प्रचारक स्वयंसेवक सम्बन्ध



एक बार भोपाल में रामकथा का आयोजन हुआ | शशिभाई शेठ संयोजक बने ! कथावाचक श्री विजय कौशल जी भी पूर्व प्रचारक रह चुके थे ! उन्होंने भोपाल आते ही तत्कालीन प्रांत प्रचारक शरद जी मेहरोत्रा के विषय में पूछा ! किन्तु शरद जी ने शशिभाई को स्वयं के विषय में बताने से मना कर दिया ! इसका कारण पूछने पर बताया कि कथावाचक श्री विजय कौशल जी को रामकथा स्वयं शरद जी ने ही सिखाई थी ! इस कारण मिलने पर वे उन्हें आदर देंगे और व्यास पीठ पर बैठा व्यक्ति उनके चरण स्पर्श करे यह शरद जी को ठीक नही लगा ! 

विजय कौशल जी के सम्मुख तो शरद जी नही आये किन्तु कार्यक्रम पर पूरी बारीक नजर रखी ! कथा का समापन रामनवमी को भंडारे के साथ होना तय हुआ था ! ग्रेन मर्चेंट एसोसियेशन के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैयालाल अग्रवाल ने भंडारे की व्यवस्था स्वयं करने का वचन दिया था ! किन्तु एक दिन पूर्व अचानक उन्होंने हाथ खड़े कर दिए और व्यवस्था करने से मना कर दिया ! यह जानकर शशिभाई अत्यंत चिंताकुल हो गए ! अब कैसे यह आयोजन होगा यही सब सोचते आरती के समय उनकी आँखों में आंसू आ गए ! 

शरद जी को जब किसी स्वयंसेवक ने जानकारी दी तो उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि शशिभाई सक्षम हैं सब व्यवस्था कर लेंगे किन्तु व्यस्तता में संभव है केरोसीन की व्यवस्था ना कर पायें ! शरद जी ने बिना शशिभाई को बताए घर घर से केरोसीन इकट्ठा करबाया ! उनका पूर्वानुमान सत्य था ! शशिभाई ने सामान तो जन सहयोग से जुटा लिया था बस केरोसीन की ही कमी रह गई थी ! ईश्वर की कृपा और सबके सहयोग से राम कथा के बाद भंडारा भी हुआ और सहयोग राशि इतनी मिली कि बचत भी हो गई! कार्यकर्ता की क्षमता तथा कमियों का पूरा पूर्वानुमान रहता था शरद जी को ! 

१९९२ को बाबरी ढांचा गिरने के बाद अगले दिन भोपाल में दंगा हो गया ! कबाडखाना इलाके से शुरू हुआ उपद्रव पूरे शहर में फ़ैल गया और कर्फ्यू लगाना पड़ा ! संघ कार्यालय केशव नीडम पर फंसे ६ स्वयंसेवकों ने २०० लोगों की भीड़ से लोहा लिया ! चारों और से हिंदुओं की ह्त्या, आगजनी, लूटपाट, कुकर्म और अत्याचार के समाचार आ रहे थे ! संघ स्वयंसेवकों द्वारा पीडितों के भोजन इत्यादि की व्यवस्था की गई ! महानगर कार्यवाह विभीषण सिंह जी और संघचालक शशिभाई ने साथ मिलकर यथासंभव स्थिति को संभालने का प्रयत्न किया ! तत्कालीन मुख्यमंत्री और गृहमंत्री को कड़ाई से स्थिति की पल पल की जानकारी देकर विस्फोटक स्थिति को संभालने में पूरा पूरा योगदान दिया !

भिंड में अपारबल सिंह कुशवाह को जिला प्रचारक गवारीकर जी की सादगी, स्वाभिमान तथा कर्मठता ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया ! दोनों साथ साथ चान्ना होटल पर भोजन करते जहां चार आने की एक रोटी के साथ दाल फ्री मिलती थी ! इस कारण सस्ते में भोजन हो जाता ! गवारीकर जी का भोजन तो आठ आने में ही निबट जाता ! दो रोटी और चार कटोरी दाल में ही पेट भर जाता ! उन दिनों ईमानदारी की स्थिति यह थी कि तत्कालीन समाजवादी विधायक स्व. रघुवीरसिंह कुशवाह भी पैसे के अभाव में भोजन करने बहां आते थे ! इसी प्रकार जेठा टी शॉप पर चाय के साथ गप्प गोष्ठी होती ! चाय की स्थिति तो यह थी कि जब आपातकाल में कार्यालय से अपारवल जी गिरफ्तार किये गए तब बहां तलाशी में गवारीकर जी की डायरी मिली ! उसमें अधिकांशतः चाय के खर्चे लिखे हुए थे ! यह देखकर पुलिस अधिकारी ने पूछा कि कोई चाय का होटल चलाते थे क्या ?

* प्रचारक के रूप में गुना में सर्वाधिक कष्ट सहिष्णु प्रचारक श्री शितिकंठ गवारीकर जी रहे ! कह कर भोजन करना तो दूर उन्होंने कभी भी भोजन के लिये पूछे जाने पर भोजन के लिये हाँ नही कहा ! जिसने भोजन के लिये प्रेम पूर्वक आग्रह किया केवल बहीं भोजन किया ! कई बार तो दो दो दिन भूखे रहकर भी, अथवा केवल चने खाकर पानी पीकर ही उन्होंने संघ कार्य को गति दी ! उनका अधिकाँश प्रवास साईकिल से ही होता था ! भले ही बीनागंज से ६० कि.मी. दूर गुना आना हो, वे साईकिल को ही अपना वाहन चुनते थे ! एसे ही एक बार बीनागंज से गुना आते समय उन्होंने साईकिल की गति बढाने के लिये समीप से गुजरते ट्रक को पीछे से पकड़ लिया ! तभी किसी कारण संतुलन बिगड़ जाने के कारण वे गिर भी पड़े तथा गंभीर रूप से चोटिल भी हो गए, किन्तु उन्होंने अपनी साईकिल यात्रा को विराम नहीं दिया !

* २००४ में अनुसूचित जाति जनजाति के गाँवों तथा बस्तियों में देवालय स्थापना का कार्यक्रम संपन्न हुआ ! इस कार्यक्रम में ६०० कार्यकर्ता धर्मवीर बनकर गुना वा अशोकनगर के ६०० वनवासी गाँवों वा दलित बस्तियों में गए थे !ये कार्यकर्ता उन स्थानों पर उन्ही समाज वन्धुओं के घरों में आठ आठ दिन तक रुके थे ! ये उस घर में देवालय स्थापित कर गृह स्वामी के साथ पूजन अर्चन करते थे तथा नियमित पूजन करने की प्रेरणा देते थे ! प्रत्येक धर्मवीर जिस गाँव या बस्ती में रुका था, बहां से अधिकतम लोगों को साथ लेकर १८ जनवरी २००४ को गुना हवाई अड्डे के पास आयोजित हिन्दू सम्मेलन में उपस्थित हुए ! ६००० वनवासी वन्धुओं के इस संगम को तत्कालीन सर कार्यवाह श्री मोहन जी भागवत ने संवोधित किया ! 

इतना ही नही तो सभी वनवासी वन्धूओं का रात्री विश्राम गुना नगर के सवर्ण समाज के घरों मरण हुआ ! जहां उनका भरपूर अतिथि सत्कार हुआ ! रात्रि भोजन और विश्राम, प्रातःकाल नाश्ते के उपरांत तिलक लगाकर श्रीफल देकर उन्हें ससम्मान विदा किया गया ! इस कार्यक्रम हेतु ५० स्वयंसेवकों ने एक माह का समय देकर अथक परिश्रम किया था ! इस कार्यक्रम के मार्गदर्शन हेतु भोपाल से संघ प्रचारक श्री राजकुमार जैन तथा श्री अभय जैन विशेष रूप से एक माह रुके थे ! उस समय श्री दिनकर सबनीस विभाग प्रचारक तथा श्री गोपाल देराडी जिला प्रचारक थे ! सामाजिक समरसता तथा भारतीय संस्कृति से दलित समाज को जोड़े रखने का यह अनूठा प्रयोग था !

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