क्या मेरी बात पर कोई भरोसा करेगा कि यूपी में नहीं है जातिवाद |


Arun Mehrotra
पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व कुछ दिन उत्तर प्रदेश के जालौन जिले की कालपी विधान सभा क्षेत्र में रहने का अवसर मिला ! उस ग्रामीण अंचल में जो कुछ देखा, अनुभव किया उससे राहत भी मिली और संतोष भी हुआ ! आम भारतीय सजग है और समझदार भी ! बहां लगभग ६५ हजार अहिरवार मतदाता हैं और लगभग इतने ही ठाकुर ! जातिवाद के आधार पर बसपा ने २००७ के चुनाव में यहाँ से एक ठाकुर प्रत्यासी को टिकिट दिया और वे जीत भी गए ! किन्तु उन्हें वोट मिले मात्र ४२ हजार, जबकि अहिरवार आम तौर पर बसपा के परम्परागत मतदाता माने जाते हैं ! निश्चय ही इन वोटों में मुस्लिम ब्राह्मण और दीगर समाज के वोट भी सम्मिलित रहे होंगे, जिन्होंने मुलायम सिंह जी की गुंडा राज छवि के विरुद्ध अपना आक्रोश व्यक्त किया होगा ! अर्थात जातिगत आंकड़ों के सवालाख तथा सत्तर हजार ब्राह्मण वा मुस्लिम, इस प्रकार कुल दो लाख वोटों में से मात्र ४२ हजार !

दिलचस्प पहलू यह भी है कि २००२ के चुनाव में विजयी हुए भाजपा प्रत्यासी डा. अरुण मेहरोत्रा खत्री हैं, जिनके समाज के बमुश्किल १०० वोट उस क्षेत्र में होंगे ! मुझे लगता है कि आम जनता नहीं, हमारे राजनेता जातिवादी हैं ! और इस जातिवादी व्यवस्था को जीवित रखना चाहते हैं ! ये ही लोग भारतीय समाज को टुकडे टुकडे रखना चाहते हैं ! फूट डालने में ही इन्हें अपनी कुर्सी सुरक्षित लगती है !

अब बात करता हूँ डा. अरुण मेहरोत्रा की ! राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के अत्यंत आत्मीय तथा स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी रहे पिता की सुयोग्य संतान अत्यंत कुशल आर्थोपिडिक्स डाक्टर हैं ! विदेश में सर्विस कर रहे डा. से पिताजी ने एक दिन सहज पूछ लिया कि कालपी ने तुम्हें जन्म दिया, सुयोग्य बनाया, तुमने कालपी को क्या दिया ? बस डा. अरुण मेहरोत्रा अमरीका छोड़ वापस उस छोटे से कस्बे में लौट आये ! मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया अरुण जी की गौ सेवा ने ! वध शालाओं को जाती गायों को कसाईयों के चंगुल से बचाकर उन्होंने एक गौशाला की स्थापना की है जिसमें लगभग ३०० गौधन है ! सबसे विचित्र पहलू यह है कि इनमें से कोई भी दूध देने बाली गायें नही हैं ! मैंने जिज्ञासा की, कि इन गायों की सेवा सुश्रुषा की आर्थिक व्यवस्था कैसे होती है ? तो मालूम पडा कि गौ मूत्र संग्रह कर वास्पीकृत वा सांद्रित किया जाता है, तदुपरांत उसे आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियों को विक्रय कर दिया जाता है ! प्राप्त धन राशि से ही गौधन की सेवा की व्यवस्था हो जाती है ! कुछ कमी पड़ती है तो उसकी पूर्ती समाज तथा स्वयं डा. अरुण मेहरोत्रा द्वारा कर दी जाती है !

इसे भाजपा का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि अरुण मेहरोत्रा गुटीय राजनीति के चलते  भाजपा से बाहर हो गए |

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