संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक 13-14-15 मार्च को नागपुर में


दलगत स्वार्थ और राजनीतिक द्वेष के चलते भले ही अनेक राजनीतिक दल संघ को बदनाम करने की कोशिश में लगे रहते हों, किन्तु संघ एक ऐसा संगठन है जहां लोकतांत्रिक मूल्यों का किसी भी राजनैतिक दल से कहीं अधिक अनुकरण होता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का अपना संविधान है, जिसमें मूल में लोकतान्त्रिक और संगठनात्मक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता निहित है। संघ में इन संवैधानिक मूल्यों का बड़े आदर और अनुशासन से पालन होता है। 
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा संघ का सर्वोच्च नीति निर्धारक मंडल है। इस प्रतिनिधि सभा में ही संघ के सर्वोच्च कार्यकारी अधिकारी अर्थात सरकार्यवाह का चुनाव होता है। सरकार्यवाह का चुनाव प्रति 3 वर्ष के बाद नागपुर में ही होता है, क्योंकि संघ का मुख्यालय नागपुर में है। वर्तमान सरकार्यवाह सुरेश उपाख्य भैयाजी जोशी का कार्यकाल इस वर्ष समाप्त होने जा रहा है। अतः 13, 14 और 15 मार्च, 2014 को नागपुर में होने जा रही इस प्रतिनिधि सभा में संघ के संविधान के अनुसार सर कार्यवाह का चुनाव भी संपन्न होगा ।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की परम्परा
आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना विजयादशमी को सन 1925 में की। सन 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद झूठे आरोप के तहत संघ पर प्रतिबन्ध लगाया गया। लेकिन इसके तुरन्त बाद ही भारत सरकार ने 1949 में बिना शर्त के यह प्रतिबन्ध हटा लिया। उस समय सरकार ने संघ को अपने संगठन का संविधान बनाने का सुझाव दिया। उस संविधान के अंतर्गत संघ के केन्द्रीय कार्यकारी मंडल की बैठक 21, 22 जनवरी, 1950 में सम्पन्न हुई। उस बैठक में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि संघ संविधान के अनुसार अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का गठन होना चाहिए। इसके आलावा एक और प्रस्ताव पारित किया गया जिसके तहत 26 जनवरी ‘गणतंत्र दिवस’ को राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाना चाहिए ऐसे निर्देश शाखाओं को दिए गए, क्योंकि 26 जनवरी, 1950 को भारत सार्वभौमिक गणतंत्र राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। सभी शाखाओं ने राष्ट्र ध्वज फहराकर उसे प्रणाम करना चाहिए और अंत में वन्दे मातरम गया जाना चाहिए। यह पूरा प्रस्ताव http://www.archivesofrss.org/Resolutions.aspx इस वेब साइट पर उपलब्ध है।
12 मार्च, 1950 को प्रतिनिधि सभा की प्रथम बैठक हुई।
संघ के क्रियाशील और प्रतिज्ञित स्वयंसेवक देशभर में अपने प्रतिनिधियों का चयन करते हैं। ये प्रतिनिधि इस प्रतिनिधि सभा में सहभागी होते हैं। इस वर्ष लगभग 1200 प्रतिनिधि इस सभा में सम्मिलित होंगे। इस सभा में संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के अधिकारी, प्रान्त और क्षेत्र कार्यवाह, संघचालक एवं अन्य अधिकारी शामिल होते हैं। इसके अलावा संघ परिवार से जुड़े अनेक संगठनों के शीर्ष अधिकारी सम्मिलित होते हैं, - जैसे भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, विश्व हिन्दू परिषद् (वीएचपी), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) आदि।
1950 से अबतक केवल 3 बार ऐसा अवसर आया है जब प्रतिनिधि सभा की बैठक नही हो पाई | 1976 और 1977 में आपातकाल के कारण तथा 1993 में अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन के चलते संघ पर लगाए गए प्रतिबन्ध के कारण।
प्रस्ताव अधिक महत्वपूर्ण
प्रतिनिधि सभा में देश के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक परिस्थिति तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रस्ताव पारित होते हैं | समय समय पर संघ ने असम, बांग्लादेश, चीन, गोरक्षा, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, राष्ट्रीय सुरक्षा, उत्तर-पूर्वांचल, धर्मांतरण, श्रीराम जन्मभूमि, प्राकृतिक संसाधन आदि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर प्रस्ताव पारित किये हैं | 
प्रतिनिधि सभा के प्रत्येक प्रस्ताव अनुभव आधारित, गहन चिंतन और बहुत बारीकी से बगैर संभ्रम (कन्फ्यूजन) के लिए जाते हैं।
सरकार्यवाहों की तेजस्वी परम्परा
सन 1950 की प्रतिनिधि सभा में सरकार्यवाह के रूप में प्रभाकर बलवंत दाणी उपाख्य भैयाजी दाणी का चुनाव हुआ। वे 1950 से 1956 तक सरकार्यवाह के पद पर रहे। इसी तरह 1956 से 1962 तक एकनाथ रानडे, 1965 से 1973 मधुकर दत्तात्रय उपाख्य बालासाहेब देवरस तथा 1973 से 1979 तक माधवराव मुले इस पद के गौरवमय अधिकारी रहे। इन सभी सरकार्यवाहों के साथ एक विशेष बात जुड़ी है, वह विशेष बात यह है कि ये सभी डॉ. हेडगेवार के सानिध्य में बड़े हुए। 
इसके बाद सरकार्यवाह के रूप में 1979 से 1987 तक प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जु भैया, 1987 से 2000 तक हो.वे.शेषाद्रि, 2000 से 2009 तक मोहन भागवत तथा 2009 से अब तक भैयाजी जोशी ने दायित्व सम्भाला।
प्रतिनिधि सभा और सरसंघचालक
सरसंघचालक बालासाहेब देवरस के कार्यकाल में आपातकाल के दौरान संघ ने भारत में लोकतन्त्र को बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | उसके पश्चात् संघ के स्वयंसेवक समाज की सेवा में अधिक गति से जुट गए और आज देशभर में संघ के स्वयंसेवकों द्वारा लगभग 1 लाख, 60 हजार से अधिक सेवाकार्य चलाए जा रहे हैं।  
‘सामाजिक समता और हिन्दू संगठन’ इस विषय पर बालासाहेब का पुणे की वसंत व्याख्यान माला में दिया गया भाषण प्रसिद्ध और दूरगामी परिणाम करनेवाला साबित हुआ। इस भाषण में उन्होंने प्रखरता से हिन्दू समाज में व्याप्त अस्पृश्यता के दोष को दूर करने का आह्वान किया था। 
सन 1994 में प्रतिनिधि सभा में पहली बार बालासाहेब देवरस ने रज्जु भैया को सरसंघचालक का दायित्व सौंपा। प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह के कार्यकाल में संघ का एक स्वयंसेवक पहली बार देश का प्रधानमंत्री बना। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 1996 से 2004 तक का कार्यकाल देश के इतिहास में विशेष उपलब्धि प्राप्त करनेवाला रहा।
इसके बाद सन 2000 में प्रतिनिधि सभा के दौरान ही तत्कालीन सरसंघचालक रज्जु भैया ने कुप्प.सी.सुदर्शन को दायित्व सौंपा। सुदर्शनजी के कार्यकाल में संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरूजी गोलवलकर की जन्म शताब्दी समूचे विश्व में मनाई गई। स्वयं सुदर्शनजी ने नैरोबी के विश्वविद्यालय में आयोजित एक समारोह को सम्बोधित किया था। उसी प्रकार भारत में मुस्लिम और ईसाई समुदायों के साथ सार्थक संवाद उन्हीं के कार्यकाल में प्रारंभ हुआ।
इसी क्रम में 2009 में सुदर्शनजी ने डॉ. मोहन भागवत को सरसंघचालक का दायित्व सौंपा। वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के कार्यकाल में संघ ने जो प्रगति की है वह सभी के सामने हैं। उसपर बहुत अधिक टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है।     
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