहे थे ! अब कैसे जाओगे ? उस समय तो गोपीकृष्ण जी कुछ नहीं बोले ! किन्तु परिवार के रहने की व्यवस्था एक परिचित अनूपसिंह जी के मकान में कर तथा उधार लेकर खाने पीने का सामान तथा कुछ कपडे इत्यादि की व्यवस्था कर अगले ही दिन बिना किसी को कुछ बताए जा पहुंचे सीहोर ! बहां जाकर भी किसी को कुछ नहीं बताया ! जब चुनाव निबट गया तब जरूर काउंटिंग के लिए नहीं रुके और ठाकरे जी वा अपने छोटे भाई नारायण प्रसाद नानाजी को दुर्घटना की जानकारी दी और वापस लौटे !

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