भारतीय लोकतंत्र में क्यूं आवश्यक है "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ"


आज "राष्ट्र जीवन की दिशा" पुस्तक में दीन दयाल जी उपाध्याय के विचार पढ़ते समय लगा कि मानो उन्होंने आज की परिस्थिति को ध्यान में रखकर ही यह कहा होगा -

लोकतंत्र की एक व्याख्या यह की गई है कि यह वाद-विवाद के द्वारा चलने वाला राज्य है | हमारे यहाँ की पुरानी उक्ति है “वादे वादे जायते तत्वबोधः” | किन्तु तत्वबोध तो तभी संभव है, जब दूसरे की बात को ध्यान पूर्वक सुनकर उसमें से सत्यांश को ग्रहण करने की मानसिकता होगी | यदि दूसरे का द्रष्टिकोण न समझते हुए अपने द्रष्टिकोण का ही आग्रह करते जाएँ तो “वादे वादे जायते कंठशोशः” की उक्ति चरितार्थ होगी | 

वाल्टेयर ने जब कहा कि “मैं तुम्हारी बात को सत्य नहीं मानता किन्तु अपनी बात कहने के तुम्हारे अधिकार के लिए मैं सम्पूर्ण शक्ति से लडूंगा”, तो उसने केवल मनुष्य के कंठशोष के अधिकार को ही स्वीकार किया | भारतीय संस्कृति इससे आगे बढ़कर वाद-विवाद के तत्वबोध के साधन रूप में देखती है | हमारी मान्यता है कि सत्य एकांगी नहीं होता, विविध कोणों से एक ही सत्य को देखा, परखा और अनुभव किया जा सकता है | इन विविधताओं के सामंजस्य द्वारा जो सम्पूर्ण का आंकलन करने की शक्ति रखता है, वही तत्वदर्शी है, ज्ञाता है |

दूसरे की बात सुनना या उसके मत का आदर करना एक बात है और दूसरे के सामने झुकना बिलकुल भिन्न बात | क्योंकि इसमें एक खतरा बना रहता है कि जो सज्जन होते हैं, वे तो अपनी बात का आग्रह छोड़ देते हैं, किन्तु दुर्जन और दुराग्रही अपनी बात मनवाकर समाज में अगुआ बन जाते हैं | इसके कारण लोकतंत्र धीरे धीरे विकृत होकर समाज के लिए कष्टकारक बन जाता है | इसी संकट का सामना करने के लिए हमारे यहाँ के शास्त्रकारों ने “लोकमत परिष्कार” की व्यवस्था की | किन्तु यह लोकमत परिष्कार का कार्य कौन करे ?

रूस तथा अन्य साम्यवादी देशों में यह काम राज्य के द्वारा किया जाता है | किन्तु उसका परिणाम यह हुआ कि वहां लोकमत परिष्कार के नाम पर व्यक्ति की सभी स्वतंत्रताएं समाप्त हो गईं तथा कुछ व्यक्तियों की तानाशाही ही सम्पूर्ण जनता की इच्छा के नाम पर चलने लगी | भारत में यह कार्य सदैव से वीतरागी द्वन्द्वातीत सन्यासियों द्वारा किया गया | वे अपने वचनों तथा निर्दोष आचरण से जन जीवन को संस्कारित करते रहे | अतः आज भी इस काम को करने वाले राज्य के मोह से दूर, भय से मुक्त महापुरुष एवं संगठक आवश्यक हैं, ताकि लोकमत अपनी सही दिशा में चलता रहे |

(अब आप ही बताईये कि ऐसे वीतरागी, द्वन्द्वातीत, निर्दोष आचरण वाले, राज्य के मोह से दूर, भय से मुक्त महापुरुष एवं संगठक कहाँ हैं ? क्या आपको नहीं लगता कि अगर ऐसे लोग कहीं हैं, तो केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ? इसीलिए भारतीय लोकतंत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका है |)
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