सताए हुए सुतीक्ष्ण की तपःस्थली सतना


पौराणिक कथा के अनुसार बाल्यकाल में सुतीक्ष्ण, ऋषि अगस्त्य के आश्रम में विद्यार्थी थे | बालक तो थे ही, जामुन तोड़ने को पत्थर के स्थान पर पूजा में रखे हुए शालिगराम को ही फेंककर पेड़ से जामुन गिराने लगे | जामुन तो गिरे, लेकिन शालिगराम की पिंडी गुम हो गई | शरारती सुतीक्ष्ण ने पूजा में जामुन रख दिए | पूजा करने बैठे अगस्त्य ने शालिगराम को स्नान कराया तो छिलके अलग और गूदा अलग | अगस्त्य आगबबूला हुए तो तीक्ष्ण बुद्धि के सुतीक्ष्ण ने जबाब दिया –

बार बार चन्दन, बार बार पानी,

सड गए देवता, हम का जानी |

गुरू ने कहा तुम्हारी वजह से भगवान खोये हैं, अब आश्रम में तब ही आना जब भगवान साथ हों | सुतीक्ष्ण ने भी तय किया कि गुरू ने शालिगराम की पिंडी नहीं, भगवान कहा है तो भगवान को ही लेकर जाऊँगा | 

सताए हुए सुतीक्ष्ण ने जिस नदी के किनारे पर भगवान की तपस्या की, कालान्तर में उसका नाम ही सतना हो गया | लोकोक्ति के अनुसार यह नदी सताए हुए लोगों की आश्रयदाता है | वनवास के समय राम उनके दर्शनों की चाह लिए तपस्यारत सुतीक्ष्ण से मिले | अपने निश्चय के अनुसार सुतीक्ष्ण उन्हें साथ लेकर अपने गुरू अगस्त्य के आश्रम में पहुंचे | वह आश्रम जो अगस्त्य आश्रम था उसके बाद से सुतीक्ष्ण आश्रम के नाम से जाना गया | आज भी सतना जिले में यह आश्रम विद्यमान है |

शक्तिपीठ मैहर के कारण भी सतना पूरे देश में जाना जाता है | यमुना से लेकर नर्मदा तक के क्षेत्र में सर्वाधिक पूजित बिन्ध्य के इस शंकुशीर्ष पहाड़ पर विराजती हैं कला और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ शारदा | लोकोक्ति है कि आज भी प्रति रात्रि चिरजीवी आल्हा अपनी कुलदेवी के दर्शनों को आते हैं | देश में श्रद्धा का तो अक्षय भण्डार है | उसी के चलते 80 वर्ष की वृद्धा अम्मा भी लाठी टेकती माँ शारदा के दर्शनों के लिए छः सौ से अधिक सीढियां चढ़कर देवी दर्शन के संकल्प से सराबोर दिखती है | सड़क मार्ग से वाहनों के द्वारा संपन्न लोग पहले पड़ाव तक ही पहुँच पाते हैं | लेकिन माँ के दर्शनों के लिए डेढ़ सौ से अधिक सीढियां तो उन्हें भी चढ़नी ही होती हैं | 

सतना से लगभग 19 किलोमीटर दूर स्थित भरहुत के स्तूप भी सांची के ही समान ही प्रसिद्ध हैं | बौद्ध ग्रन्थ दोषचिन्तय में भगवान् बुद्ध और उनके प्रिय शिष्य आनंद के संवाद का उल्लेख है | जिसमें बुद्ध ने अपने शिष्य को आदेश दिया था कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनके अस्थि अवशेषों को स्तूपों में रखा जाए | उसकी ही परिणति है देश के विभिन्न भागों में बने बौद्ध स्तूप | भरहुत, बोध गया, सांची, अमरावती, नागार्जुन कोंड, सारनाथ, तक्षशिला आदि विभिन्न स्थानों पर बौद्ध स्तूपों का निर्माण हुआ |
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