दैत्यसूदन मंदिर जो मस्जिद न बन सका |

लोणार सरोवर 

महाराष्ट्र के बुलढाना के नजदीक बसा लोणार कस्बा अपने ऐतिहासिक सरोवर के कारण विश्वविख्यात है | इस सरोवर का वर्णन पद्म पुराण, स्कन्द पुराण और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है | ऐसा माना जाता हैकि इसका निर्माण 50 हजार वर्ष पूर्व हुआ था | इसका व्यास 1.83 कि.मी. का था, किन्तु अब काफी सिकुड़ चुका है | सरोवर के निर्माण को लेकर कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका निर्माण छः लाख वर्ष पूर्व ज्वालामुखी के कारण हुआ था | किन्तु जिओलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के अनुसार इसका निर्माण पचास साठ हजार वर्ष पूर्व उल्कापात के चलते हुआ | 

किन्तु पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार सत्ययुग में लवणासुर का वध भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर किया था | स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि ब्रह्मदेव, नारद मुनि, कपिल मुनि, अगस्त मुनि, भृगु ऋषि आदि ने इस सरोवर के परिसर में तपश्चर्या की थी | इसके किनारों पर आज भी कमलजा देवी मंदिर, दैत्यसूदन मंदिर, शंकर गणेश मंदिर, रामगया मंदिर, विष्णु मंदिर, बाघ महादेव मंदिर, मोर मंदिर, अम्बरखाना मंदिर, शुक्राचार्य वेधशाला सहित 32 मंदिर, 17 स्मारक, 13 कुंड और पांच शिलालेख स्थापित हैं | सरोवर में लगातार हो रहे प्रदूषण को देखते हुए हाईकोर्ट के निर्देश पर इस सरोवर के संरक्षण हेतु एक समिति का गठन किया गया | सरोवर के चारों ओर अनेक प्रकार की वनसंपदा तथा जीव जंतुओं की भरमार को देखते हुए इसे राष्ट्रीय उद्यान भी घोषित किया है | लाखों की संख्या में पर्यटक इस ऐतिहासिक ही नहीं प्रागैतिहासिक धरोहर को देखने पहुंचते हैं | 

निजाम के शासनकाल में दैत्यसूदन मंदिर के मुख्य द्वार को रजाकारों ने क्षति पहुंचा दी थी, व उसे मस्जिद बनाने का प्रयत्न किया था | इस कारण इस मंदिर का मुख्य द्वार लाल पत्थरों से मुग़ल स्थापत्य के अनुसार बना दिखाई देता है | यह अलग बात है कि स्थानीय ग्रामवासियों के प्रबल विरोध के चलते मंदिर का मूल स्वरुप बचा रह पाया | 
क्या यह अच्छा नहीं होगा कि अब स्वतंत्र भारत में विष्णुसूदन मंदिर को उसका पूर्व गौरवशाली स्वरुप पुनः प्रदान किया जाए | सरोवर का संरक्षण व संवर्धन हो |