मार्कंडेय काटजू और कांग्रेसी विधायक के.पी. सिंह


कल ही प्रेस काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू का गांधी जी से सम्बंधित बयान आया, जिसमें उन्होंने गांधी जी के ग्राम सुराज व पंचायती राज संबंधी विचारों को बकबास बताया था | काटजू का कहना था कि सभी जानते हैं, ग्रामवासी स्थानीय जमींदारों व पूंजीपतियों की मुट्ठी में रहते हैं | आज पंचायती चुनाव प्रणाली में परिवर्तन की मांग को लेकर मध्यप्रदेश के कांग्रेसी विधायक के.पी. सिंह ने भी प्रधान मंत्री को जो पत्र लिखा है, वह भी काटजू के विचारों के समान ग्रामवासियों पर पूंजीपतियों के प्रभुत्व की पुष्टि करता है |

के.पी.सिंह ने जिला पंचायत व जनपद पंचायतों के अध्यक्षों के चुनाव सीधे जनता द्वारा कराने की मांग उठाई है | उनका कहना है कि अप्रत्यक्ष पद्धति से होने वाले इस चुनाव में धनवल व वाहुबल का खुला प्रयोग होता है | जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में जिला पंचायत सदस्य पचास लाख से एक करोड़ तक में नीलाम होते हैं तो जनपद सदस्य 20 लाख तक में बिककर अपना वोट देते हैं | ऐसे में जन संपर्क और जनसेवा के माध्यम से सार्वजनिक पदों पर पहुंचना तो असंभव ही हो गया है | 

जो व्यक्ति करोड़ों खर्च कर अध्यक्षी हासिल करेगा, वह भला क्या जनसेवा करेगा | उसकी प्राथमिकता तो येन केन प्रकारेण अपना पैसा वापस पाना और उससे कई गुना अधिक लाभ कमाना ही रहता है | यही कारण है कि पंचायते राज की पवित्र भावना धनकुबेरों और माफियाओं के आगे दम तोड़ रही है | लोकतंत्र की यह प्रथम सीढी मनी, माफिया और माफिया के सम्मुख दम तोड़ चुकी है | 

श्री के.पी. सिंह का कहना है कि मध्यप्रदेश विधानसभा के विगत कार्यकाल में उन्होंने पंचायत चुनाव प्रक्रिया में परिवर्तन संबंधी एक अशासकीय संकल्प संकल्प पटल पर रखा था किन्तु उनके विपक्षी दल के सदस्य होने के कारण वह पारित न हो सका | इसी कारण वे लोकतंत्र के हित में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर व्यक्तिगत रूप से आग्रह कर रहे हैं कि वे देश व प्रदेश को पंचायती राज नीलामी की त्रासदी से मुक्ति दिलाएं | साथ ही पंचायती चुनाव भी नगरीय निकायों की तर्ज पर दलीय आधार पर कराये जाएँ |

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