विविधता से पोषण: कृषि और किसान



भले ही यह कहानी नेपाल के एक छोटे से गाँव में बसे एक छोटे से खेत के मालिक की हो, किन्तु मुझे लगता है कि भारतीय किसानों के लिये भी उपयोगी हो सकती है | 

लक्ष्मी आचार्य के खेत में कई पौधों हैं | ऐसा लगता है मानो यह एक लघु वनस्पति उद्यान हो । कम भूमि में अपने परिवार के जीवन यापन हेतु उन्होंने इस विविधता को चुना । वे नेपाल के मोरंग जिले के कोशी-हरिंचा नगर पालिका क्षेत्र के छोटे से गाँव बेलेपुर में रहती हैं । उन्होंने आश्चर्यजनक ढंग से अपने छोटे से खेत का प्रबंधन किया है | 

केवल 2000 वर्ग मीटर का यह छोटा सा भूखंड जिसमें से भी 600 वर्ग मीटर में आवास और फल-सब्जी के लिए छोड़ दिया गया है | उनका कहना है कि प्रबंधित विविधता ही इसकी उत्पादकता की कुंजी है। दो गाय, एक जोड़ी बकरी, कबूतर के 10 जोड़े और 10 मुर्गियां भी इनके साथ रहती हैं । एक छोटी सी तलैया जिसमें लगभग सौ मुंगरी कैटफ़िश पाली गई हैं । शेष भाग में एग्रोइकोलॉजिकल सिस्टम का उपयोग कर सुगंधित बासमती चावल का उत्पादन किया जाता है।

अपने पौधों और जानवरों के बीच संपूरकताओं का ध्यान रखते हुए चक्रीय पद्धति से फसल प्राप्त की जाती है, जिसमें पोषण का भी ध्यान रखा जाता है | उदाहरण के लिए, बरसात के मौसम में ये परिवार चावल की खेती करता है, तो उसके बढ़ने और कटाई के बाद, खाना पकाने के तेल के लिए सरसों और मसूर की दाल की खेती करता है | अतिरिक्त भोजन और आय के लिए अन्य सब्जियों के साथ, मिश्रित आलू के पौधे उगाते हैं । 

वसंत ऋतु में घर की खपत के लिए और साथ ही पशु चारे के लिए मक्का के पौधे लगते हैं । गाय, बकरी और मुर्गी पालन से भी आय में पर्याप्त वृद्धि हुई है | मिट्टी की संरचना का समय समय पर परीक्षण और जैविक खाद का प्रयोग इन्हें पर्याप्त और संतुलित आहार प्रदान कर रहा है | इन्हें अपनी जरूरत के मुताबिक़ आवश्यक अनाज, सब्जियां, फल और पशुओं के लिए चारा मिल रहा है | अपने परिवार की प्लेटों को भरने, और यहां तक ​​कि बाजार में बेचकर अर्जन करने योग्य बना रहा है | इतने कम संसाधन में पर्याप्त उत्पादन करने में सक्षम होकर यह परिवार गर्व की अनुभूति करता है |

इस कहानी में ऐसा क्या है जो हमारे किसान भाई नहीं कर सकते ?

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें