गौमांस प्रतिबन्ध के विरोध में फिल्मकार गिरीश कर्नाड ने भी खाया गौमांस !



जबसे महाराष्ट्र सरकार ने गौमांस पर प्रतिबन्ध लगाया है तब से कला और साहित्य से जुड़े लोगों के पेट में अजीब सी कुलबुली मची हुई दिखाई दे रही है ! महाराष्ट्र सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले का विरोध करने वाले अपने आपको कलाकार कहने वाले कला के क्षेत्र से जुड़े लोगों की फेरहिस्त लम्बी होती जा रही है !

कला और साहित्य के क्षेत्र से जुड़े लोगों का गौमांस प्रतिबन्ध के विरोध में नया नाम है गिरीश कर्नाड ! दरअसल गौमांस प्रतिबन्ध के खिलाफ बृहस्पतिवार को डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआइ) ने इसके विरोध में बेंगलुरु के टाउन हाल के बाहर प्रदर्शन किया ! विरोध प्रदर्शन में रंगमंच कलाकार और अभिनेता गिरीश कर्नाड न सिर्फ मौजूद रहे, बल्कि उन्होंने गोमांस भी खाया ! कार्यक्रम में कई मशहूर हस्तियां भी शामिल हुईं ! इनमें चर्चित कन्नड़ साहित्यकार डॉ. के मरुलासिदप्पा भी शामिल हैं ! प्रदर्शनकारियों ने गोमांस पर बैन को भारत की विविध भोजन संस्कृति और खाने के अधिकार का उल्लंघन बताया !

एक सवाल के जवाब में कर्नाड ने ब्राह्मणों को धकियाते हुए कहा, 'कौन कहता है कि अधिकतर लोग गोमांस नहीं खाते ? यह बकवास ब्राह्मणों की फैलाई हुई है ! हिंदुत्व के पैरोकारों ने इसे बनाया है ! वोक्कलिग, मुसलमान, ईसाई, दलित और कई अन्य समुदाय बीफ खाते हैं !' 

सूत्रों के अनुसार भाजपा के करीब 80-90 कार्यकर्ताओं ने टाउनहाल पहुंचकर डीवाईएफआइ के प्रदर्शन को रोकने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हें वहां से चले जाने को कहा !


कौन है गिरीश कर्नाड ?

19 मई 1938 माथेरान, महाराष्ट्र में एक कोंकणी भाषी परिवार में जन्में गिरीश कर्नाड भारत के एक लेखक, अभिनेता, फिल्म निर्देशक और नाटककार हैं ! कर्नाड 1958 में धारवाड़ स्थित कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली ! इसके पश्चात वे एक रोड्स स्कॉलर के रूप में इंग्लैंड चले गए जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड के लिंकॉन तथा मॅगडेलन महाविद्यालयों से दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की ! वे शिकागो विश्वविद्यालय के फुलब्राइट महाविद्यालय में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे !

कर्नाड की प्रसिद्धि एक नाटककार के रूप में ज्यादा है ! वंशवृक्ष नामक कन्नड़ फिल्म से इन्होंने निर्देशन की दुनिया में कदम रखा ! इसके बाद इन्होंने कई कन्नड़ तथा हिन्दी फिल्मों का निर्देशन तथा अभिनय भी किया ! कर्नाड को साहित्य के लिए 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1974 में पद्मश्री,1992 में पद्मभूषण तथा कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार,1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा सिनेमा के क्षेत्र में वर्ष 1980 में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ पटकथा - गोधुली (बी.वी. कारंत के साथ) एवं इसके अतिरिक्त कई राज्य स्तरीय तथा राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है ! 


अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है की उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति जिसे इस देश ने इतना सम्मान दिया, क्या वह व्यक्ति केवल अपने खाने की आदत के चलते तमाम उन लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहा जो गाय को अपनी माता स्वरुप मानते एवं पूजते है ! कर्नाड का यह कहना यह बकवास ब्राह्मणों की फैलाई हुई है एवं हिंदुत्व के पैरोकारों ने इसे बनाया है ! क्या यह ब्राह्मणों की भावनाओं को आहत नहीं करता है

साभार नवभारत टाइम्स 


  
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