औद्योगीकरण और स्वामी विवेकानंद – जमशेद जी टाटा के जन्मदिवस पर विशेष

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सन १८९३ में स्वामी विवेकानंद की मुलाक़ात जहाज यात्रा के दौरान जमशेद जी नौसेर्वान जी टाटा से हुई | यह जहाज जापान से अमेरिका जा रहा था | स्वामी जी ने टाटा को परामर्श दिया – तुम जापान से माचिस का आयात क्यों करते हो ? यदि आप इसका उत्पादन भारत में ही करोगे तो आपको भी ज्यादा लाभ होगा और अन्य लोगों को रोजगार भी मिलेगा, साथ ही देश का पैसा भी देश में ही रहेगा |

स्वामी जी के विचारों के अनुरूप चलते हुए ही आगे चलकर टाटा ने जमशेदपुर स्टील प्लांट की आधारशिला रखी | जमशेद जी ने अपनी संपत्ति का एक भाग विज्ञान संस्थान आरम्भ करने के लिए दिया, जो आज बेंगलोर में इन्डियन इंस्टीटयूट ऑफ़ टेक्नोलोजी के नाम से प्रख्यात है | यह संस्थान खोलने के पहले उन्होंने स्वामी जी को पत्र लिखा –

प्रिय स्वामी विवेकानंद,
मुझे विश्वास है कि जापान से शिकागो की यात्रा के दौरान आप अपने सहयात्री को भूले नहीं होंगे | मुझे आज भी भारत की तपोभूमि पर विकास और इस भावना को नष्ट न कर सही दिशा देने बाले आपके विचार याद हैं |

मैंने इसी विचारधारा का समावेश भारतीय विज्ञान शोध संस्थान में किया है, जिसके बारे में आपने जरूर पढ़ा या सुना होगा | मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इस तपस्वी भावना के बेहतर प्रयोग के लिए इस भावना से अभिभूत पुरुषों के लिए मठों और आश्रमों की स्थापना से अच्छा और कोई विकल्प हो ही नही सकता | जहां वे एक सादगी भरा जीवन जीते हुए प्राकृतिक व मानवीय विज्ञान की जड़ों को मजबूत बनाएं | मेरे विचार से इस प्रकार के कल्याणकारी अभियान का नेतृत्व एक सक्षम व्यक्ति के हाथों में होना चाहिए, जो देश के तपस्वी संस्कारों और विज्ञान को साथ साथ लेकर चल सके | मुझे मालूम है कि वह व्यक्ति विवेकानंद के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता | क्या आप इस मिशन की रहनुमाई करने पर विचार करेंगे ? शायद इसके लिए सबसे पहले आपको लोगों में जोश का संस्कार करना होगा, जिसके लिए हम पर्चे बाँट सकते हैं | इसके प्रकाशन पर तमाम व्यय करने में मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी |

२३ नवम्बर १८९८ 
जमशेद जी एन. टाटा 

यह पत्र स्वामी जी के कार्यों और विचारों का वास्तविक स्वरुप प्रस्तुत करता है, साथ ही उनके योगदान को भी प्रतिविम्वित करता है | देश की तात्कालिक स्थिति पर क्षोभ व्यक्त करते हुए स्वामी जी ने कहा – “फिलहाल अपने धार्मिक रीति रिवाजों को एक ओर रखकर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करो | विदेशों के लोग आपके देश से मिले कच्चे माल के दम पर अपने भविष्य को उज्वल बना रहे हैं और आप बोझ ढोने बाले जानवरों की भाँती उनका बोझ ढो रहे हैं | विदेशी लोग भारत से कच्चा माल लेकर अपनी सूझबूझ से विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन कर अपना वर्चस्व कायम कर रहे हैं, जबकि आप अपनी बुद्धि के द्वार बंद कर अपनी पुस्तैनी संपदा उन पर लुटा रहे हैं | और भोजन के लिये अन्य देशों के सामने गुहार लगाते फिरते है |”

एक स्वाभिमान संपन्न समुन्नत आत्म निर्भर भारत स्वामी जी का स्वप्न था | क्या हम उनके सपनों को साकार करने का स्वप्न अपनी आँखों में बसाना पसंद करेंगे ?

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