मेरा भारत महान - बाज बहादुर और रूपमती की प्रणयगाथा का साक्षी मांडू


जहांगीर ने अपनी यादो में लिखा है – मैं ऐसी किसी जगह को नहीं जानता, जहां की जलवायु और प्राकृतिक सुन्दरता वर्षा ऋतू में मांडू से बेहतर हो | लार्ड कर्जन ने भी इसे सिटी ऑफ़ जॉय कहा है | विख्यात मुसलमान इतिहासकार फ़रिश्ता के अनुसार मांडू दुर्ग का निर्माण 590-628 ईस्वी में आनंद देव राजपूत ने करवाया था | अबुल फजल ने एक रोचक दंतकथा का उल्लेख किया है, जिसके अनुसार मंडन नामक एक सुनार को कहीं से एक पारस पत्थर मिल गया | उसने वह तत्कालीन राजा को सोंप दिया | राजा ने उस पत्थर से सोना बनाकर दुर्ग का निर्माण किया और मंडन के नाम पर इसका नाम मांडव रख दिया | प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मांडव्य को शक्ति पीठ बताया गया है, जिसकी अधिष्ठात्री देवी मांडवी हैं | 

वास्तविकता कुछ भी हो, किन्तु पुरातात्विक खोजों ने यह स्थापित कर दिया है कि परमार काल तक मांडू, जैनियों और हिन्दुओं का एक प्रमुख केंद्र रहा | यहाँ विशाल शिव मंदिर व जैन मंदिर रहे हैं | पुरातत्वविद डी.आर. पाटिल ने अपनी पुस्तक “मांडू” में उल्लेख किया है कि 1401 से 1526 के काल में मुसलमान शासकों ने इन हिन्दू मंदिरों का विध्वंश कर उसकी ही सामग्री से अपनी स्थापत्य शैली में मस्जिदों और मकबरों का निर्माण किया | इसी कारण आज मांडू में ध्वस्त लोहानी गुफाओं के अलावा कोई अति प्राचीन स्मारक दिखाई नहीं देता | इन गुफाओं के मलवे से देवी देवताओं की 80 मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं | खुदाई में शिव मंदिरों के कई नक्काशीदार टुकडे प्राप्त हुए हैं | दुर्ग के भवनों के मलवे से एक लंबा शिला लेख मिला है, जिस पर विष्णू प्रार्थना अंकित है |

इसी प्रकार चम्पा बावडी के पास लालकोट क्षेत्र में हिन्दू देवियों की प्रतिमाएं मिली हैं | हिंडोला महल की दीवारों पर जहां पपड़ी उखड जाती है, वहां उसके भीतर देवी देवताओं की उलटी जडी प्रतिमाएं द्रष्टिगोचर होने लगती हैं | रेवाकुंड मार्ग पर एक टीले के नीचे से शिव प्रतिमा और परमार नरेश भोज द्वितीय का एक लेख मिला है | माना जाता है कि राजा हर्षदेव द्वारा बनवाये गए संस्कृत विश्व विद्यालय को अशर्फी भवन में बदल दिया गया था | एक किवदंती प्रचलित है कि ग्यास शाह खिलजी अपने हरम की मोटी बेगमों को दुबली करने के लिए महल के बगल में बने विजय स्तम्भ की 198 सीढियों पर चढ़ने उतरने को विवश करता था | उनका उत्साह बढाने के लिए वह उनपर अशर्फियाँ लुटाता था | इसीलिए इस भवन का नाम अशर्फी महल पडा | किसी जमाने में संस्कृत विश्वविद्यालय रहा यह भवन मोटी बेगमों पर अशर्फी लुटाने जैसी अय्यास गतिविधियों का भी प्रत्यक्ष दर्शी रहा |

किन्तु मांडू प्रसिद्ध है बाज बहादुर और रूपमती के अमर प्रेम प्रसंग के कारण | जिस बाज बहादुर के पूर्वजों ने मंदिरों को ध्वस्त किया, वही एक हिन्दू ललना के प्रेम में दीवाना हो गया | उसने रूपमती को मुसलमान बन जाने के लिए बाध्य नहीं किया, अपितु उसकी नर्मदा भक्ति को देखते हुए अपने महल के पास रेवा कुंड का निर्माण करवाया | रूपमती जिस बुर्ज पर चढ़कर नर्मदा दर्शन करती थी, उसका नाम ही रूपमती मण्डप हो गया | जहां बाजबहादुर अपने समय का प्रसिद्ध गायक थी, वही रूपमती भी राग सारंग, ध्रुपद और राग बसंत की विख्यात गायिका मानी गई है | उसके सौन्दर्य की प्रशंसा से प्रभावित होकर अकबर ने उसे दिल्ली दरवार में बुलवाया | जब बाजबहादुर ने उसे भेजने से इनकार कर दिया तो अधमखान के नेतृत्व में अकबर की सेनाओं ने मांडू पर आक्रमण कर दिया | बाज बहादुर पराजित हुआ और अपने नारीत्व की रक्षा के लिए रूपमती ने जहर खा लिया | यही असलियत थी उस महान कहे जाने वाले अकबर की |

अहमद उल उमरी ने उस पराभव के बाद लिखा – ओ नगरों की रानी मांडू, तुम्हारे सौभाग्य का सूर्य अस्त हो गया है | तुम्हारे बैभव के दिन समाप्त हो चुके हैं | तुम्हारे राजमहल वीरान पड़े हैं और उनमें रहने वाले मर चुके हैं | महलों के गुम्बदों पर उल्लू बैठे अपने पंख फडफडाते दिखाई देते हैं | उल्लास और गीतों का स्थान, कभी न ख़त्म होने बाली खामोशी ने ले लिया है | बाज बहादुर मर चुका है, रूपमती भी अब नहीं रही, किन्तु ओ मुग़ल जिसने उन्हें बर्बाद किया है, तुम्हारे सर्वनाश का दिन भी अब दूर नहीं है |

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