जो डर गया वो मर गया - T C A Srinivasa-Raghavan

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विगत वर्ष मई में जब नरेन्द्रभाई दामोदरदास मोदी ने दिल्ली के गढ़ रायसीना हिल पर धावा बोला, तब वे सामाजिक रूप से बाहरी व्यक्ति थे | भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और अन्य संबद्ध सेवाओं के लोगों की हालत यह थी मानो इंग्लैंड की एडवर्डियन महिलायें कह रही हों "ओह भयानक आदमी " ।
अभिजात वर्ग फिर चाहे वे जमींदार हों, कॉर्पोरेट हों या फिर नई दिल्ली के मामले में नौकरशाही – इन सबके लिए मध्यम वर्ग के मूल्य डरावने ही होते हैं | क्योंकि उनका केंद्रविन्दु होता है संकोच, औचित्य और नैतिक आचरण, जो इन लोगों के लिए असुविधाजनक होता हैं।
श्री मोदी हालांकि, मध्यम वर्ग से नहीं थे। वे उससे भी कुछ नीचे की हैसियत से थे । फिर भी दिल्ली के पैरोकारों ने उन्हें प्रारम्भ से ही अवांछित व्यति घोषित कर दिया था।
श्री मोदी कम से कम दिल्ली के भौंह तरेरने वाले वर्ग के “करें न करें” से तो परेशान नहीं हुए | लेकिन, अफसोस कि वे साउथ ब्लॉक के जिस कोने वाले कमरे में बैठते है, उसकी एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति है। वह यह कि वह अपने में बसने वाले को उस सांचे में ढाल लेता है, जिसे वह कतई पसंद नहीं करता ।
यह कई प्रकार से होता है, जैसे किसी व्यक्ति की बेमेल शादी, ऐसी शादी जिसमें एक जीवनसाथी उच्च वर्ग का हो । चाहे जाति की दृष्टि से अथवा वर्ग की दृष्टि से | तो वह अपने दूसरे साथी को भी अपने अनुसार ढालने की चेष्टा करता या करती है | पश्चिम में इसे उच्च गतिशीलता कहते हैं।
अपने कार्यालय में आने के थोड़े से समय बाद ही श्री मोदी के साथ भी ठीक यही हो रहा है | प्रधान मंत्री बनते ही उनका विवाह नौकरशाही के साथ हो गया है | और यही उनकी पराजय है |
सतर्क रहें श्रीमान -
यह तो अभी शुरुआती दिन है, लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि नौकरशाही एक पत्नी के समान उन पर हावी होती जा रही है । नौकरशाही धीरे धीरे लेकिन निश्चित रूप से एक नए मोदी व्यक्तित्व को पैदा कर रही है।
किन्तु नरेंद्र मोदी की सज्जनता में पूरा भरोसा रखते हुए, उन्हें कुछ और समय दिया जाना चाहिए | इस आशा के साथ कि वे समझ पायेंगे कि किन लोगों को पसंद करना चाहिए और किनसे नफ़रत | यह समझ लेने के बाद वे घृणास्पद लोगों से स्वतः अलग हो जायेंगे | 
चल रहे परिवर्तन को समझने के लिए, यह समझना बहुत जरूरी है कि दिल्ली में शक्तिशाली अभिजात वर्ग पॉवर के लिए कुछ भी कर सकता है । यद्यपि यह विशिष्ट वर्ग बहुत छोटा है और इसमें मुख्य रूप से गृह, वित्त, विदेश और रक्षा में संयुक्त सचिव व उसके ऊपर के अधिकारी ही शामिल हैं ।
कोर अभिजात वर्ग की पहली कोशिश तो प्रधानमंत्री का अन्तरंग बनना होता है, किन्तु यदि यह न हो पाए तो वे उसे डराने की जुगत लगाते है । अन्तरंग बनने का सबसे कारगर हथियार का नाम है "प्रक्रिया" । ऐसे असंगत नियम बनाए गए हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य केवल नौकरशाही के महत्व को बनाए रखना है | ज्यादातर प्रधानमंत्रियों को ये नियम निरुपाय कर देते हैं । वे किनारे पर पडी व्हेल की तरह असहाय हो जाते हैं।
प्रधानमंत्री का भयादोहन करने के लिए तीन हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है । पहला है जानबूझकर समाचार लीक करना । दूसरा है दुर्भावनापूर्ण कानाफूसी अभियान । और तीसरा जिसे कोई प्रधानमंत्री अनदेखा नहीं कर सकता, वह है खुफिया सूचनाओं का आडाटेढ़ा इस्तेमाल ।
अगर ये तीनों एक साथ शुरू हो जाएँ तो किसी भी प्रधान मंत्री को नौकरशाही उँगलियों पर नचा लेती है । न मानें तो मनमोहन जी से पूछ लें ।
मोदी क्या कर सकते हैं
मोदी जी को अब स्वयं से पूछने की जरूरत है | मंत्रिमंडल नीति बनाता है और विधायिका उस नीति के अनुसार कानून | किन्तु नीति और क़ानून के अनुसार नियम कौन बनाता है ? निश्चित रूप से नौकरशाही।
और इस भूमिका का उपयोग हमेशा विधायी आशय और नीति के मूल उद्देश्य को नष्ट करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे कहते हैं फाईल को घुमाना | (वर्षों तक फ़ाइल एक टेबिल से दूसरी टेबिल पर घूमती रहती है) ।
नौकरशाही को साधने के लिए एक प्रधानमंत्री के पास केवल स्थानान्तरण ही उपचार नहीं है | जो लोग आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं – उनके नियम बनाने के अधिकार में कटौती से उन पर अंकुश लगाया जा सकता है | अब तक ऐसा नहीं किया गया है। इसलिए वे सभी रयूड हो चुके हैं ।
यह कैसे किया जा सकता है? 

बहुत सरल है: नियम बनाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूशन फिर ट्रांसफोर्मिंग (NITI) आयोग से कहना चाहिए | जिसके पास अभी अन्य कोई उपयोगी काम है भी नहीं | बाबुओं पर नकेल कसने में प्रोफेसर पनगरिया और देबरॉय खासे उपयोगी साबित हो सकते हैं ।


हमेशा की तरह इस बार भी मोदीजी को दुष्प्रवृत्ति से जूझना ही होगा | मोदी जी के पास बहुत अच्छा मौक़ा है कि वे नौकरशाही से नियम बनाने की उनकी शक्ति छीन लें | उन लोगों ने डराना शुरू कर दिया है | ऐसी हालत में गब्बरसिंह का वह प्रसिद्ध डायलोग याद रखना जरूरी है - "जो डर गया, वो मर गया।
ब्यूरोक्रेसी पहले बनाती है, फिर तोड़ती है  |

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