जम्मू - कश्मीर - संघर्ष का इतिहास



स्वतन्त्रता के पूर्व कश्मीर में नॅशनल कांफ्रेंस थी किन्तु जम्मू में विभिन्न जाति समुदायों की सभाएं काम करती थीं | कुछ समय “हिन्दू राज्य सभा” चली किन्तु बाद में उसके सभी पदाधिकारी नॅशनल कांफ्रेंस में सम्मिलित हो गए | जैसे जैसे परिस्थिति विकट होती गई, जम्मू के नागरिकों में नव चेतना का संचार होने लगा | मा. माधवराव मुले, बलराज मधोक, डॉ. ओमप्रकाश मेगी, जगदीश अबरोल, डॉ.सूरज प्रकाश, श्यामलाल शर्मा, दुर्गादास वर्मा, राधाकृष्ण शर्मा आदि लोग प. प्रेमनाथ डोंगरा के निवास पर बार बार एकत्रित हो नई संस्था की स्थापना के विषय में चर्चा करने लगे | आगे चलकर जम्मू के गणमान्य नागरिकों की एक सभा ब्राह्मण सभा में बुलाई गई और उसमें ‘प्रजा परिषद्’ की स्थापना की घोषणा की गई | इस सभा में भाग लेने वाले प्रमुख लोग थे सर्व श्री परशुराम नागर, रायजादा अमरचंद, गोपालदत्त मैगी, देवेन्द्र शास्त्री, प्रा. रामकृष्ण, कविराज विष्णुगुप्त, चतरराम डोंगरा, श्रीनिवास मंगोत्रा, हंसराज पंडोत्रा, वजीर हरिलाल, शिवनाथ नंदा आदि | प्रजा परिषद् के प्रथम अध्यक्ष वजीर हरिलाल एवं मंत्री हंसराज पंडोत्रा चुने गए |

1946 के बाद कोलेज के पहले राष्ट्रीय उत्सव में नॅशनल कांफ्रेंस ने तिरंगे के स्थान पर अपना हलवाला झंडा फहराया | इसके विरुद्ध छात्रों ने प्रदर्शन किये | धरपकड़ के बाद छात्रों ने आमरण अनशन किये | 35 दिवस के अन्न सत्याग्रह के बाद छात्रों को मुक्त किया गया | इन छात्रों में सर्व श्री चमनलाल गुप्त, तिलकराज शर्मा, वेदप्रकाश चौहान, वेदमित्र, हरदेव, विश्वपाल, रामस्वरूप चौधरी, कैप्टन रामस्वरूप, सत्यपाल गुलाटी, पवन सिंह, ओमप्रकाश गुप्त, यशपाल पुरी, द्वारिकानाथ गुप्त तथा घनश्याम थे |

छात्रों के इस आन्दोलन के बाद प.प्रेमनाथ डोंगरा, धनंतरसिंह सलाधिया, कविराज विष्णुगुप्त, श्यामलाल शर्मा, शिवराम गुप्त और शिवनाथ नंदा आदि प्रजा परिषद् के नेताओं को बंदी बना लिया गया | इसके प्रत्युत्तर में श्री रूपचंद नंदा और श्री दुर्गादास वर्मा के संयोजकत्व में सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ हुआ | यह सत्याग्रह 10 माह चला | प्रा. शक्ति शर्मा तथा श्रीमती सुशीला मैगी के नेतृत्व में जम्मू की महिलाओं का एक शिष्ट मंडल उसी दौरान दिल्ली आकर सत्तारूढ़ व विपक्षी नेताओं से मिला | उसके बाद प्रधान मंत्री प. नेहरू ने बक्षी गुलाम मोहम्मद को एक पत्र भेजा | उसके बाद प्रजा परिषद् के बंदी नेता रिहा हुए तथा आन्दोलन समाप्त हुआ |

इसके बाद डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में हुए रोमांचकारी संघर्ष में सुन्दरवनी के तीन तथा ज्योडिया के सात सत्याग्रही बलिदान हुए | इनके अतिरिक्त छम्ब के मेलाराम, हीरानगर के भीखमसिंह और बिहारीलाल, रामवन के शिवाराम, देवीशरण तथा भगवानदास भी हुतात्मा हुए | ये सभी 16 वीर सरकार की गोलियों के शिकार हुए | 

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