लावारिस बच्चों की सुरक्षा व देखभाल से जुड़ा यह समाचार आपका मन प्रसन्न कर देगा |

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ऐसे माहौल में जब कि सब ओर नकारात्मक समाचारों का बोलबाला है, ताजी हवा के झोंके के समान एक सकारात्मक समाचार दिल को तसल्ली दे रहा है | मानवीय संवेदना का अनुपम उदाहरण देते हुए महिला और बाल विकास मंत्रालय तथा रेलवे मंत्रालय ने संयुक्त रूप से रेलवे परिसर में मिलने वाले घर से भागे और लापता बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा उठाया है। रेलवे परिसर में मिलने वाले बच्चों की सुरक्षा और उनकी समुचित देखभाल के लिए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने गुरुवार को स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) को लांच किया ।

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री श्रीमती मेनका गांधी ने कहा कि मंत्रालय अब रेलवे के साथ मिलकर आधिकारिक रूप से इन बच्चों के अधिकारों की रक्षा करेगा। घर से दूर रेलवे को अपना बसेरा बना चुके इन मासूमों को वापस इनके परिवारों से मिलाने की मुहिम शुरू की जाएगी।

उन्होंने कहा कि ऐसे लावारिस बच्चों की संख्या हजारों में नहीं बल्कि तीन से पांच लाख है। ये बच्चे दर-ब-दर होकर एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहते हैं। या फिर इन बच्चों की अपराधियों द्वारा तस्करी हो जाती है और फिर ये जीवन भर या तो भीख मांगते रहते हैं अथवा बड़े होकर असामाजिक गतिविधि में लिप्त होकर अपराधी बन जाते हैं | 

इन बच्चों को रेल विभाग की मदद से उनके घरवालों से मिलवाया जाएगा। जिनके लिए यह संभव नहीं होगा उन बेघर बच्चों को शेल्टर होम्स में भेजने का प्रबंध किया जाएगा। नेशनल कमिशन फार प्रोटेक्शन फार चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) के आठवें स्थापना दिवस के अवसर पर रेल विभाग ने ऐसे बीस रेलवे स्टेशनों की पहचान की है जहां एसओपी को लागू किया जाएगा।

मेनका गांधी ने कहा कि वह चाहती हैं कि इस योजना में अगले दो महीने में दो सौ और स्टेशनों को शामिल किया जाए और उसके बाद भी ये तादाद बढ़ती रहे। मानवीय संवेदना के इस निर्णय के लिए भाजपा सरकार की जितनी प्रशंसा की जाए कम है |
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