फैजाबाद के गुमनामी बाबा या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस



आजकल कई जगह इस बात को लेकर चर्चा जोर पकड़ी हुई है की नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ही कहीं फैजाबाद के गुमनामी बाबा तो नहीं थे ? इस मामले की जांच हेतु तीन कमेटियां भी बनायी गयी परन्तु इस रहस्य पर से पर्दा आज तक नहीं उठा ! 

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के परिजनों की जासूसी करवाए जाने के मामले के बाद कहीं गुमनामी बाबा ही तो नेताजी नहीं थे इस बहस ने अवध में जोर पकड़ लिया है ! कहा जाता है कि गुमनामी बाबा ने वर्ष 1985 में फैज़ाबाद के रामभवन में अंतिम सांस ली ! गुमनामी बाबा की मृत्यु के पश्चात उनके कमरे से बरामद सामान में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के परिजनों की तसवीरें, आजाद हिन्द फौज के पवित्र मोहन राय, लीला राय और समर गुहा आदि कलकत्ता के लोगों द्वारा लिखे गए पत्रों के अलावा नेताजी की भतीजी ललिता बोस के द्वारा कमरे में रखे सामान को देख फफक फफक के रोते हुए कहना कि यह सामान उनके चाचा का ही है, दुनिया के मन में यह सवाल अवश्य उठाता है कि कहीं गुमनामी बाबा ही तो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तो नहीं थे ? 

रामभवन नामक इस घर के मालिक शक्ति सिंह के मुताबिक सुभाष चन्द्र बोस की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुयी ! यही नहीं ताईवान की सरकार ऐसा शपथ पत्र भी दे चुकी है ! अदालत के आदेश पर कई सबूत फैज़ाबाद के कोषागार में मौजूद हैं जो सच के बहुत करीब ले जा सकतें हैं ! 

फैजाबाद में सरयू नदी के तट पर गुमनामी बाबा की समाधि बनी हुई है एवं इस समाधि पर उनकी जन्म तिथि 23 जनवरी अंकित है ! संयोग से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जन्मतिथि भी 23 जनवरी है ! एक अत्यंत विचित्र बात यह है कि इस समाधि पर उनकी मृत्यु की तारीख के सामने तीन सवालिया निशान बने हुए है !

रामभवन के मालिक शक्ति सिंह बताते हैं गुमनामी बाबा वर्ष 1983 में किराये पर रहने यहाँ आये ! लेकिन तीन सालों तक उनका चेहरा कोई न देख सका ! ख़ास बात ये थी की कोलकाता से अक्सर मिलने वाले लोग आया करते थे ! लेकिन तेईस जनवरी यानि नेता जी के जन्म की तारीख में लोगों आमद बढ़ जाती, उनके पास बंगाल से प्रकशित वहां के भाषा के अख़बार और पात्रिकाएं आती ! वर्तमान में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नाम पर राष्ट्रीय विचार केंद्र का संचालन करने वाले शक्ति सिंह के अनुसार बाबा खुद का नाम भगवन बताते थे , बोलते काम थे , लेकिन जितना बोलते पूरे तर्क और ज्ञान के साथ ! शक्ति बताते हैं धीरे धीरे फैज़ाबाद और आस पड़ोस के लोगों ने गुमनांमी बाबा को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मानने लगे थे ! 

16 सितम्बर 1985 को गुमनामी बाबा की मृत्यु हो गयी, जिनको कोलकाता से आये उनके शिष्यों ने यहाँ के गुप्तार घाट के पास अंतिम संस्कार कर दिया ! बाद में जब उनके कमरे की तलाशी ली गयी तो वहां मिले सामानों ने शक्ति सिंह के परिवार को पुख्ता कर दिया की गुमनामी बाबा ही सुभाष चन्द्र बोस थे ! शक्ति सिंह ने संस्कार स्थल पर बाद में एक समाधी बनायी !

कमरे की तलाशी में कई दुर्लभ फोटो मिली जिसमें नेताजी और उनके करीबियों की तस्वीरें थी ,नेताजी की रोलेक्स घडी जो जर्मनी में मिली थी ! जापान की बनी ओमेगा रिस्ट वाच , उनके सात चश्मे ,ढेर सारा बंगाली सहित्य और अखबार जो कलकत्ता से फैजाबाद सिर्फ उनके लिए आते थे , सुभाष चन्द्र बोस से जुडी हर खबर की कटिंग , जिन पर लिखी उनकी पंक्तियाँ , तमाम चिट्ठियां, टेलीग्राम , विदेशी साहित्य , डब किये कैसेट , ग्रामोंफोन,छोटा जर्मन टाइप राईटर था !

कहीं गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तो नहीं थे इसकी जांच के लिए उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया तो अदालत ने सारा सामान सरकारी कोषागार में जमा करा दिया ! इसके पश्चात तीन तीन कमेटियां इस मामले की जाँच के लिए बनायीं गयी , लेकिन उनकी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गयी जैसे मानो इस सच को जानबूझ कर छुपाया जा रहा हो ! दो साल पहले ही इलाहबाद हाईकोर्ट ने उनके सामान को संग्रहालय में रखने और सच सामने लाने के लिए एक रिटायर जज की कमेटी बनाने का आदेश दिया था ! परन्तु नतीजा वही रहा न जाने क्यों इस आदेश पर अमल नहीं हुआ ! आज भी फैज़ाबाद के लोग गुप्तार घाट की उनकी समाधि पर इस भरोसे से जाते हैं की गुमानमी बाबा ही सुभाष चन्द्र बोस थे !

शक्ति सिंह बताते है कि भगवन उर्फ़ गुमनामी बाबा अयोध्या और फैजाबाद में दो चरणों में करीब 10 वर्षों तक रहे ! इसी बीच उन्होंने सीतापुर नैमिषारण्य में भी प्रवास किया ! बस्ती जनपद में भी कुछ समय व्यतीत किया ! गुमनामी बाबा का यह प्रवास 1970 से 1985 तक रहा ! कहा जाता है कि गुमनामी बाबा बिलकुल नेताजी की तरह ही दिखते थे !

16 सितम्बर १९८५ को जब गुमनामी बाबा का निधन हुआ उस दिन रामभवन की गतिविधियों के विषय में अयोध्या-फैजाबाद के लोग बताते है कि उस दिन गुमनामी बाबा के करीबी डॉक्टर आरपी मिश्र और पी बेनर्जी उनके कमरे से बार बार बाहर आ जा रहे थे ! दोपहर तक जैसे ही लोगों को उनकी मृत्यु की खबर लगी वैसे ही रामभवन के बाहर लोगों का जमावड़ा सा लग गया ! लोग यह देखने राम भवन पहुच रहे थे कि आखिर गुमनामी बाबा दीखते कैसे है ! स्थानीय प्रशासन भी रामभवन पर पहरा बैठा चुका था एवं पल पल की खबर तत्कालीन राज्य सरकार को दी जा रही थी !

रामभवन में गुमनामी बाबा से मिलने कुछ सीमित लोग ही आते थे ! कई लोग कार द्वारा देर रात को राम भवन आते और भोर होने से पूर्व ही चले भी जाते ! गुमनामी बाबा अक्सर लोगों से परदे के पीछे रहकर ही बात किया करते थे ! गुमनामी बाबा अंग्रेजी के साथ साथ कई अन्य भाषाओं का ज्ञान रखते थे ! लोगों को करीब २ वर्षों तक रामभवन में रहते हुए भी दर्शन न हो पाने के कारण उत्पन्न हुए रहस्य के चलते लोग उन्हें भगवन कहने लगे थे !


ज्यादातर लोग मानते हैं विमान दुर्घटना में नेता जी मारे गए,लेकिन वहां से कोई ऐसा ब्लैक बॉक्स नहीं मिला ! उनकी मौत पर रहस्य है ,लेकिन एक और रहस्य है जो उससे भी बड़ा है ! नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ही कहीं फैजाबाद के गुमनामी बाबा तो नहीं थे ?

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