देश का नाम इंडिया या भारत - अब इसका निर्णय करेगा सर्वोच्च न्यायालय !

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पिछले दिनों एक सामाजिक कार्यकर्ता निरंजन भटवाल द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें मांग की गई है कि देश का नाम भारत किया जाए | शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता में गठित सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले पर विचार करते हुए विगत शुक्रवार को केंद्र और राज्य सरकारों की प्रतिक्रिया मांगी है । आइये जानें कि इस विषय को लेकर संविधान और सरकार का रुख क्या है - 

संविधान के अनुच्छेद 1 (1)के अनुसार इस देश का नाम - "इंडिया जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा ।" संविधान में यही एकमात्र उल्लेख है, जिसके अनुसार सरकारी और गैर-सरकारी उद्देश्यों के लिए देश का संबोधन होता है ।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 18 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने देश के नामकरण पर विचार-विमर्श किया। भारत, हिंदुस्तान, हिन्द, भारतभूमि, भारतवर्ष आदि अनेक सुझाव प्राप्त हुए । अंत में सभा ने "अनुच्छेद 1.में संकल्प द्वारा संघ का नाम और क्षेत्र इस प्रकार मान्य किया - 1.1 “India, that is Bharat, shall be a Union of States.”

संविधान आधिकारिक तौर पर 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था, किन्तु इसके पूर्व संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताई | श्री एचवी कामथ ने एक संशोधन प्रस्ताव रखा कि अनुच्छेद 1.1 को इस प्रकार होना चाहिए कि "भारत या, अंग्रेजी भाषा में इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा।" पदावली पर अन्य आपत्तियां भी थीं किन्तु अंत में उपरोक्त अनुच्छेद 1.1 “India, that is Bharat, shall be a Union of States.” को ही स्वीकार किया गया ।

जनहित याचिका पर बहस के दौरान अधिवक्ता अजय जी. मजीठिया ने कहा कि अनुच्छेद 1.1की व्याख्या संविधान सभा की मंशा को ध्यान में रखकर की जाना चाहिए | वस्तुतः संविधान निर्माता देश का नामकरण भारत ही करना चाहते थे | यदि उन्हें देश का नाम इंडिया रखना होता तो भारत शब्द रखने का कोई औचित्य ही नहीं था | याचिका के अनुसार गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 तथा इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के परिप्रेक्ष में इंडिया शब्द का उपयोग केवल सन्दर्भ के लिए किया गया था | उनका यह भी कथन था कि अति प्राचीन काल से इस देश को 'भारत' के नाम से ही जाना जता रहा है | इसके प्रमाण स्वरुप उन्होंने कई संस्कृत वांग्मय और शास्त्रों का उद्धरण दिया ।

याचिका में मांग की गई है कि सर्वोच्च न्यायालय यह स्पष्ट घोषणा करे कि यह देश इंडिया नहीं अनादि काल से भारत था, भारत है और भारत रहेगा | केंद्र और राज्य सरकार के सभी सरकारी और गैरसरकारी कामकाज में तथा अन्य सामजिक संगठनों के साथ व्यवहार में भारत नाम का ही उल्लेख होना चाहिए |

आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि पूर्व में जब कुछ आवेदकों ने आरटीआई आवेदन द्वारा देश का आधिकारिक नाम मालूम करने का प्रयत्न किया तो गृह मंत्रालय ने कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त करने में असमर्थता व्यक्त की । एक जवाब में तो मंत्रालय द्वारा यह कहा गया कि "विषय की कोई जानकारी नहीं है" । जबकि दूसरे जबाब में केवल अनुच्छेद 1.1का उल्लेख कर औपचारिकता पूरी की गई ।

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