दतिया का एक ऐसा आन्दोलन जिसे गांधी जी ने भी सराहा |



२४ अक्टूबर १९४६ को दतिया के प्रसिद्ध प्राचीन मढिया महादेव स्थित दन्त वक्रेश्वर की मूर्ती सहित कुछ और मूर्तियां खंडित कर दी गईं ! काकोरी काण्ड के कुख्यात न्यायाधीश एनउद्दीन को उन दिनों अंग्रेजों द्वारा यहाँ दीवान नियुक्त किया गया था तथा उसकी शह पर यहाँ "अंजुमन इस्लाम" नाम से एक हिन्दुओं को गाली देने बाली संस्था गठित की गई थी, जिसके कारण दतिया का माहौल पहले से ही तनाव ग्रस्त था ! एसे में देव प्रतिमाओं के अपमान ने हिन्दू समाज को और अधिक आक्रोशित कर दिया ! परिणाम स्वरुप दो माह लंबा स्वप्रेरित एक बड़ा जन आन्दोलन दतिया में चला !

इस घटना के बाद अनेक हिन्दू नेता दीवान के पास गए तथा यह दुष्कृत्य करने बाले असामाजिक तत्वों के विरुद्ध प्रभावशाली कार्यवाही की मांग की ! किन्तु दीवान ने उलटा हिन्दुओं पर ही आरोप मढा कि उन लोगों ने ही माहौल बिगाड़ने तथा मुसलमानों को बदनाम करने के लिये यह प्रपंच रचा है ! जनता पहले से ही दीवान के अत्याचारों से पीड़ित थी ! उसके इस रुख ने आग में घी का काम किया ! विरोध स्वरुप नगर बंद का आह्वान किया गया ! एक विशाल सभा भी आयोजित हुई ! सभा के पश्चात एक प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन महाराजा से भी मिला, जिन्होंने उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया ! इस पर विश्वास कर हड़ताल वापस ले ली गई ! ५ नवम्बर को अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट दतिया आया किन्तु उसने दीवान की ही पीठ थपथपाई ! फिर क्या था शाम से ही नगर की दूकानों में फिर ताले पड गए और दतिया की गली गली में "एनउद्दीन दतिया छोडो" के नारे गूंजने लगे !

६ नवम्बर को फिर एक जन सभा हुई, दतिया के एक लोकप्रिय शासकीय शिक्षक पंडित केशव राम चन्द्र चिकटे ने अपने पद से सरकारी कार्यवाही के विरोध में त्यागपत्र की घोषणा कर दी ! वे लार्ड लीडिंग हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक थे ! जनता में अभूतपूर्व उत्साह का संचार हो गया ! इसके बाद तो अनेक शासकीय कर्मचारियों वा अधिकारियों के त्यागपत्र का सिलसिला शुरू हो गया ! किला मैदान में चल रही सभा में इन त्यागपत्रों की घोषणा का अम्बार लग गया ! करीब १०० लोगों ने सभा में ही अपने त्यागपत्र सोंपे ! यह सिलसिला तीन दिन तक जारी रहा और लगभग ५०० त्यागपत्र इस दौरान शासन को भेजे गए ! 

आन्दोलन के संचालन के लिये दतिया पीपुल्स कमेटी बनाई गई ! इसके सभापति महंत रतिदास मनोनीत हुए ! सभी शासकीय कार्यालयों में कामकाज ठप्प हो गया ! दुकान दारों ने ही नहीं मजदूरों ने भी अपना अपना काम बंद कर दिया ! निवर्तमान ग्वालियर विभाग संघ चालक श्री रम रतन तिवारी उन दिनों युवा थे ! उन्होंने ही प्रचार का दायित्व सम्भाला ! सरकारी दमन चक्र चला किन्तु आन्दोलन तीव्र से तीव्रतर होता गया ! यहाँ तक कि कांग्रेस प्रेरित प्रजा परिषद् भी आन्दोलन की व्यापकता देख, अलग थलग पड़ जाने के भय से, इसमें साथ हो गई ! आन्दोलन की तीव्रता देख अंग्रेज शासन भी हिल गया और उसे विवश होकर एनउद्दीन को दीवान पद से हटाना पडा ! इतना ही नही तो भारत सरकार के तत्कालीन रेजिडेंट का तथा एनउद्दीन का साथ देने बाले पोलिटिकल एजेंट का भी स्थानान्तरण करना पडा ! जनता की सभी मांगे मान ली गई ! त्यागपत्र देने बाले बहाल हुए ! इस दौरान गिरफ्तार हुए सभी बंदी रिहा हुए ! यह सफल आन्दोलन पूरे २४ दिन चला ! 

इस आन्दोलन के बारे में स्वयं गांधी जी ने कहा कि उनके द्वारा संचालित असहयोग आन्दोलन को भी इतना जबरदस्त जन सहयोग नहीं मिला !

हिंदुत्व के इस ज्वार का लाभ संघ को भी पर्याप्त मिला ! बदनाम दीवान एनउद्दीन के दतिया से जाने के बाद उसके स्थान पर राव कृष्णपाल सिंह को दतिया का दीवान बनाया गया ! वे पूर्व से ही संघ के संपर्क में रहे थे ! उनके ही निमंत्रण पर प्रांत प्रचारक माननीय भाऊराव देवरस दतिया आये थे ! पूजनीय गुरू जी भी सन १९४७ में ग्वालियर जाते समय कुछ समय के लिये राव कृष्ण पाल सिंह के यहाँ ठहरे थे !

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