उत्पादन, वितरण और उपभोग - पंडित दीनदयाल उपाध्याय



बुराई का वास्तविक कारण व्यवस्था नहीं मनुष्य है | बुरा व्यक्ति अच्छी से अच्छी व्यवस्था में घुसकर बुराई फैला देगा | समाज की प्रत्येक व्यवस्था या परम्परा किसी न किसी अच्छे व्यक्ति द्वारा प्रारम्भ की गई | परन्तु उसी अच्छी परम्परा पर जब बुरा व्यक्ति आ बैठा तो वहां बुराई आ गई | अतः हमारा ध्यान व्यक्ति की कर्तव्य भावना को जगाने पर केन्द्रित होना चाहिए | हम पूंजीवाद और समाजवाद के चक्कर से मुक्त होकर मानववाद का विचार करें | मानव जीवन के समस्त पहलुओं का विचार कर आर्थिक क्षेत्र में उत्पादन, वितरण और उपभोग के साधन तथा व्यवस्था बनाए |

आजकल राष्ट्रीय आय का विचार औसत के सिद्धांत के आधार पर किया जाता है | पर यह बहुत बड़ा भ्रम है | राष्ट्रीय आय के बढ़ने का अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति की आय बढे | यह सत्य है कि कम मनुष्यों का उपयोग करने वाली बड़ी मशीनों के द्वारा भी उत्पादन बढ़ सकता है, पर वह हमारे देश के लिए उपयुक्त नहीं | गांधी जी कहा करते थे, “मैं विशाल उत्पादन चाहता हूँ परन्तु विशाल जनसमूह द्वारा उत्पादन चाहता हूँ” |

बड़ी मशीनों के आधार पर जो उत्पादन बढाने का प्रयास चल रहा है, उससे देश में बेकारी तो बढ़ ही रही है, विदेशी ऋण भी बढ़ता जा रहा है | विदेशी मुद्रा विनिमय की समस्या खडी हो गई है | उसके कारण “उत्पादन करो या मर जाओ” के स्थान पर “निर्यात करो या मर जाओ” हो गया है | हमारी भावी योजनायें निर्यात केन्द्रित होने के कारण जो चीज हम पैदा करते हैं, उसका उपभोग भी स्वयं नहीं कर पाते | विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए चीनी सस्ते मूल्य पर विदेशों में बेचनी पड़ती है, जबकि देश में महंगे मूल्य पर बेची जाती है | अपनी गाय भेंसों को खली और भूसा न खिलाकर हम विदेशों को भेज रहे हैं और दूध के डिब्बों का आयत कर रहे हैं | इसका विचार कर यदि हम अधिक आदमियों का उपयोग करने वाले छोटे छोटे कुटीर उद्योग अपनाएं तो कम पूंजी तथा मशीनों की आवश्यकता होगी, विदेशी ऋण भी नहीं लेना पडेगा तथा देश की सच्ची प्रगति होगी |

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